अहमद पटेल का जाना कांग्रेस की मुफलिसी में आटा गीला होने जैसा!

कोरोना संक्रमण से वरिष्ठ नेता अहमद पटेल की मृत्यु के बाद कांग्रेस के अलावा कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी और कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी को बहुत बड़ा नुकसान हुआ है। कांग्रेस पार्टी में अहमद पटेल जैसे नेता का जो कद था, इतनी बड़ी जगह को भरना कांग्रेस के लिए मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।

0
470

गांधी जी के गुजरात की खासियत है कि यहां राजनीति, राजनीति नहीं क्रांति जैसी होती है। अंधेरों में भी क्रांति की मशाल अपने उद्देश्यों की मंजिल खोज लेती है। मेहनत, अनुशासन, संघर्ष और देशहित का जज्बा गुजरात की मिट्टी की ख़ासियत है। महात्मा गांधी के जज्बे से लेकर नरेंद्र मोदी का सफर सबने देखा। इसी सूबे की मिट्टी से महकते अमित शाह से लेकर अहमद पटेल अपनी-अपनी पार्टियों के लिए वफादार, ईमानदार और पारस साबित हुए हैं। कोरोना संक्रमण से वरिष्ठ नेता अहमद पटेल की मृत्यु के बाद कांग्रेस को बड़ा नुकसान हुआ है। इतनी बड़ी जगह भर पाना मुश्किल नहीं नामुमकिन है। धनाभाव हो, पर्याप्त राशन ना हो। बस ज़रा सा ही आटा हो जिसे गूंधने में गलती से पानी ज्यादा पड़ जाये और आटा गीला हो जाए तो इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे।

ऐसे ही कुछ कांग्रेस के साथ हो रहा है। ख़राब वक्त में बुरा ये हुआ कि कांग्रेस का दिमाग़ कहे जाने वाले वरिष्ठ कांग्रेसी अहमद पटेल अल्ला के प्यारे हो गये। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी के साथ काम कर चुके अहमद पटेल कांग्रेस की पांच दशक की हर पर्त में शामिल थे। उन्होंने राजनीति में आने से हिचकने वाली सोनिया गांधी को राजनीति गुर सिखाये थे।

अहमद पटेल के जाने से कांग्रेस की कमर टूट गयी है

गांधी के विचारों की जमीन पर फली-फूली कांग्रेस ने गांधी के गुजरात के लाल अहमद पटेल पर हमेशा भरोसा किया। नेहरू परिवार की चार पीढ़ियों के करीबी, ये पार्टी के चाणक्य समझे जाते थे। हर तरह से अपनी पार्टी के लिए अहम उनका अहमद होना भी असम था और पटेल होना भी। पंडित नेहरू के लिए सरदार पटेल जितने अहम थे उस दौर के करीब 60-70 बरस बाद सोनिया गांधी के लिए अहमद पटेल उतने ही कीमती थे।

उनकी तमाम खासियते थीं, गजब की सादगी थी उनमें। अनुशासन उनकी ताकत थी, मीडिया से दूरी बनाये रखना और धैर्य और संयम का दामन थामे रहना उनकी खूबी थी। राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को काबू रखना, क्रोध और पद की हवस में कभी बेकाबू ना होना उनकी राजनीतिक दक्षता थी। कांग्रेस के ही नहीं भाजपा और अन्य गैरकांग्रेसी दलों के तमाम नेता उन्हें बड़ा भाई मानते थे, और बहुत कुछ उनसे सीखते थे।

गुजरात में बड़े भाई को मोटा भाई कहा जाता है। हमारे समाज में बड़े भाई को संकटमोचन यानी हर मुश्किल हल करने वाला कहा जाता है। जब हमे किसी से काम लेना होता है तो हम कहते हैं- बड़े भाई ये काम कर दो, आप ही ये कर सकते हो! शायद इसलिए ही देश के मौजूदा सत्तारूढ़ दल भाजपा का मोटा भाई गृहमंत्री अमित शाह को कहा जाता है और देश के विपक्षी दल कांग्रेस का मोटा भाई अहमद पटेल को कहा जाता था। दोनों का ही ताल्लुक गुजरात से रहा। ये दोनों ही अपनी-अपनी पार्टी के चाणक्य, दिमाग या मैनेजमेंट गुरु भी कहलाये।

गौरतलब है कि कांगेस लगातार संकट पर संकट झेल रही है। लगातार हार की हताशा और निराशा ने बड़े-बड़ों में कुंठा पैदा कर दी है। देश की सबसे पुरानी पार्टी में नये नेता तैयार नहीं हो पाये। या ये कहिए कि उभर ना सके। पुराने निष्क्रिय हो गये या निष्क्रिय कर दिये गए। बचे-कुचे सक्रिय पुराने कांग्रेसी नेताओं में बगावत के लक्षण दिखने लगे। ऐसे में अहमद पटेल जैसे वफादार का जाना कांग्रेस के लिए मुफलिसी में आटा गीला होना जैसा संकट है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here