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क्या है भारत पाकिस्तान के बीच हुआ शिमला समझौता ? जाने इस समझौते से जुडी बड़ी बातें

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साल 2019 में जब केंद्र में मोदी सरकार ने लगातार दूसरी बार शपथ ली तो हर किसी की नजर इसी पर थी कि सरकार अनुच्छेद 370 को लेकर किए गए अपने वादे को कितनी जल्द पूरा करती है। भारत से ज्यादा पाकिस्तान की नजरें आर्टिकल 370 को हटाए जाने पर टिकी हुई थी। क्योंकि पाकिस्तान कभी नहीं चाहता था कि जम्मू-कश्मीर से इस धारा को पूरी तरह से खत्म किया जाए। अब जब सरकार बनने के बाद सदन की पहली ही कार्यवाही में मोदी सरकार ने आर्टिकल 370 को पूरी तरह से खत्म कर ही दिया है तो ऐसे में पाकिस्तान का तिलिमिलाना जायज था।

इस समय पाकिस्तान पूरी तरह से बौखलाया हुआ है। दोनों देशों के बीच चलने वाली समझौता एक्सप्रेस ट्रेन को भी पाकिस्तान ने रोक दी है। इसके अलावा पाकिस्तान ने इस बात के भी संकेत दे दिए है कि वो भारत के साथ व्यापार पर भी रोक लगा सकता है। लेकिन पाक देश इस समय शिमला समझौते (shimla samjhota) का हवाला देते हुए संयुक्त राष्ट्र से इस मामले में दखल देने की अपील कर रहा है।

वहीं, संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस ने भी शिमला समझौते (shimla samjhota) का जिक्र करते हुए दोनों देशों के बीच मध्यस्थता से इनकार कर दिया। सयुंक्त राष्ट्र की तरफ से पाकिस्तान के लिए ये एक बड़ा झटका भी है। अब सवाल ये है कि आखिर ये शिमला समझौता है क्या? जिसके चलते पाकिस्तान भारत से अनुच्छेद 370 पर लिए गए फैसले को वापस लेने की बात कर रहा है।

कब हुआ था शिमला समझौता

भारत और पाकिस्तान के बीच शिमला समझौता (shimla samjhota) साल 1972 में हुआ था। उस समय इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री थी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जुल्फ़िक़ार अली भुट्टो थे। 1972 से ठीक एक साल पहले 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान 90 हजार पाक सैनिकों को बंदी बना लिया गया था। जिसके बाद सैनिकों की रिहाई की कवायद शुरू हुई। दोनों देशों के बीच बेहतर संबंध के लिए 2 जुलाई 1972 को शिमला में एक समझौता हुआ। जिस पर भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने हस्ताक्षर किए थे। इसी समझौते को शिमला समझौता के नाम से जाना जाता है।

जाने इस समझौते से जुड़ी बड़ी बातें

1. दोनों देशों के बीच यह समझौता इसी के तहत हुआ था कि भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में सुधार आए और दोनों देश शांति बनाए रखने और एक दूसरे का सहयोग करने का संकल्प लें।
2. 1971 में इसी समझौते के साथ भारत और पाक के बीच युद्ध को विराम दिया गया और तय हुआ कि 20 दिनों के अंदर दोनों देशों की सेनाएं अपनी-अपनी सीमा में चली जाएंगी।
3. शिमला समझौते के तहत सबसे बड़ा फैसला ये लिया गया कि दोनों देशों के बीच आपसी मतभेद सिर्फ इन देशों के अधिकारी ही सुलझाएंगे। तीसरे किसी देश की मध्यस्थता नहीं की जाएगी।
4. यह भी तय हुआ कि जहां तक संभव होगा, व्यापार और आर्थिक सहयोग फिर से स्थापित किए जाएंगे।
5. अगर दोनों देशों के बीच मतभेद आपसी सहमती से दूर नहीं होते तो उस स्तिथी में दोनों पक्ष में से कोई भी बदलाव करने की एकतरफा कोशिश नहीं करेगा।
6. शांति की स्थापना, युद्धबंदियों और शहरी बंदियों की अदला-बदला के सवाल, जम्मू-कश्मीर के अंतिम निपटारे और राजनयिक संबंधों को सामान्य करने की संभावनाओं पर काम करने के लिए दोनों पक्षों के प्रतिनिधि मिलते रहेंगे और आपस में चर्चा करेंगे।

अभी एक साल भी पूरा नहीं हुआ था और दिल्ली ने अपने 3 पूर्व मुख्यमंत्रियों को खो दिया

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दिल्ली के विधानसभा चुनावों का बिगुल बजने में अब बस कुछ ही महीनों का समय बाकि रह गया है। सभी राजनीतिक पार्टियां लुभावने वादें कर जनता को अपने पक्ष में करने में जुट गई है। लेकिन दिल्ली वासियों के लिए पिछला एक साल अगर राजनीतिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो इतना आसान नहीं रहा। पिछले एक साल से भी कम समय में दिल्लीवासियों ने अपने उन 3 पूर्व मुख्यमंत्रियों (Chief Minister) को खो दिया जिन्हें यहां के लोग शायद ही कभी अपने ज़हन से बाहर रख पाएंगे।

हाल ही में मंगलवार को देश की पूर्व विदेश मंत्री और दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री (Ex. Cheif Minister) सुषमा स्वराज ने आखिरी सांस ली। स्वराज बीजेपी के कद्दावर और फायर ब्रांड नेताओं में गिनी जाती थीं। उनकी उम्र 67 साल की थी। अपने सरल स्वभाव और ओजस्वी भाषण से भारतीय राजनीति में अलग पहचान रखने वाली सुषमा स्वराज केंद्रीय मंत्री बनने से पहले दिल्ली की सीएम भी रही थी। उनके निधन के साथ ही पिछले एक साल में दिल्ली के 3 पूर्व मुख्यमंत्री दिल्ली की जनता को छोड़ कर चले गए। आइए आपको बताते है उनके बारे में।

मदनलाल खुराना

साल 1993 से 1996 तक दिल्ली के मुख्यमंत्री (Chief Minister) रहे मदन लाल खुराना का निधन पिछले साल अक्टूबर में हो गया था। उन्होंने 82 वर्ष की उम्र में आखिरी सांस ली। दिल्ली के सीएम के अलावा उन्हें 2004 में राजस्थान का राज्यपाल भी नियुक्त किया गया था। दिल्ली के सीएम रहते उन्होंने कई ऐसे कार्य किये जिन्हें दिल्लीवासी शायद ही कभी भूल पाएं। मदन लाल खुराना ने विजय कुमार मल्होत्रा व अन्य के साथ मिलकर दिल्ली में जनसंघ के केंद्र की स्थापना की थी, जिसे आगे चलकर बीजेपी के रूप में जाना गया। मदनलाल खुराना को दिल्ली का शेर भी कहा जाता था, जिसके चलते उन्हें वाजपेयी सरकार में केंद्रीय मंत्री भी चुना गया था।

