बिहार राज्य चावल भंडारण के मामले में भारत का पहला आत्मनिर्भर राज्य बन जाएगा। क्योंकि इस बार बिहार चावल,फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया से नहीं खरीदेगा। इस बार बिहार अपने प्रदेश के चावल को खरीद कर सरकारी राशन की दुकानों पर भेजेगा। सरकार के इस फैसले से दो प्रमुख फायदे बिहार को होंगे नंबर 1 बिहार के लोग अपने टेस्ट का चावल खा सकेंगे और नंबर 2 किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य मिल सकेगा। सरकार के इस फैसले के बाद बिहार के प्रति व्यक्ति की आय में 30 से 40% तक का इजाफा हो सकता है। वर्तमान में किसान की मासिक आय 3000 रूपये है और इस निर्णय के बाद अगर ऐसा इजाफा होता है तो यह बहुत ही सराहनीय कदम होगा। सूत्रों के अनुसार यह माना जाता है कि बिहार में राशन बांटने के लिए करीब 92 लाख टन गेहूं तथा चावल की आवश्यकता होती है।
अपने प्रदेशवासियों को चावल देने के लिए बिहार दशकों से छत्तीसगढ़, तेलंगाना तथा हरियाणा जैसे राज्यों पर निर्भर रहा है। कई समय से दूसरे राज्यों पर चावल के लिए निर्भर रहने के कारण अब प्रदेश के लिए यह निर्णय काफी कठिन है।प्रदेश में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद बहुत कम होती है 2010 से 11, 2011 से 12, 2012 से 13 रवी की सीजन में गेहूं की खरीद 1.5, 5.02 तथा 5.4 लाख हुई। ऐसे में अगर सरकार के द्वारा लिया गया यह निर्णय जमीन पर काम करेगा तो निश्चित रूप से बिहार में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अधिक फसल खरीदी जाएगी,इससे बिहार के किसानों और बिहार की आम जनता को भी बड़ा फायदा होगा।