हम सभी जानते हैं कि किसान खेतों में अपना पसीना वह आता है तब जाकर के पूरे भारत को अन्न उपलब्ध हो पाता है! जिस दिन इस देश का किसान अन्न उगाना बंद कर देगा निश्चित रूप से उस दिन भारत के लोगों का जीना मुहाल हो जाएगा। बताया जा रहा है अब किसान तटीय इलाकों में पौधरोपण करने के साथ ही खेती के आधुनिक संसाधनों का प्रयोग गोमती नदी को संरक्षित करने के लिए करेंगे। कंक्रीट की दीवारों से गोमती नदी का कटान रोकने की बजाय प्राकृतिक संसाधनों के द्वारा इस काम को करना ज्यादा महत्वपूर्ण माना जा रहा है। बताया जा रहा है वृक्षारोपण के साथ-साथ जलीय पौधों का रोपण भी नदी को उसका स्वरूप बनाए रखने में मदद करेगी।
किसानों की मदद से इस पूरे कार्यक्रम में इसलिए दी जा रही है क्योंकि प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग और प्राकृतिक संसाधनों के बारे में किसान जितना जानते हैं उतना शायद कोई भी नहीं जानता होगा। किसानों की अनुभव तथा वैज्ञानिकों के सहयोग से गोमती संरक्षण के इस अभियान को तेजी के साथ आगे बढ़ाया जाएगा।15 जून से शुरू होने वाले अभियान की कमान तटीय इलाकों के किसान के हाथों में होगी। राजधानी के तटीय क्षेत्र के 41 गांवों के किसानों को अभियान से जोड़ा जाएगा। इस अभियान को तेजी के साथ अंजाम तक पहुंचाने के लिए महात्मा गांधी गारंटी योजना के प्रभारी को नोडल अधिकारी बनाया गया है। गोमती संरक्षण के लिए किसानों को जागरूक करने हेतु हर गांव में सुबह को प्रभात फेरी निकाली जाएगी। गोठयिों के साथ ही किसानों के हितों की योजनाओं के अलावा गुणवत्ता युक्त अनुदानित खाद व बीज किसानों को उपलब्ध कराके जागरूक किया जा रहा है।