शीला दीक्षित

दिल्ली की छवि को अर्श से फर्श तक अगर कोई मुख्यमंत्री (Chief Minister) लेकर गया तो वो थी शीला दीक्षित। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का इस साल जुलाई में निधन हो गया था। शीला दीक्षित वर्ष 1998 में दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं और करीब 15 साल तक दिल्ली की मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। इन 15 सालों में अगर कांग्रेस ने दिल्ली में राज़ किया तो उसमें शीला दीक्षित की अहम भूमिका थी। बता दें कि वर्ष 2014 में उन्हें केरल का राज्यपाल भी नियुक्त किया गया था, लेकिन कुछ महीनों बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था। इसके अलावा शीला दीक्षित साल 1984 से 1989 तक उत्तर प्रदेश के कन्नौज से लोकसभा सदस्य रहीं।

सुषमा स्वराज

देश की आयरन लेडी कही जाने वाली सुषमा स्वराज ने 6 जुलाई 2019 को दुनिया को अलविदा कह दिया। सुषमा स्वराज 25 साल की उम्र में विधायक बनने में वाली सबसे कम उम्र की महिला थी। उन्होंने 25 साल की उम्र में पहली बार हरियाणा की अंबाला सीट से चुनाव लड़ा था। इसके बाद 1987 से 1990 तक हरियाणा सरकार में मंत्री भी रहीं। सुषमा स्वराज साल 1996 में पहली बार दक्षिणी दिल्ली से लोकसभा चुनाव चुनाव जीतीं और 13 दिन की सरकार में सूचना प्रसारण मंत्री बनी। इसके बाद उन्होंने 12 अक्टूबर 1998 को दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। शीला दीक्षित के बाद सुषमा स्वराज दिल्ली की दूसरी महिला मुख्यमंत्री रही। उनके राजनीतिक सफर को देखते हुए 2014 में मोदी सरकार ने सुषमा स्वराज को विदेश मंत्री का कार्यभार सौंपा। लेकिन 2019 में खराब स्वास्थ्य के चलते उन्होंने लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा।

मोदी सरकार के 9 ऐतिहासिक फैसले ! जो बदल देंगे जम्मू-कश्मीर की तस्वीर

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जम्मू-कश्मीर (Jammu & Kashmir) का इतिहास और इस राज्य की समस्या आज तक किसी से छिपी नहीं है। सरकारें बदलती गयी, समय बदलता गया लेकिन अगर कुछ नहीं बदला तो वो था जम्मू- कश्मीर का विकास। आज़ादी के बाद से आजतक जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को लेकर एक लंबी बहस चली आ रही है। इस विवाद को खत्म करने के लिए एक ऐसी राजनीतिक पार्टी की जरुरत थी जो कड़े फैसले ले सके। वो फैसले जो आज तक किसी पार्टी के अंदर लेने की हिम्मत तक पैदा न हुई हो।

लेकिन प्रचंड बहुमत से लगातार दूसरी बार सत्ता संभालने वाली मोदी सरकार ने बता दिया कि उन्हें बड़े से बड़े फैसले आसानी से लेने वाली सरकार क्यों कहा जाता है। हाल ही में मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को पूरी तरह से खत्म कर दिया। पिछले 70 सालों में ये फैसला किसी सरकार के जहन में भी नहीं आया।

2014 के बाद सत्ता संभालने वाली मोदी सरकार 370 हटाने के अलावा पहले भी इस राज्य को लेकर कई बड़े फैसले ले चुकी है। आज हम आपको मोदी सरकार के उन्ही फैसलों के बारे में बताने वाले है तो जम्मू-कश्मीर (Jammu & Kashmir) की तस्वीर बदल कर रख देंगे।

अलगाववादियों की सुरक्षा हटाई

पुलवामा हमले के बाद मोदी सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में कई बड़े फैसले लिए थे। इसमें से एक फैसला जम्मू-कश्मीर के अलगाववादियों की सुरक्षा हटाए जाने का भी था। कई अलगाववादी नेताओं का नाम टेरर फंडिंग में था जिसके चलते मोदी सरकार ने पिछले कार्यकाल में जम्मू-कश्मीर (Jammu & Kashmir) के 18 अलगाववादियों और 155 नेताओं का सुरक्षा कवर हटाने का फैसला किया था। इन नामों में पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के करीबी वाहिद मुफ्ती और पूर्व आईएएस अधिकारी शाह फैसल, आगा सैयद मोस्वी और मौलवी अब्बास अंसारी जैसे नाम शामिल रहे।

ऑपरेशन ऑल-आउट

घाटी में आतंकियों की बढ़ती गतिविधियों को देखते हुए मोदी सरकार ने 2017 में ऑपरेशन ऑल-आउट चलाया था। इस ऑपरेशन के तहत घाटी में 2017 और 2018 के बीच सुरक्षाबलों ने 250 से ज्यादा आतंकी मार गिराए थे। इस ऑपरेशन के जरिए सरकार आतंकी संगठनों की कमर तोड़ने में सफल रही।

7 साल के बाद फिर हुआ पंचायत चुनाव

घाटी में सुरक्षा कारणों को मद्देनजर रखते हुए विधानसभा चुनावों के अलावा पंचायत चुनावों पर भी रोक लगती आ रही थी। पंचायतों का कार्यकाल 2016 में ही खत्म हो गया था लेकिन 2018 के अक्टूबर महीने में केंद्र सरकार पंचायत चुनाव कराने में सफल रही। इस प्रक्रिया के तहत कुल 316 प्रखंडों के 4490 पंचायतों में चुनाव कराए गए।

समस्या के हल के लिए नियुक्त हुआ वार्ताकार

मोदी सरकार ने कश्मीर समस्या के हल के लिए 2017 में आईबी के पूर्व डायरेक्टर दिनेश्वर शर्मा को वार्ताकार नियुक्त किया। दिनेश्वर शर्मा को वार्ताकार नियुक्त करने का सबसे बड़ा कारण जम्मू-कश्मीर की ज्यादा से ज्यादा समस्या को बातचीत से हल करना था। अब तक वह जम्मू-कश्मीर (Jammu & Kashmir) के कई नेताओं और विभिन्न प्रतिनिधिमंडल से वार्ताएं कर चुके है।

घाटी के विकास के लिए आवंटित हुए 3700 करोड़

मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर के गांवों के विकास के लिए केंद्र सरकार की तरफ से 3700 करोड़ रुपये आवंटित किए। हाल में गृह मंत्री अमित शाह ने बताया था कि केन्द्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर के लिए 3700 करोड़ रुपए आवंटित किए है, जिन्हें सीधे पंचायतों को भेजा जा रहा है।

