क्यों कहा जाता है “अटल जी” को राजनीति का “अजातशत्रु”, जानिए अटल जी के व्यक्तित्व से जुड़ीं कुछ बातें

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अटल बिहारी बाजपेयी कवि, राष्ट्र चिंतक और दक्षिण पंथीय प्रवक्ता थे। अगर अटल जी के राजनीतिक जीवन पर नजर डालें तो वर्तमान में अटल जी जैसा व्यक्तित्व भारत के पास नहीं है। अटल जी के जीवन में बहुत सारे विपक्षी थे लेकिन विरोधी कोई भी नहीं था उनका प्रत्येक दल से संबंध था प्रत्येक दल के नेता का वे बड़ा ही आदर करते थे और प्रत्येक दल के नेता से उन्हें आदर प्राप् तभी होता था। अगर अटल जी के जीवन को हम एक शब्द में उतारें तो अटल जी भारतीय राजनीति के अजातशत्रु थे जिनका कोई शत्रु ही नहीं था।

एक सांसद के रूप में अटल जी का राजनीतिक सफर

अटल बिहारी वाजपेयी एकमात्र ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने 4 से 6 लोकसभा सीटों से विजय प्राप्त की थी। अटल बिहारी बाजपेई ने बतौर सांसद लखनऊ, बलरामपुर गांधी नगर, नई दिल्ली, विदिशा, ग्वालियर जैसी लोकसभा सीटों पर भारी मतों से विजय प्राप्त की थी। 25 दिसंबर 1924 को अटल जी का जन्म हुआ था और 1951 में RSS से संबंधित जन संघ में श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में अटल बिहारी वाजपेई जुड़ गए। 1951 में अटल जी ने पहला चुनाव लखनऊ से लड़ा और हार गए। 1957 में अपना दूसरा चुनाव लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर 3 सीटों से लड़ा जहां लखनऊ का चुनाव हार गए, मथुरा में जमानत जप्त हो गई और बलरामपुर से सांसद बने।

पंडित नेहरू ने अटल जी के बारे में कहा था, “भविष्य में यह व्यक्ति भारत का प्रधानमंत्री बनेगा।” 1962 में पंडित अटल बिहारी वाजपेयी लखनऊ की लोकसभा सीट से हार गए और 1967 तक उन्हें राज्यसभा में रहना पड़ा। 1967 में हुए लोकसभा चुनाव में भी वे हार गए। 1968 में अटल बिहारी वाजपेयी को जन संघ का अध्यक्ष बनाया गया और 1971 में अटल जी ने ग्वालियर से चुनाव लड़ा और भारी मतों से विजय प्राप्त की सन 1977 से 80 की मध्य अवधि में अटल जी ने दिल्ली की नई दिल्ली संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा और भारी मतों से विजय प्राप्त की। सन 1991 में अटल जी ने लखनऊ और विदिशा 2 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा जहां दोनों पर उनको विजय प्राप्त हुई। कुछ कारणों के कारण उन्होंने विदिशा को छोड़कर लखनऊ को अपनी कर्मभूमि बना लिया। सन 1996 में अटल जी को लखनऊ और गांधीनगर दोनों सीटों से चुनाव लड़ना पड़ा जहां दोनों सीटों से उन्हें विजय प्राप्त हुई।

एक राष्ट्रीय राजनेता के रूप में अटल जी का राजनीतिक जीवन

अटल बिहारी वाजपेयी 1977 में मोरारजी देसाई वाली सरकार में विदेश मंत्री बने। संयुक्त राष्ट्र संघ में उन्होंने भारत का प्रस्ताव हिंदी भाषा में रखकर भारत को नए आत्मविश्वास का अनुभव कराया सन 1980 में अटल जी भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष बने। 1994 से 1995 तक गुजरात और महाराष्ट्र का चुनाव जीतने के कारण लालकृष्ण आडवाणी ने अटल जी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बना दिया। अटल जी 1996 से 2004 तक तीन बार भारत के प्रधानमंत्री बने। 1996 में उनकी सरकार 13 दिन चली, 1998 में एनडीए के गठबंधन से उनकी सरकार 13 महीने चली और 1999 से उनकी सरकार पूर्ण बहुमत में थी और उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया।

अटल जी का राजनीतिक दर्शन

अटल जी की राजनीतिक दर्शन की छाप आप यही समझ सकते हैं कि जनता सरकार में अटल बिहारी वाजपेई उनके राजनीतिक दर्शन और उनके व्यक्तित्व के कारण ही संयुक्त राष्ट्र संघ में भेजा गया था। गुजरात के दंगों के बाद अटल बिहारी वाजपेई ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से कहा था, “आप राज धर्म का पालन करें। राज धर्म जाति धर्म और संप्रदाय का भेद नहीं करता है।” वैसे तो अटल जी दक्षिण पंथ से संबंध रखते थे लेकिन कश्मीरियत के लिए और कश्मीर की आवाम के लिए उन्होंने अलगाववादी नेताओं से बात करने की शर्त को भी स्वीकार किया था।

1998 में पोखरण परमाणु परीक्षण उनकी इस सोच का परिचायक था कि भारत दुनिया में किसी भी ताकत के आगे घुटने टेकने को तैयार नहीं है। उन्होंने एक मौके पर कहा भी था कि भारत मजबूत होगा, तभी आगे जा सकता है। कोई उसे बेवजह तंग करने की जुर्रत महसूस न करे, उसके लिए हमें ऐसा कर दिखाना जरूरी है।

अटल बिहारी वाजपेई एक राजनेता से पहले एक कवि थे इसीलिए कभी-कभी सभाओं में या बैठकों के वह कविताओं को सुनाते हुए झूमने लगते थे। जब वे मंच पर खड़े होकर कविताओं का पाठ करते थे तो सुनने वाली जनता मंत्रमुग्ध हो जाती थी। उनके बोलने का एक अलग ही अंदाज था।

कवि अटल बिहारी बाजपेयी, भावनाओं का महासागर

“लो उठा जनाजा फिर एक बुजुर्ग का,
आंगन में एक दरख़्त पुराना नहीं रहा!”

अटल बिहारी वाजपेई ने अपने जीवन में बहुत सारी कविताएं लिखी जिनमें से कुछ कविताओं के अंश निम्न है!

• आओ फिर से दिया जलाएं,
भरी दुपहरी में अंधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतर्तम का नेह निचोड़ें,
बुझी हुई बाती सुलगायें..
आओ फिर से दिया जलाएं..

• गीत नया गाता हूं,
टूटे हुए तारों से फूटे बसंती स्वर,
पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात,
कोयल की कुहुक रात,
प्राची में अरुणिम की रेख देख पाता हूं,
गीत नया गाता हूं!

• बेनकाब चेहरे हैं,
दाग बड़े गहरे हैं,
टूटता तिलिस्म आज,
सच से भय खाता हूं
गीत नहीं गाता हूँ !

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