बने चाहे दुश्मन जमाना हमारा, सलामत रहे दोस्ताना हमारा! अटल और आडवाणी की दोस्ती के किस्से

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क्या आपने राजनीति में दोस्ती निभाते हुए नेताओं को देखा है? क्या आपने कभी देखा है कि कोई राजनेता अपने हाथों में आई कुर्सी को केवल इसलिए त्याग दे क्योंकि उसे यह लगता है कि मेरा मित्र मुझसे अच्छी तरह इस राजनीति को चला सकता है? जी हां यह असंभव लगने वाला काम अटल और आडवाणी की जोड़ी ने किया था। वर्तमान राजनीति में ऐसी कोई जोड़ी नहीं है जो अटल और आडवाणी की जोड़ी को टक्कर दे सकती हो।

भिन्न-भिन्न मुद्दों पर भिन्न-भिन्न राय होने के बावजूद भी अटल और आडवाणी का साथ कभी नहीं टूटा। आप सभी ने शायद देखा होगा जब आडवाणी जी अटल जी को अंतिम विदाई दे रहे थे तब आडवाणी के हाथ कांप रहे थे और वह मुड़ कर अपने साथी अटल बिहारी वाजपेई के साथ गुजारे पलों को याद कर रहे थे और उनकी आंखों से आंसू गिर रहे थे। यह आंसू अटल जी के साथ बिताए उन पलों के थे जिन पलों को बताने के लिए आज के युवा तरसते हैं। यह कहा जाता है कि अटल और आडवाणी अपने पुराने जमाने में एक साथ मिलकर पुरानी दिल्ली चाट खाने जाया करते थे और दोनों साथ-साथ फिल्में भी देखते थे।

आडवाणी की पत्नी कमला आडवाणी बनती थीं संकट मोचन

जब भी अटल जी और आडवाणी के बीच मनमुटाव होता था तब ऐसे में संकट मोचन बनकर लालकृष्ण आडवाणी की पत्नी कमला आडवाणी दोनों को एक साथ डिनर पर इनवाइट करती थीं। इस डिनर के दौरान लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी के सारे गिले-शिकवे की समाप्ति हो जाती थी और फिर अटल और आडवाणी की जोड़ी और भी अटूट बन जाती थी।

दोस्ती का सम्मान

आडवाणी जी ने हमेशा अटल बिहारी वाजपेयी के व्यक्तित्व का सम्मान किया और हमेशा यह माना कि पार्टी में आडवाणी से बेहतर भी एक नेता है। जिसका नाम है अटल बिहारी वाजपेयी। लालकृष्ण आडवाणी का मानना था कि अटल बिहारी वाजपेयी जैसा वक्ता उस समय भारत की राजनीति में कोई नहीं था। वह कई बार खुले मंच से अटल बिहारी वाजपेयी की तारीफ कर चुके थे। एक बार अटल जी से आडवाणी ने कहा था, ” आपकी तरह हजारों की भीड़ के सामने खड़े होकर भाषण देने की कला मुझे आज तक नहीं आई।” आडवाणी जी हमेशा यह कहते हैं कि अब तक अटल बिहारी वाजपेयी जैसा प्रधानमंत्री भारत को दूसरा नहीं मिला।

अटल और आडवाणी में समानताएं

अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी में बहुत सी समानताएं थी और बहुत से विपरीत बोध भी थे।

• अटल और आडवाणी दोनों ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक थे।
• अटल और आडवाणी दोनों ही हिंदूवादी छवि के कारण जन जन में पहचाने जाते थे।
• अटल और आडवाणी दोनों को ही पत्रकारिता और सिनेमा से बेहद लगाव था।
• अटल और आडवाणी जनसंघ के बाद जनता पार्टी बनाने के पक्ष में थे।
• अटल और आडवाणी आपातकाल के दौरान एक साथ जेल गए।
• 1977 की सरकार में अटल जी विदेश मंत्री बने और आडवाणी सूचना प्रसारण मंत्री बने।
• 1999 में एनडीए की सरकार में अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने और लालकृष्ण आडवाणी बने गृहमंत्री!

अबकी बारी, अटल बिहारी : एल. के.आडवाणी

जब भारतीय जनता पार्टी बनी थी तब भारतीय जनता पार्टी के दो प्रमुख नेता थे अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी। 1984 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 2 सीटें हासिल हुईं। जिसके बाद धीरे-धीरे अपनी हिंदुत्ववादी छवि के कारण लालकृष्ण आडवाणी अटल जी की छवि पर हावी होने लगे थे। इस समय हिंदुत्व की लहर के कारण लाल कृष्ण आडवाणी एक राजनेता से जन-जन के नेता के रूप में पहचाने जाने लगे थे। 80 के दशक में लालकृष्ण आडवाणी की लहर भारतीय जनता पार्टी में अटल जी की लहर से आगे चल रही थी। लेकिन एक ऐसा भी दौर आया जब लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी दोस्ती को सत्य साबित किया। भारतीय राजनीति में ऐसे राजनेताओं की ऐसी दोस्ती भी शायद कभी नहीं देखी गई हो।

घटना थी 12 नवंबर 1995 की, दूर-दूर तक भगवा ध्वज के ऊपर कमल का फूल लहरा रहा था। असंख्य लोगों की भीड़ केवल एक बात सुनने के लिए तैयार थी कि अब इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी किसके नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी। सब का मानना था कि लालकृष्ण आडवाणी की छवि इस समय बहुत आगे है इसीलिए लालकृष्ण आडवाणी खुद ही पार्टी के सूत्रधार और नेतृत्वकर्ता होंगे। लेकिन लालकृष्ण आडवाणी ने माइक पर आकर जो कहा उस पर अटल बिहारी वाजपेई को भी विश्वास नहीं हुआ। लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था, “1996 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी और 1996 में हमारे प्रधानमंत्री होंगे अटल बिहारी बाजपेयी ।उन्होंने नारा दिया “अबकी बारी अटल बिहारी!” अटल जी ने इस बारे में लालकृष्ण आडवाणी से दोबारा बात की तब आडवाणी ने कहा कि मैं पार्टी का अध्यक्ष हूं और मैंने यह घोषणा कर दी है।

बहुत लंबे समय तक एक साथ रहने के बाद 2004 में अटल बिहारी वाजपेई ने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया और एकांत में चले गए। 2004 के बाद अटल बिहारी वाजपेयी शायद ही कभी दिखाई दिए। आज अटल जी नहीं है लेकिन अटल जी के साथ जुड़ी हुई पुण्य स्मृतियां हमें यह दिखाती है कि इस धरती पर एक ऐसा भी व्यक्ति आया था जिसने भारतीय राजनीति को एक नया मुकाम दिया था।

वर्तमान में भारतीय राजनीति में अटल बिहारी वाजपेयी जैसी राजनीति करने वाला कोई भी व्यक्ति नहीं है।

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