महबूबा मुफ़्ती और फारूक अब्दुल्ला पर कसा शिकंजा

दूसरी बार सत्ता सँभालते ही मोदी सरकार ने सबस पहले महबूबा मुफ्ती और फारूक अब्दुल्ला पर शिकंजा कसना शुरू किया। हाल ही में जम्मू-कश्मीर क्रिकेट बोर्ड में हुए 113 करोड़ से अधिक घोटाले के मामले में ईडी ने चंडीगढ़ में फारूक अब्दुल्ला से पूछताछ की जबकि जम्मू -कश्मीर बैंक में सिफारिश के आधार पर हुई 1200 से अधिक नियुक्तियों के मसले पर एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) ने पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती को नोटिस जारी कर जवाब मंगा है।


जम्मू-कश्मीर के बैंक चेयरमैन को किया बर्खास्त

जम्मू-कश्मीर बैंक में फर्जी नियुक्तियों और कथित टेरर फंडिंग के आरोपों में जम्मू-कश्मीर बैंक के चेयरमैन पद से परवेज अहमद को हटा दिया गया। उनकी जगह हाल ही में ये पद आरके छिब्बर को दिया गया है।

जम्मू-कश्मीर के लिए आरक्षण संशोधन बिल

मोदी सरकार की ओर से लाया गया यह विधेयक लोकसभा में पास हो चुका है। अब इसे राज्यसभा में पेश किया जाएगा। घाटी के विकास के लिए ये बिल काफी लाभदायक होगा। इस विधेयक के तहत जम्मू कश्मीर में अंतरराष्ट्रीय सीमा के 10 किलोमीटर के दायरे में रहने वाले लोगों को शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 3 फीसदी आरक्षण को विस्तार दिया गया है।

धारा 370 का सफाया

पिछले 70 सालों में जम्मू-कश्मीर को लेकर जो सरकार फैसला नहीं ले पाई वो सत्तारूढ़ मोदी सरकार ने लिया। जम्मू-कश्मीर का नया अध्याय लिखने के लिए केंद्र सरकार ने धारा 370 को पूरी तरह से खत्म कर दिया है। जम्मू-कश्मीर (Jammu & Kashmir) को जहां केंद्रशासित प्रदेश बनाने का फैसला किया गया, वहीं लद्दाख को अलग राज्य बनाए जाने की घोषणा की गई। 370 हटने के साथ ही अब जम्मू- कश्मीर में एक नयी सुबह की शुरुआत होगी।

Image Source: Wikipedia

अब सिर्फ यादों में रहे जायेगी धारा 370 – मोदी है तो मुमकिन है!

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जम्मू कश्मीर में हर दिन की शुरुआत एक नई हलचल के साथ हो रही थी। हर किसी को सिर्फ इसी बात का आभास था कि कश्मीर राज्य में कुछ बड़ा होने वाला है। वहीं अब कश्मीर की हलचल दिल्ली के राजनितिक गलियारे में भी दस्तक दे चुकी है। मोदी सरकार ने राज्यसभा की कार्यवाही के शुरुआत में ही कश्मीर पर ऐतिहासिक फैसला (Article 370) सुना दिया है।

गृह मंत्री अमित शाह ने राज्‍यसभा में बड़ा ऐलान करते हुए जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने का संकल्प पेश किया। जिसे राज्यसभा में वोटिंग के बाद मंजूरी मिल गई है। राज्यसभा में ये बिल पास होने के बाद अब अनुच्छेद 370 कश्मीर से निष्प्रभावी हो जाएगा। बता दें कि जम्मू-कश्मीर के लोगों को विशेषाधिकार देने वाला अनुच्छेद 35-ए भी अनुच्छेद 370 (Article 370) के अधीन ही आता है।

गृहमंत्री ने कहा आर्टिकल 370 के सभी खंड जम्मू कश्मीर में लागू नहीं होंगे। इसके साथ ही आर्टिकल 35-A को भी हटा दिया गया है। अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक भी सदन में पेश किया था जिसे भी मंजूरी मिल गई है। इस बिल के पास होने के साथ ही अब कश्मीर राज्य से सभी विशेष दर्जों को छीन लिया जाएगा।

वोटिंग के बाद संसद में 370 को हटाने पर मिली मंजूरी

संसद की कार्यवाही में गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के प्रावधान हटाने संबंधी संकल्प के साथ राज्य पुनर्गठन बिल और आरक्षण संशोधन बिल पेश किया जिसे सदन की मंजूरी मिल गई है। पुनर्गठन बिल पर हुई वोटिंग में पक्ष में 125 और विपक्ष में 61 वोट पड़े। इस बिल में जम्मू कश्मीर से लद्दाख को अलग करने और दोनों को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा देने के प्रावधान शामिल है।

370 हटने के साथ ही खत्म हुआ 35A

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 (Article 370) हटाने के बहुप्रतीक्षित फैसले पर राज्यसभा में मोहर लगा दी। इसके साथ ही राज्य में लागू 35ए (विशेष नागरिकता अधिकार) भी स्वतः समाप्त हो गया है। राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 370 के खंड ‘एक’ के तहत अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए और राज्य सरकार की सहमति से अनुच्छेद 35ए को खत्म कर दिया। बता दें कि जम्मू कश्मीर से संबंधित अनुच्छेद 35ए राज्य के लोगों की पहचान और उनके विशेष अधिकारों से संबंधित था।

जम्मू-कश्मीर से अलग हुआ लद्दाख

दूसरी तरफ लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग कर केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया है। हालांकि वहां अलग विधानसभा नहीं होगी। गृहमंत्री अमित शाह ने लद्दाख को अलग केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा दिए जाने का ऐलान किया। जम्मू कश्मीर पुनर्गठन प्रस्ताव के तहत लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश बनाया जाएगा। 2011 की जनगणना के अनुसार लद्दाख की कुल जनसंख्या 2 लाख 74 हजार 289 है। यहां की जनसंख्या मुख्य रूप से लेह और कारगिल के बीच विभाजित है।

हाई अलर्ट पर सभी राज्य

370 हटने के साथ ही केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों को एडवाइजरी जारी की है। उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों को हाई अलर्ट पर रखा गया है। साथ ही हिंसा को रोकने के लिए पुलिस से मॉक ड्रिल चलाने का निर्देश भी जारी किया गया है। जम्मू-कश्मीर में किसी भी हिंसा से निपटने के लिए 8000 सीआरपीएफ जवानों को राज्य रवाना कर दिया गया है। इससे पहले ही अर्धसैनिक बलों में 100 कंपनियां पहले ही घाटी में तैनात है।

धारा 370 पर विरोध का क्या था कारण?

370 को हटाए जाने के पीछे कई बड़े कारण है। आइए जानते है उन कारणों के बारे में-

1. इसी विशेष दर्जे के कारण राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्‍त करने का अधिकार नहीं है।
2. देश के सुप्रीम कोर्ट के सभी आदेश जम्मू-कश्मीर में मान्य नहीं होते थे। जिसके कारण राज्य में कानून का काफी दुरूपयोग भी होता था।
3. जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्षों का होता है जबकि भारत के अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।
4. धारा 370 की वजह से कश्मीर में RTI और RTE लागू नहीं होता।
5. भारतीय संविधान की धारा 360 जिसके अन्तर्गत देश में वित्तीय आपातकाल लगाने का प्रावधान है, वह भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होती।
6. जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता, झंडा भी अलग है। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं होता है।

क्या है 35A?

  • राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने 14 मई 1954 को धारा 370 (Article 370) का इस्तेमाल करते हुए 35A लागू किया था। जम्मू कश्मीर में लागू अनुच्छेद 35A, धारा 370 का हिस्सा है। ऐसे में धारा 370 हटने के बाद 35A भी खुद में खत्म हो जाएगा।
  • 35A के तहत भारतीय नागरिकों के साथ जम्मू कश्मीर में भेदभाव होता है। इसके अलावा जम्मू कश्मीर की लड़की के बाहरी से शादी करने पर राज्‍य की नागरिकता से जुड़े अधिकार खत्म हो जाते है। शादी करने पर लड़की के बच्चों के भी जम्‍मू-कश्‍मीर में अधिकार नहीं माने जाते।
  • इस अनुच्छेद को संसद के जरिए लागू नहीं किया गया है। इसके अलावा भारतीय नागरिकों के साथ जम्मू कश्मीर में भेदभाव होता है।
  • जम्मू कश्मीर में बाहरी राज्यों के लोग संपत्ति नहीं खरीद सकते। भारतीय समुदाय के लोग इस अधिकार से भी वंचित है।

दिल्ली पहुंचा उन्नाव रेप मामला, कोर्ट ने जल्द मांगी सीबीआई से केस की रिपोर्ट

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उत्तर प्रदेश के उन्नाव में लड़की से हुए दुष्कर्म का मामला (Unnao Rape Case) अब दिल्ली आ पहुंचा है। इस केस की गुत्थी इतनी उलझ चुकी है कि कोर्ट को खुद इस केस में कूदना पड़ा है और सीबीआई को पूरे मामले की जाँच के सख्त निर्देश देने पड़े है। उन्नाव की रेप पीड़िता तीन दिन पहले हुए सड़क हादसे में गंभीर रूप से ज़ख्मी होने के बाद से ही जिंदगी और मौत के बीच की लड़ाई लड़ रही है।

ये एक ऐसी वारदात है जिसे अगर राजनीतिक रूप दिया जाए तो इसमें कुछ गलत नहीं होगा। आज से ठीक एक साल पहले जुलाई 2018 में CBI चार्जशीट दाखिल करती है लेकिन मामले की सुनवाई 1 साल के बाद भी शुरू नहीं होती। जिसके चलते इस मामले में कोर्ट को दखल देना पड़ा तब जाकर कहीं FIR दर्ज हुई।

अब सुप्रीम कोर्ट करेगा केस की सुनवाई

उन्नाव गैंग रेप मामले में जो फाइलें दबी पड़ी थीं, लिहाजा अब वो धीरे धीरे खुलने वाली है क्योंकि अब इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट अपने तरीके से करेगा। यूपी के उन्नाव रेप (Unnao Rape Case) और एक्सीडेंट से जुड़े मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान अपना रुख साफ कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कई अहम फैसले लिए।

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने लिए ये फैसले

  • पहले फैसले के मुताबिक उन्नाव रेप कांड से जुड़े सभी पांच केस दिल्ली ट्रांसफर किए जाएंगें। उन्नाव रेप के मुख्य केस की सुनवाई 45 दिन के अंदर पूरी होगी।
  • इसके बाद रेप पीड़ित के परिवार के साथ हुए सड़क हादसे की जांच 7 दिन में पूरी होगी। इसके लिए कोर्ट ने सीबीआई को जांच के सख्त निर्देश भी दे दिए है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने रेप पीड़ित और उसके पूरे परिवार, उनके वकील को तत्काल CRPF की सुरक्षा देने का आदेश दिया है। अब से पीड़ित परिवार को विशेष सुरक्षा मुहैया कराई जाएगी।
  • कोर्ट ने लखनऊ के अस्पताल में भर्ती रेप पीड़ित और उसके वकील की मेडिकल रिपोर्ट मांगी है। कोर्ट ने यूपी सरकार को पीड़ित परिवार को 25 लाख रुपये का अंतरिम मुआवजा देने के लिए कहा है। इसके अलावा कोर्ट ने घायल वकील के परिवार को 20 लाख रुपये का मुआवजा देने का फरमान सुनाया है।
  • कोर्ट के आदेश के बाद अब रायबरेली जेल में बंद रेप पीड़िता के चाचा को दिल्ली की जेल में ट्रांसफर करने पर भी सुनवाई होगी।

बैकफुट पर बीजेपी, आरोपी विधायक को पार्टी से किया निष्कासित

उन्नाव मामले (Unnao Rape Case) पर कोर्ट का सख्त रुख और विपक्षी पार्टी के बढ़ते आंदोलन को देखते हुए बीजेपी ने भी खुद को बैकफुट पर कर लिया है। आरोपी विधायक कुलदीप सेंगर को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है। यानी की अब कुलदीप पर शिकंजा कसा जाना तय है। पांच दिन तक लगातार सुर्खियां बनने और विपक्ष के लगातार हमले के बाद ही भाजपा नेतृत्व कुलदीप सेंगर के निष्कासन का कदम उठाने को मजबूर हुआ।

कुछ ऐसी है पीड़िता की हालत

सड़क हादसे में घायल उन्‍नाव की दुष्कर्म पीड़िता का इलाज लखनऊ के ट्रॉमा सेंटर में चल रहा है। हालांकि पीड़िता की हालत अभी भी काफी नाजुक बताई जा रही है। केजीएमसी के प्रवक्ता डॉ. संदीप तिवारी ने गुरुवार को बताया कि पीड़िता की हालत गंभीर बनी हुई है। कुछ रिपोर्ट्स की माने तो पीड़िता को ज्यादा देर के लिए वेंटिलेटर से नहीं हटाया जा सकता। आपको जानकर हैरानी होगी की हादसे में रेप पीड़िता को कम से कम छह जगह फ्रैक्‍चर हुआ है। ऐसी हालत में पीड़िता को ठीक होने में काफी समय लग सकता है।

मोदी सरकार की बड़ी कामयाबी, लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी तीन तलाक बिल पास

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मंगलवार का दिन हर किसी के लिए एक ऐतिहासिक दिन रहा। विपक्ष के कड़े ऐतराज और कई दिनों तक चले हंगामे के बीच लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी तीन तलाक बिल (Triple Talaq Bill) मंगलवार को पास हो गया। करीब चार घंटे चली बहस के बाद राज्यसभा में तीन तलाक विधेयक को पारित किया गया। राज्यसभा में बिल के समर्थन में 99, जबकि विरोध में 84 वोट पड़े। इसके अलावा वोटिंग के दौरान बिल को सेलेक्ट कमेटी में भेजने के पक्ष में 84, जबकि विरोध में 100 वोट पड़े।

