शोधकर्ताओं ने कहा कोरोना को हराने के लिए पूर्ण रूप से वैक्सीन पर निर्भर नहीं रहा जा सकता

ब्रिटेन के अलावा ब्राजील, अमेरिका और भारत जैसे ज्यादा संक्रमण दर वाले क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर वैक्सीन के ट्रायल करने की बात कही है।

0
326
प्रतीकात्मक चित्र

ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा तैयार वैक्सीन के परीक्षण के परिणाम सामने आने के बाद लोगों में एक आस जगी है। इस वैक्सीन के पहले और दूसरे चरण के ह्यूमन ट्रायल में सफल होने की खबर आई। अब अगले चरण में बड़े पैमाने पर ह्यूमन ट्रायल की तैयारी चल रही है। हालांकि कोरोना को हराने के लिए पूर्ण रूप से वैक्सीन पर निर्भर नहीं रहा जा सकता है। इस पर वैज्ञानिकों का भी कहना है कि अभी इस वैक्सीन को लेकर कई चुनौतियां पार करनी बाकी हैं। वैज्ञानिकों का मानना हैं कि वैक्सीन केवल बीमारी की गंभीरता को कम कर सकती है। जिसका मतलब है कि कोरोना वायरस से लोगों के मरने की संभावना कम होगी। शोधकर्ताओं का कहना है कि ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की प्रायोगिक कोरोना वायरस वैक्सीन सुरक्षित है और इसने लगभग 1,000 वालंटियर्स में मजबूत इम्यून रिस्पॉन्स विकसित की है। इससे उम्मीद जगी है कि ये वैक्सीन कोरोना से मची तबाही को कम कर सकती है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी वैक्सीन निर्माण की प्रक्रिया में ट्रायल के इन नतीजों को बड़ी उपलब्धि कहना गलत नहीं होगा, लेकिन ये कहना भी जल्दबाजी होगी कि ये वैक्सीन संक्रमण को पूरी तरह से रोक सकती है। इस वैक्सीन को अभी कई तरह की मुश्किलें पार करनी होंगी। ब्रिटेन के अलावा ब्राजील, अमेरिका और भारत जैसे ज्यादा संक्रमण दर वाले क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर ट्रायल करना है। इससे ये पता लगाने में आसानी होगी कि क्या दूसरे लोगों की तुलना में वैक्सीन कराने वाले लोगों में कोरोना वायरस संक्रमण की संभावना कम होगी। दूसरी ओर इसको लेकर लोगों के मन में कई तरह के सवाल हैं। जैसे कि यह भारत में कबतक आएगी, लोगों को कैसे उपलब्ध कराई जाएगी, कीमत कितनी होगी। स्टडी के प्रमुख लेखक प्रोफेसर एंड्रयू पोलार्ड ने ऑक्सफोर्ड के नतीजों को एक मील का पत्थर बताया और यह कहा कि समस्या ये है कि हम ये नहीं जानते हैं कि आक्रामक वायरस से सुरक्षा देने के लिए इस वैक्सीन को किस स्तर पर देने की जरूरत होगी और इसके लिए हमें और क्लिनिकल ट्रायल करने की जरूरत होगी।

और पढ़ें: रूस ने किया कोरोना की वैक्सीन बनाने का दावा

वैक्सीन के कारगर होने की संभावना पर अटलांटा में ‘एमोरी यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन’ के एग्जीक्यूटिव एसोसिएटिव डीन डॉ. कार्लोस डेल रियो ने कहा कि अगर हम कोई विमान बना रहे हैं तो समझ लीजिए अभी हम उसके प्रोडक्शन लेवल पर हैं। अभी सिर्फ इतना कहा जा सकता है कि ये विमान आपको सुरक्षित जमीन पर उतार सकता है। लेकिन सवाल ये है कि क्या ये मुझे यहां से पैरिस लेकर जा सकता है? उन्होंने कहा कि वैक्सीन की खोज में अब तक हम असाधारण गति से आगे बढ़े हैं। आमतौर पर, एक वैक्सीन की टेस्टिंग और ट्रायल के कई अलग-अलग स्टेज को पूरा होने में एक दशक तक लग जाता है। लेकिन 6,00,000 से ज्यादा लोगों को मौत की नींद सुलाने वाली अचानक फैली इस महामारी का ही नतीजा है कि दुनियाभर में दर्जनों वैक्सीन कैंडिडेट्स क्लिनिकल ट्रायल में हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here