पिछले दिनों बंगाल में यास चक्रवात ने अपना कहर बरपा रखा है। पूर्व तटीय प्रदेशों में तबाही मचा रखी है, लेकिन इसके जाने के बाद यहां सियासी तूफान आ गया है। जहां इस तूफान से निपटने के लिए देश के प्रधानमंत्री ने बंगाल के कलाईकुंडा में बैठक बुलाई, जिससे हुए नुकसान का जायजा लिया जा सके। लेकिन वहीं प्रदेश की मुखिया ममता बनर्जी बैठक में शामिल ना होके, केंद्र पर सहायता ना करने का आरोप लगा रही है।
हालांकि प्रधानमंत्री से मिलने जरूर पहुंची, लेकिन वो भी आधे घंटे लेट। बैठक का हिस्सा बनना तो दूर प्रधानमंत्री को नुकसान का रिपोर्ट थमा कर और अनुमति लेके वहां से निकल गई। ये बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश का प्रधानमंत्री, किसी राज्य में हुए किसी आपदा से नुकसान का जायजा लेने पहुंचे और वहां के सीएम के साथ बैठक कर लोगों को राहत पहुंचाने पर बात करें। लेकिन उस प्रदेश का मुखिया ही उस बैठक में शामिल ना हो। ये आपसी मतभेद से नुकसान सिर्फ और सिर्फ देश की जनता का होगा।
जबकि इस नुकसान से निपटने और राहत देने के लिए राज्य और केंद्र मिलकर काम करते है। जहां तक बात मुख्य सचिव की है तो वह राज्य सचिवालय का प्रमुख होता है, राज्य की प्रशासन व्यवस्था का नेतृत्व करता है तथा केंद्र एवं राज्य शासन के बीच संचार की कड़ी के रूप में कार्य करता है। लेकिन प्रधानमंत्री की समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री के साथ मुख्य सचिव का भी देरी से पहुंचना यह दर्शाता है कि मुख्य सचिव पर कर्तव्यों से इतर राजनीतिक बल ज्यादा प्रभावी था।
उल्लेखनीय है कि राज्य का मुख्य सचिव आपदा के समय अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। केंद्र सरकार की ओर से जारी आदेश में मुख्य सचिव को 31 मई की सुबह 10 बजे तक दिल्ली स्थित प्रशिक्षण विभाग के कार्यालय में रिपोर्ट करना था, लेकिन उन्होंने दिल्ली नहीं जाने का फैसला लिया। इसके बाद केंद्र सरकार की ओर से अनुशासनात्मक निर्णय लिए जाने की चर्चा थी। जिसके पहले ही उन्होंने रिटायरमेंट की घोषणा कर दी। मुख्य सचिव अलापन बंद्योपाध्याय का कार्यकाल मई के आखिर में खत्म होने वाला था, लेकिन मुख्यमंत्री ने उनका कार्यकाल केंद्र सरकार से कहकर तीन महीने बढ़वा दिया। मुख्य सचिव का कार्यकाल नियमों का पालन करने के लिए ही जाना जाता है।
देश के केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा “सभी जानते हैं कि मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री व्यक्ति नहीं, बल्कि संस्था होते हैं, जिन पर जनता का विश्वास होता है।” लिहाजा आपदा काल में बंगाल की जनता को सहायता देने के लिए वहां गए प्रधानमंत्री के साथ मुख्यमंत्री द्वारा यथोचित व्यवहार नहीं करना निंदनीय है। राजनीतिक मतभेदों को जनसेवा के संकल्प व संवैधानिक कर्तव्य से ऊपर रखने का यह एक दुर्भाग्यपूर्ण उदाहरण है।