तीन तलाक विधेयक लोकसभा में तीन बार पारित हुआ, लेकिन यह दो बार राज्यसभा में अटक गया था लेकिन मंगलवार के दिन केंद्र सरकार को इस मामले में बड़ी कामयाबी मिली। बता दें कि इससे पहले अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने तलाक-ए-बिद्दत यानी एक बार में तीन तलाक को असंवैधानिक और गैर-कानूनी करार दिया गया था।

पूरे देश के लिए ऐतिहासिक दिन- पीएम मोदी

राज्यसभा में तीन तलाक बिल (Triple Talaq Bill) पास होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि पूरे देश के लिए आज ऐतिहासिक दिन है। पीएम मोदी ने ट्वीट कर सभी पार्टियों और सांसदों को धन्यवाद दिया है। पीएम मोदी ने कहा आज करोड़ों मुस्लिम माताओं-बहनों की जीत हुई। उन्हें सम्मान से जीने का हक मिला। सदियों से तीन तलाक की कुप्रथा से पीड़ित मुस्लिम महिलाओं को आज न्याय मिला है। इस ऐतिहासिक मौके पर मैं भी सभी सांसदों का आभार व्यक्त करता हूं। यह कदम भारत के इतिहास में हमेशा याद किया जाएगा। पूरे देश के लिए आज एक ऐतिहासिक दिन है।

विपक्ष ने जताया कड़ा ऐतराज

राज्यसभा में इस बिल के साथ एक तरफ जहां कई सांसद खड़े दिखाई दिए तो वहीं विपक्षी दलों के साथ साथ अन्नाद्रमुक, वाईएसआर कांग्रेस ने भी तीन तलाक संबंधी विधेयक का कड़ा विरोध किया और इसे सेलेक्ट कमेटी में भेजे जाने की मांग की। विपक्षी दलों के सदस्यों ने इसका मकसद ‘मुस्लिम परिवारों को तोड़ना’ बताया। हालांकि कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इस कदम को महिलाओं के हक के लिए बताया।

सुप्रीम कोर्ट घोषित कर चुका है असंवैधानिक

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट भी 2017 में तीन तलाक को गैर-कानूनी करार दे चुका है। कोर्ट ने ये फैसला सायरा बानो केस पर फैसला सुनाते हुए लिया था। अलग-अलग धर्मों वाले 5 जजों की बेंच ने 3-2 से फैसला सुनाते हुए सरकार से तीन तलाक पर छह महीने के अंदर कानून लाने को कहा था। इस पर 2 जजों ने अपना मत देते हुए संसद को कानून बनाने को कहा था।

येदियुरप्पा ने ली चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ! कर्नाटक में फिर बनेगी भाजपा सरकार

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शुक्रवार के दिन के अंत के साथ ही कर्नाटक के नाटक का भी अंत हो गया। भाजपा नेता बी.एस येदियुरप्पा ने शुक्रवार को चौथी बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद की शपथ (Yediyurappa Swearing Ceremony) ली। बी.एस येदियुरप्पा चौथी बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री का पद संभालेंगे। येदियुरप्पा के शपथ लेने के साथ ही एक बार फिर से कर्नाटक में बीजेपी की सरकार बन गयी है। बता दें कि कांग्रेस जेडीएस बहुमत नहीं सबित कर पाई थी जिसके बाद ही भाजपा और येदियुरप्पा को सरकार बनाने का मौका मिला।

यहां से अब सोमवार को येदियुरप्पा को बहुमत साबित करना होगा, जिसपर उन्होनें कहा सोमवार को मैं बहुमत साबित करूंगा। इसके बाद फाइनेंस बिल पास होगा। अमित शाह जी और अन्य नेताओं से चर्चा करूंगा। जरुरत पड़ने पर दिल्ली भी जा सकता हूं।

कुछ ऐसा रहा येदियुरप्पा का अब तक का मुख्यमंत्री कार्यकाल

बी.एस येदियुरप्पा का मुख्यमंत्री कार्यकाल किसी फिल्मी ड्रामे से कम नहीं रहा। येदियुरप्पा ने 2007 में पहली बार कर्नाटक के सीएम पद की शपथ ली थी, लेकिन तब उनकी सरकार केवल 7 दिन ही चल सकी थी। इसके बाद उन्होनें 2008 में सीएम पद की कुर्सी संभाली। तब वे 3 साल 66 दिन तक इस पद पर रहे। इसके बाद 17 मई 2018 को उन्होंने सीएम पद की शपथ ली और 3 दिन बाद उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया। वहीं अब उन्हें एक बार फिर कर्नाटक के मुख्यमंत्री का पद संभालने का मौका मिला है।

मंत्रिमंडल का गठन सबसेे बड़ी चुनौती

भले ही येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली हो लेकिन उनके लिए आगे की राह इतनी भी आसान नहीं रहने वाली। मुख्यमंत्री येदियुरप्पा के लिए मंत्रिमंडल का गठन सबसे बड़ी चुनौती होगा। दरअसल इस समय 15 बागियों समेत 56 विधायक ऐसे है, जिन्होंने 3 या इससे ज्यादा चुनाव जीते है। ऐसे में इन सभी विधायकों के नए मुख्यंत्री से यही उम्मीद होगी कि उन्हें मंत्रिमंडल में एक अहम स्थान दिया जाए। लेकिन, कर्नाटक में मुख्यमंत्री समेत केवल 34 पद स्वीकृत है। वहीं येदियुरप्पा वरिष्ठों को भी नाराज नहीं करना चाहते। ऐसे में उनके लिए सबसे कठिन चुनौती यही रहने वाली है।

अमित शाह और नड्डा से हो चुकी है चर्चा

कहा जा रहा है कि मंत्रिमंडल के गठन के लिए कर्नाटक के भाजपा नेताओं का प्रतिनिधिमंडल गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात के लिए दिल्ली जा भी चुका था। हालांकि अभी तक मंत्रिमंडल के बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं मिल पाई है। कुछ नेताओं का कहना है कि इस पर अंतिम फैसला केंद्रीय नेतृत्व का होगा।

इसी महीने कुमारस्वामी ने दिया था इस्तीफा

दो बार कर्नाटक राज्य के मुख्यमंत्री चुने गए एच.डी कुमारस्वामी एक बार फिर अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। इस बार 14 महीनों के अंदर ही उनकी सरकार गिर गई। विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव पर मतदान में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार गिर जाने के बाद कुमारस्वामी ने मंगलवार को राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप दिया था। बता दें कि कुमारस्वामी 23 मई 2018 को कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने थे और 23 तारीख को ही उनकी सरकार गिर गई।

क्या है एनआईए बिल? जिसके पास होने से बढ़ गया अमित शाह का कद

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मोदी सरकार के लगातार दूसरे कार्यकाल में गृहमंत्री पद संभालते ही अमित शाह एक्शन मोड में आ गए है। कश्मीर की समस्या और आंतकवाद जैसी समस्या के समाधान के लिए अमित शाह ने संसद में एक बड़ा मास्टर स्ट्रोक खेल दिया है। लोकसभा में एनआईए (NIA) यानी राष्ट्रीय जांच एजेंसी संशोधन बिल (NIA Amendment Bill 2019) पास हो गया है। इस बिल (NIA Bill) के पास होने के साथ ही अब देश की सबसे बड़ी सुरक्षा एजेंसी को वो अधिकार मिल जाएंगे जिससे वो पिछले काफी समय से वंचित थी।

इस बिल का संसद में पास होना मोदी सरकार की एक बड़ी कामयाबी माना जा रहा है। लेकिन आइये इससे पहले नजर डालते है कि आखिर राष्ट्रीय जांच ऐजेंसी क्या है और इसी स्थापना कब हुई?

