मराठा आरक्षण के मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को एक नोटिस जारी किया और सभी राज्य से पूछा क्या आरक्षण को 50% तक बढ़ाना ठीक है या नहीं? फिलहाल इस सुनवाई को 15 मार्च तक के लिए टाल दिया गया है।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरक्षण के मसले पर सभी राज्यों को सुनना जरूरी है।आज हुई सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि इस मामले में आर्टिकल 342ए की व्याख्या भी शामिल हैं, जो कि सभी राज्यों को प्रभावित करेगा। इसलिए सभी राज्यों को भी सुनना चाहिए। इसके लिए एक याचिका भी दाखिल की गई है। बिना सभी राज्यों के सुने इस मामले में फैसला नहीं किया जाना चाहिए।
महाराष्ट्र सरकार के द्वारा मराठाओं को आरक्षण देने की बात काफी समय से कही जा रही है । जिसके बाद 2018 में राज्य सरकार ने शिक्षा और नौकरी में 16 फीसदी आरक्षण देने के लिए एक कानून बनाया। इसके बाद यह मामला हाईकोर्ट पहुंचा था, जहां कोर्ट ने अपने एक फैसले में इसकी सीमा को कम कर दिया था। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
सुप्रीम कोर्ट ने 9 सितंबर के अपने एक अंतरिम आदेश में कहा है कि साल 2020-2021 में नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में एडमिशन के दौरान मराठा आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। तीन जजों की बेंच ने इस मामले को विचार के लिए एक बड़ी बेंच के पास भेजा है। कोर्ट ने कहा कि यह बेंच मराठा आरक्षण की वैधता पर विचार करेगी। जिसके बाद अब पांच जजों की पीठ इस मामले पर सुनवाई कर रही है।
जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है। इसमें जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस एस अब्दुल नजीर, जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस एस रवींद्र भट शामिल हैं। इससे पहले बेंच ने कहा था कि वह इस मुद्दे पर भी दलीलें सुनेगा कि इंदिरा साहनी मामले में ऐतिहासिक फैसला जिसे मंडल फैसला के नाम से जाना जाता है उस पर दोबारा विचार करने की आवश्यकता है या नहीं।