गर्मियां आते ही मार्केट में तरबूज आने लगते हैं। तरबूज खाने से बॉडी में डिहाइड्रेशन नहीं होता है। इसे खाने से वजन भी कंट्रोल होता है और शरीर में पानी की कमी भी नहीं होती है। यह कई सारी बीमारियों से बचाता है, पर पका तरबूज खरीद पाना सबके बस की बात नहीं है। कई लोग जल्दबाजी में तरबूज खरीद लेते हैं ऐसे में वह कच्चा या अधपका निकलता है। खराब, इंजेक्टेड केमिकल वाले तरबूज खाने से आप बीमार पड़ सकते हैं। इंजेक्टेड तरबूजा खाने से पेट दर्द और उल्टी की शिकायत होती है। तरबूजों में मिलावट को लेकर 2012 में टाइम्स ऑफ इंडिया ने एक रिपोर्ट छापी थी। जिसमें यह बताया गया था कि तरबूज को लाल और स्वाद बढ़ाने के लिए इस्तेमाल होने वाले केमिकल सेहत को नुकसान भी पहुंचा सकते हैं। कुछ तरबूज काटकर देखेंगे तो वह अंदर से लाल तो दिखता है लेकिन मीठा हो यह जरूरी नहीं।
इन तीन तरीकों से तरबूज में मिलावट की जाती है-
1. एरीथ्रोसिन- तरबूजे को लाल रंग देने के लिए एरीथ्रोसिन इंजेक्ट किया जाता है। यह एक प्रकार का रंग होता है, जिसे ज्यादा मात्रा में खाने से कई गंभीर बीमारियां हो सकती हैं।
2. वैक्स- इंजेक्ट किए हुए तरबूज में दाग छिपाने और चमक बढ़ाने के लिए इन पर वैक्स की कोटिंग की जाती है। ऐसा सेब में भी किया जाता है। रंग इंजेक्ट करने से फलों की ऊपरी स्किन चमकदार दिखने लगती है।
3. ऑक्सिटोसिन हार्मोन- यह एक तरह का हार्मोन का इंजेक्शन है, जिसे महिलाओं या पशुओं को प्रसव के दौरान लगाते हैं। इसका इस्तेमाल फलों का आकार बढ़ाने के लिए किया जाता है। 2016 में भी टाइम्स ऑफ इंडिया की एक और रिपोर्ट में ये बताया गया कि फलों या सब्जियों के आकार को बढ़ाने के लिए लगाया जाने वाला ऑक्सिटोसिन हार्मोन सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है।
एक ठोस, बढ़िया तरबूज उठाएं और देखें कि खरोंच या कटे हुए निशान तो नहीं हैं। अगर तरबूज में उभार हों तो आप समझ सकते हैं कि उगते समय उसे नियमित रूप से धूप और पानी नहीं मिला है। जिसकी वजह से वह एकसमान नहीं है या वह सूखा हुआ है। तो इसे न लें। तरबूज आकार के हिसाब से भारी होना चाहिए। इससे पता चलता है कि वह पानी से भरा हुआ है और अच्छा व पका है। चाहें तो तरबूज के वजन की तुलना एक दूसरे उसी आकार के तरबूज से कर सकते हैं। दोनों में से ज्यादा भारी तरबूज ज्यादा पका हुआ होगा।
आप यह ट्रिक करीब-करीब सब फल और सब्जियों को खरीदते समय अपना सकते हैं। तरबूज के एक हिस्से में एक पीला स्पॉट या धब्बा है तो समझिए कि वह सही तरीके से पका है। इसलिए यह जितने ज्यादा गहरे रंग का हो उतना अच्छा है। अगर फील्ड स्पॉट सफेद रंग का हो या बिलकुल न हो, तो आप समझ सकते हैं कि उसे पकने से पहले तोड़ लिया गया है। फिर इसे इंजेक्ट करके पकाया गया होगा। पुराने और अनुभवी लोग तरबूज को बजाकर पहचान कर लेते थे। तरबूज को बजाने से अगर उसमें भारी आवाज आए तो समझिए यह पका है, अगर कच्चा होगा तो थपथप की आवाज आएगी।
इंजेक्टेड तरबूज की पहचान कैसे होगी
अगर तरबूज इंजेक्ट करके पकाया गया है तो यह चारों तरफ से एक जैसा दिखेगा। तरबूज काटने पर एक समान लाल का रंग का दिखना चाहिए। अगर ऐसा नहीं तो यह इंजेक्टेड है। तरबूज के जिस हिस्से में केमिकल का ज्यादा असर हुआ होगा वो अंदर से ज्यादा पक गया होगा या गला हुआ दिखेगा। खाने पर इसका स्वाद पानी सा लगेगा। अगर सही होगा तो इसका स्वाद मीठा और एक समान लगेगा।