क्या है एनआईए?

एनआईए (NIA) भारत में आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए भारत सरकार द्वारा स्थापित एक संघीय जाँच एजेंसी है। राष्ट्रीय जाँच एजेंसी को 2008 के मुंबई हमले के बाद स्थापित किया गया था। इसके संस्थापक महानिदेशक राधा विनोद राजू थे जिनका कार्यकाल 31 जनवरी 2010 को समाप्त हुआ। इसके बाद इस एजेंसी का कार्यभार शरद चंद्र सिन्हा ने संभाला। बता दें कि आतंकी हमलों की घटनाओं, आतंकवाद को धन उपलब्ध कराने एवं अन्य आतंक संबंधित अपराधों का अन्वेषण के लिए एनआईए का गठन किया गया था।

राष्ट्रीय जांच ऐजेंसी से जुड़ी अहम जानकारी

स्थापना- 2009

संघीय संस्था- भारत

मुख्यालय- नई दिल्ली

माहानिदेशक- वाई.सी.मोदी

कार्यभार- अमित शाह, गृहमंत्री

इन आतंकी संगठनो पर एनआईए लगा चुका है बैन-

1. बाबर खालसा इंटरनेशल

2. खालसा कमांडो फोर्स

3. खालसा जिंदाबाद फोर्स

4. लश्कर-ए-तैयबा

5. जैश-ए-मोहम्मद

6. अल-उमर-मुजाहिद्दीन

7. जम्मू-कश्मी इस्लामिक फ्रंट

8. ऑल त्रिपुरा टाइगर फोर्स

9. स्टूडेंट इस्लामिक मोवेमें ऑफ़ इंडिया

10. अखिल भारत नेपाली एकता समाज

एनआईए द्वारा गिरफ्तार किए गए बड़े आतंकी

अरीज खान

एमआई के आतंकी अरीज खान को एनआईए ने नेपाल बॉर्डर से 2018 में गिरफ्तार किया था।

तालिब लाली

एनआईए ने 2013 में बड़ी कार्यवाही करते हुए हिजबुर मुजाहिद्दी ने कमांडर तालिब लाली को जम्मू कश्मीर से गिरफ्तार किया था।

मोहम्मद तहसीन अख्तर उर्फ मोनू

साल 2016 में राजस्थान में हुई कार्यवाही के दौरान एमआई संठन के चीफ कमांडर मोहम्मद तहसीन को गिरफ्तार किया गया।

तौफीक अंसारी

खतरनाक आतंकवादी तौफीक अंसारी एनआई की लिस्ट में मोस्ट वॉन्टेड था जिसे एनआईए ने 2014 में गिरफ्तार किया था।

तारीकुल इसलाम

बुर्दवान ब्लास्ट मामले में एनआईए को बांग्लादेशी आंतकी तारीकुल इसलाम के खिलाफ सुबूत मिले थे। जिसके बाद 2015 में एनआई ने झारखंड से तारीकुल को गिरफ्तार किया।

लोकसभा में पास हुआ एनआईए बिल

बता दें कि लोकसभा में इस विधेयक के पक्ष में 278 वोट पड़े जबकि विधेयक के खिलाफ सिर्फ 6 वोट ही पड़े।

इस विधेयक में दिए गए प्रावधानों के मुताबिक अब आतंकवाद मामलों की जांच करने वाली देश की सबसे बड़ी एजेंसी एनआईए भारत के बाहर किसी भी गंभीर अपराध के मामले में केस रजिस्टर और जांच का निर्देश दे सकती है। इस विधेयक को पास करने के दौरान अमित शाह और ओवैसी के बीच तीखी नोकझोंक भी देखने को मिली। इस मुद्दे पर AIMLBDK के असदुद्दीन ओवैसी ने मत-विभाजन की मांग की। वहीं दूसरी तरह अमित शाह ने ओवैसी को आतंकवाद के मुद्दे पर घेरना शुरू कर दिया।

एनआईए संशोधन (NIA Bill) विधेयक का उद्देश्य राष्ट्रीय जांच एजेंसी को देशहित में मजबूत बनाना है। गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि इस विषय पर सदन में डिविजन होना चाहिए जिससे देश को पता चले कि कौन आतंकवाद के पक्ष में है और कौन इसके खिलाफ है। वहीं निचले सदन में विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने कहा कि आज जब देश दुनिया को आतंकवाद के खतरे से निपटना है, ऐसे में एनआईए संशोधन विधेयक का उद्देश्य जांच एजेंसी को राष्ट्रहित में मजबूत बनाना है।

अब एनआईए को मिलेंगे ये अधिकार

1. इस विधेयक का प्रस्ताव पास होने से अब एनआईए की जांच का दायरा बढ़ जाएगा। अब ये एजेंसी भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी भारतीय एवं भारतीय परिसम्पत्तियों से जुड़े मामलों की जांच कर सकेगी। इसमें मानव तस्करी और साइबर अपराध से जुड़े विषयों की जांच का अधिकार भी एनआईए के पास रहेगा।

2. इस बिल (NIA Bill) के पास होने के साथ ही अब एनआईए अदालतों में न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया और भी सरल हो जाएगी। इससे पहले कई बार जज का तबादला होने पर अधिसूचना जारी करना पड़ती थी। जिसके चलते इस पूरी प्रक्रिया में 2 से 3 महीने लग जाते थे। हालांकि अभी भी एनआईए अदालत के जजों की नियुक्ति संबंधित कोई भी निर्णय उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ही लेंगे।

3. विधेयक का उद्देश्य अधिनियम की धारा 1 की उपधारा 2 में नया खंड जिसमे ऐसे व्यक्तियों पर अधिनियम के उपबंध लागू करने का है जो भारत के बाहर भारतीय नागरिकों के विरूद्ध या भारत के हितों को प्रभावित करने वाला कोई अनुसूचित अपराध करते है।

