BHU के निर्माण के लिए निजाम की जूती को नीलाम करने वाले “मदन मोहन” की कहानी, अंदर तक हिलाने वाला था आत्मविश्वास

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय भारत के उन शीर्ष ज्ञानियों तथा महापुरुषों में गिने जाते हैं जिनके बल पर भारत की सभ्यता आधुनिकता के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही है। लेकिन एक दौर ऐसा भी था और जब मदन मोहन मालवीय को द्वार द्वार जाकर इस यूनिवर्सिटी के लिए चंदा मांगना पड़ा था।

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आज 25 दिसंबर है आज के दिन दो महापुरुषों का जन्म हुआ था पहले पंडित महामना मदन मोहन मालवीय और दूसरे भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई। पंडित मदन मोहन मालवीय के व्यक्तित्व से हर कोई परिचित है उनकी हाजिर जवाबी और उनके ज्ञान के आगे भारत के बहुत सारे लोग मस्तक झुकाया करते थे। बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी जिसमें पढ़ने के पश्चात बहुत सारे लोग अपने जीवन को सफल मानते हैं। उसे स्थापित करने जैसा दुर्गम का कार्य पंडित मदन मोहन मालवीय के हाथों द्वारा हुआ था।

लेकिन ऐसा नहीं था कि इस यूनिवर्सिटी को बनाने में मदन मोहन मालवीय को बहुत आसानी हुई बल्कि इसके लिए उन्हें बहुत कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ा।मदन मोहन मालवीय ने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी की स्थापना साल 1916 में की थी। इसके बाद वो 20 साल तक बीएचयू के वाइस चांसलर भी रहे। इसके साथ ही साल 1924 से 1946 तक वो हिंदुस्तान टाइम्स के चेयरमैन भी रहे। मदन मोहन मालवीय जी हिंदी संस्कृत और अंग्रेजी तीनों भाषाओं के ज्ञानी थे। पत्रकारिता के क्षेत्र में पंडित मदन मोहन मालवीय का योगदान आज भी स्मरणीय है।

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के निर्माण के लिए जब मदन मोहन मालवीय पूरे देश में चंदा लेने के लिए निकले तो एक समय वह हैदराबाद पहुंचे। उन्होंने हैदराबाद के निजाम से इस यूनिवर्सिटी को बनाने के लिए मदद मांगी। हैदराबाद के निजाम ने अहंकार में आते हुए मदद करने से मना कर दिया और पंडित जी का अपमान भी किया। निजाम ने बदतमीजी करते हुए कहा कि दान में देने के लिए मेरे पास केवल जूती है। विनम्र स्वभाव वाले मदन मोहन मालवीय निजाम की जूती उठा कर ले आए और निजाम को ऐसा सबक सिखाया जो इतिहास में आज भी दर्ज है।

मदन मोहन मालवीय ने उसी हैदराबाद के चौराहे पर बैठकर हैदराबाद के निजाम की जूती गई नीलामी शुरू कर दी। बोलियां लगती चली गई और जब यह बात निजाम को पता चली तो निजाम को लगा कि मेरी इज्जत की बोलियां लग रही है। अपने सम्मान को बचाने के लिए निजाम ने आदर पूर्वक मदन मोहन मालवीय को अपने आप बुलाया और भारी-भरकम रकम देकर उन्हें विदा किया।

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय बनाने के लिए मदन मोहन मालवीय को 1360 एकड़ जमीन दान में मिली थी।इसमें 11 गांव, 70 हजार पेड़, 100 पक्के कुएं, 20 कच्चे कुएं, 40 पक्के मकान, 860 कच्चे मकान, एक मंदिर और एक धर्मशाला शामिल था। मालवीय ने विश्वविद्यालय निर्माण में चंदे के लिए पेशावर से लेकर कन्याकुमारी तक की यात्रा की थी। उन्होंने 1 करोड़ 64 लाख की रकम जमा कर ली थी।

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