अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महंत नरेंद्र गिरि की मौत ने उनके भक्तों को मायूस कर दिया है। पूरे राष्ट्र को संघर्ष के लिए प्रेरित करने वाला व्यक्ति क्या फांसी लगाकर आत्महत्या कर सकता है इसी सवाल ने लोगों को व्याकुल कर रखा है? महंत नरेंद्र गिरि की आत्महत्या के बाद उनकी देह को भूसमाधि दे दी गई है और सीबीआई लगातार इस पूरे मामले की जांच कर रही है। पता चला है कि इसी आखिरी वसीयत को बदलने के लिए महंत पर दबाव बनाया जा रहा था। किसी भी हद तक जाकर महंत को वसीयत बदलने के लिए मजबूर करने वाले कौन थे? अब यह बड़ा सवाल हो गया है।
मठ की अपार संपदा को लेकर महंत की आखिरी वसीयत ही इस विवाद की जड़ बताई जा रही है। सर्वोच्च धार्मिक संस्था अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष के तौर पर नरेंद्र गिरि ताकतवर भी थे और बेशुमार दौलत वाली गद्दी पर आसीन होने की वजह से वैभवशाली भी थे। वर्ष 2000 में पहली बार उनके शिष्य बने राजस्थान के भीलवाड़ा निवासी अशोक कुमार चोटिया निरंजनी अखाड़े में संन्यास दीक्षा ग्रहण करने के बाद आनंद गिरि बनकर उनकी सेवा में लग गए थे। महंत नरेंद्र गिरि ने आत्महत्या की थी या फिर उनकी षड्यंत्र के तहत हत्या की गई है इसका खुलासा तो सीबीआई जांच के बाद होगा लेकिन लगातार इस पूरे मामले में नई नई बातें सामने आ रही हैं।