4. एनआईए बिल (NIA Bill) के तहत अब आपराधिक मामलों पर सुनवाई की प्रक्रिया और भी तेज हो जाएगी। इसके लिए अब केंद्र और राज्य सरकार मामलों की सुनवाई के लिए एक या अधिक अदालतें स्थापित कर सकेंगी। जो एनआईए के हित में काम करेगा।

5. इसके अलावा प्रतिबंधित हथियारों के निर्माण या बिक्री के संबंध मे होने वाले अपराधों की जांच भी अब एनआईए कर सकेगी।

कांग्रेस के वो बयानवीर जिन्होंने डुबो दी कांग्रेस की लुटिया

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हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव 2019 के बाद अगर आप से पूछा जाए कि देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस (Congress) की हार के पीछे की क्या वजहें रहीं? तो शायद आप मोदी की लोकप्रियता, विकास कार्यों, गरीबों के लिए चलाई गई योजनाओं और एक कमज़ोर विपक्ष को इसका कारण मानेंगे। जो बहुत हद तक सही भी है। लेकिन भारतीय जनता पार्टी की इस प्रचंड जीत की तमाम बड़ी वजहों में से एक बड़ी वजह कांग्रेस के ही कुछ बयानवीर भी हैं।

कांग्रेस पार्टी के तमाम बड़े नेताओं ने पिछले कुछ समय में मोदी को लेकर कई बयान दिए हैं। लेकिन आप भी भलीभांति जानते हैं कि किसी भी चीज की अति बुरी ही होती है और कांग्रेस के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है। अपनी चुनावी जनसभाओं और रैलियों में कांग्रेस पार्टी के दिग्गजों ने अपनी पार्टी के मेनिफेस्टो या उनकी कामयाबी गिनाने से ज्यादा ध्यान मोदी सरकार की कमियां गिनाने पर दिया है। और यही बात शायद जनता को रास नहीं आई। भारतीय जनता के दिल में आज नरेंद्र मोदी की एक अलग छवि बन चुकी है और वे अपने पसंदीदा नेता के बारे में कुछ भी अनाप शनाप या तथ्य हीन बातें सुनना पसंद नहीं करते।

वहीं दूसरी ओर नरेंद्र मोदी (Modi) ने इन आपत्तिजनक बयानों का बेहद ही सकारात्मक तरीके से जवाब देकर जनता का दिल जीतने में कामयाबी हासिल की। कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने मोदी के खिलाफ भले ही कितना बुरा-भला बोला हो, लेकिन नरेंद्र मोदी ने उनकी हर गाली को अपना हथियार बनाकर करारा जवाब दिया है। तो आइये बात करते हैं कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी और उनकी ही पार्टी के कुछ अन्य नेताओं के कुछ ऐसे बयानों के बारे में, जिन्होंने नरेंद्र मोदी की जीत में अपना अहम योगदान दिया-

‘चौकीदार चोर है’ का नारा पड़ा भारी

राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने इस लोकसभा चुनाव के प्रचार की शुरुआत ‘चौकीदार चोर है’ के नारे के साथ की थी, लेकिन उनका यह दांव उनके ऊपर ही हावी होता नज़र आया। नरेंद्र मोदी ने इस नारे का जवाब ‘मैं भी चौकीदार’ नारे के साथ दिया। लोगों को मोदी का यह नारा इतना पसंद आया कि चुनाव खत्म होने तक यह सोशल मीडिया पर ट्रेंड करता रहा। इसके अलावा राहुल गांधी के राफेल को लेकर दिए बयान भी लोगों को पसंद नहीं आए। राफेल घोटाले को लेकर अपनी हर रैली में उन्होंने अलग-अलग आंकड़े पेश किए और एक बार तो उन्होंने पिछत्तीस जैसी नई संख्या का आविष्कार भी कर डाला। आंकड़ों को लेकर कई मौकों पर उनकी ज़बान फिसलती नज़र आई जिसका फायदा उठाने में भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने कोई कसर नहीं छोड़ी। यहाँ तक कि जब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के हवाले से मोदी को चोर बताने का प्रयास किया तब सुप्रीम कोर्ट ने भी उनकी अच्छी तरह से लताड़ लगाई।

पीएम मोदी को नीच और असभ्य बताया

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर, जिन्होंने कई बार मोदी पर व्यक्तिगत टिप्पणियां की हैं, जिसका खामियाज़ा कांग्रेस पार्टी 2014 से अब तक भुगत रही है। उन्होंने 2017 में पीएम मोदी को असभ्य और नीच किस्म का आदमी तक कह डाला था, जिसके बाद उनकी कड़ी निंदा हुई थी। यहां तक की कांग्रेस ने उन्हें पार्टी से भी निलंबित कर दिया था। वहीं मोदी ने उन पर पलटवार करते हुए कहा कि यह गाली मैं तोहफें की तरह स्वीकार करता हूं जिसका जवाब भारत की जनता देगी। लोकसभा चुनाव के दौरन उनका निलंबन पार्टी ने रद्द तो कर दिया लेकिन अपने पुराने बयान पर वे अड़े रहे। अय्यर ने हिंदूओं की आस्थाओं के साथ भी कई बार खिलवाड़ किया है। अयोध्या में राम मंदिर को लेकर उन्होंने बयान दिया कि ‘राजा दशरथ के महल में 10 हजार कमरे थे, भगवान राम कौन-से कमरे में जन्में थे?’ इसके अलावा समय-समय पर पाकिस्तान के प्रति भी अपना प्रेम व्यक्त करते रहें हैं, जो शायद ही कोई भारतीय बर्दास्त करेगा।

मोदी को बताया चूड़ियां खनखनाने वाली औरत

नवजोत सिंह सिद्धू समय-समय पर अपने दिए बयानों को लेकर मीडिया में छाए रहते हैं। इस बार भी उन्होंने अपनी रैलियों में मोदी सरकार पर कई हमले किए। उन्होंने कभी मोदी को चूड़ियां खनखनाने वाली औरत कहा तो कभी राफेल का दलाल। उन्होंने कुछ भी बोलने से पहले प्रधानमंत्री पद की गरिमा का भी विचार नहीं किया। बिहार में मुस्लिमों को भड़काने वाले दिए बयान को लेकर उन पर चुनाव आयोग ने 72 घंटे का प्रतिबंध भी लगाया था। सिद्धू के इन बयानों को लेकर लोगों द्वारा उन्हें सोशल मीडिया पर जमकर ट्रोल भी किया गया। इससे पहले सिद्धू ने पाकिस्तान के प्रति भी कई बार अपना प्रेम ज़ाहिर किया है। इमरान खान के शपथ समारोह में शामिल होने से लेकर वहां के आर्मी चीफ से गले मिलने तक, वे हमेशा आलोचकों के निशाने पर बने रहे।

सेना के शौर्य पर खड़े किए सवाल

कांग्रेस पार्टी के तमाम नेताओं ने भारतीय सेना द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक पर कई बार सवाल खड़े किए थे। इस लिस्ट में सबसे आगे नाम था मध्य प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह का। उन्होंने सेना पर अविश्वास दिखाते हुए सर्जिकल स्ट्राइक पर कई बार सवाल उठाये और सबूत सामने रखने की मांग भी की। इसके अलावा उन्होंने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की तारीफ भी की। ऐसी देशविरोधी बातों के कारण ही इतने अनुभवी नेता को चुनाव में करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा।

84 के सिख दंगो पर दिया विवादित बयान

1984 में हुए सिख दंगो के प्रति आज भी सिखों के अंदर काफी आक्रोश है और ज्यादातर इन दंगों का जिम्मेदार कांग्रेस पार्टी को ही मानते हैं। ऐसे में कांग्रेस पार्टी वरिष्ठ नेता और राहुल गाँधी के राजनीतिक गुरु कहे जाने वाले सैम पित्रोदा के दिए बयान ने आग में घी डालने वाला काम किया। कांग्रेस नेता सैम पित्रोदा ने मीडिया से बात करते हुए 84 के दंगो पर बयान दे दिया कि- ‘हुआ तो हुआ…….’। उनके इस बयान की पूरे देश में काफी आलोचना की गई। यहां तक की राहुल गांधी ने भी उन्हें माफी मांगने के लिए कहा था। साथ ही उन्होंने बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद कहा कि ‘300 लाशें कहाँ हैं?, भारत सरकार को उसका सबूत देना चाहिए।

इसी तरह के विवादस्पद बयान कांग्रेस के कई अन्य नेताओं ने भी दिए। लेकिन नरेंद्र मोदी जानते हैं कि वह किस पद पर काबिज हैं। उनके खिलाफ कौन क्या कह रहा है, इस बात से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। इसके विपरीत अपने खिलाफ बयानों में सकारात्मकता ढूंढना वे अच्छी तरह जानते हैं।

अब आप भी शांति से विचार कीजिए और हमें बताइये कि कांग्रेस की हार के पीछे और क्या मुख्य वजह रहीं?

मोदी सरकार 2.0 के पहले ही बजट में पेट्रोल-डीजल महंगा, जाने इस बजट से जुड़ी 5 महत्वपूर्ण बातें

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शुक्रवार को जब मोदी सरकार संसद में पहुंची तो हर किसी की नजर इस बात पर थी मोदी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल के पहले बजट के साथ किसकी झोली में खुशियां डालती है? दूसरे कार्यकाल के पहले बजट में मोदी सरकार ने अमीर की झोली से पैसा निकाल कर गरीब की झोली में भर दिया, जिसके कयास काफी समय पहले से ही लगा लिए गए थे। मोदी सरकार 2.0 के पहले बजट (Budget 2019) ने बड़ी और नई लोकलुभावन घोषणाओं से बचते हुए केवल उन्हीं बिन्दुओं को ध्यान में रखा जो कि मौजूदा सरकार का मूलमंत्र है।

इसके अलावा मध्यम वर्ग के लिए टैक्स स्लैब में कोई बदलाव नहीं किया गया है। जबकि कई विशेष उद्योगों को ध्यान में रखा गया। बजट को लेकर शेयर बाजार की भी प्रतिक्रिया निराशाजनक रही। भले ही बड़े उद्योगों के लिए ये बजट रोज़मर्रा की ज़िंदगी में कोई प्रभाव न डाले लेकिन कुछ घोषणाएं आम आदमियों को निराश कर सकती है। साथ ही 2019 के इस बजट (Budget 2019) में की गयी घोषणाएं किसानों के लिए बड़ी सौगात है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट पेश करने के दौरान सबका साथ सबका विकास नारा एक बार बुलंद किया। उन्होंने कहा है कि मोदी सरकार का लक्ष्य, मजबूत देश और मजबूत नागरिक बनाना है और सरकार की सारी नीतियां इसी ओर काम कर रही हैं।

क्या हुआ महंगा?

पेट्रोल, डीजल, सोना, चांदी, सिगरेट, आयातित कार और एयर कंडीशनर आज से महंगे हो जाएंगे। सरकार ने आम बजट 2019-20 में 75 वस्तुओं पर कस्टम ड्यूटी और पेट्रोल-डीजल पर सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी पर 1-1 रुपये के हिसाब से वृद्धि की है। सोने पर शुल्क बढ़ाकर 10 फीसद से 12.5 फीसदी कर दिया गया है। आयातित किताबों पर 5% कस्टम ड्यूटी बढ़ाई गई है और सीसीटीवी और मार्बल पर भी कस्टम ड्यूटी बढ़ा दी गई है।

क्या हुआ सस्ता?

आम बजट में एक तरफ जहां आम आदमी की जेब पर थोड़ा असर देखने को मिलेगा तो वहीं इस बजट ने उद्योग जगत को थोड़ी राहत दी है। बजट में इलेक्ट्रिक गाड़ियों पर जीएसटी रेट 12 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी कर दिया गया। इसके अलावा, इलेक्ट्रिक गाड़ियां खरीदने की खातिर लिए गए लोन पर चुकाए जाने वाले ब्याज पर 1.5 लाख रुपये की अतिरिक्त इनकम की छूट भी मिलेगी।

नरेंद्र मोदी सरकार के बजट की 5 अहम बातें

1. इस बजट (Budget 2019) में कॉरपोरेट सेक्टर को बड़ा लाभ दिया गया है। कॉरपोरेट टैक्स की दरों में कटौती की घोषणा कर दी गई है। 400 करोड़ रुपये तक के रेवेन्यू वाले कंपनियों को अब 30 फीसदी के मुकाबले 25 फीसदी कॉरपोरेट टैक्स देना होगा।

2. 5 लाख रुपये तक की आय वालों के लिए कोई टैक्स नहीं लगेगा, 5 लाख से ऊपर की आय वालों को पुरानी दरों के हिसाब से ही टैक्स देना होगा। आय का भुगतान करने वालो के लिए ये घोषणा पहले भी कर दी गई थी।

3. अगर आप नया घर खरीदने के बारे में सोच रहे है तो ये बजट आपके लिए है। पहला घर खरीदने के लिए उत्साहित करने के लिए होम लोन के ब्याज वाली इनकम टैक्स छूट को 2 लाख से बढ़ाकर 3.5 लाख रुपये कर दिया गया है।

4. नकदी इस्तेमाल को हतोत्साहित करने के लिए सरकार ने अहम घोषणा की है। एक साल के भीतर एक करोड़ रुपये से अधिक की नकदी निकासी पर अब दो फीसदी टीडीएस का भुगतान करना होगा।

5. इस आधार कार्ड में अहम बिंदु आधार कार्ड रहा। इनकम टैक्स रिटर्न भरने के लिए अगर आपके पास पैन कार्ड नहीं है, तो अब आप आधार कार्ड का भी इस्तेमाल कर सकते है।