गंगाजल से कोरोना के इलाज को लेकर अब कई खबरें सामने आ रही हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल याचिका पर कोर्ट ने आईसीएमआर और एथिकल कमेटी से 6हफ्ते में जवाब मांगा है। वहीं दूसरी तरफ बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में कार्य करने वाले तथा इस मामले पर शोध करने वाले डॉक्टर काफी उत्साहित नजर आ रहे हैं। उनका कहना है कि गंगाजल से डेल्टा प्लस वाले वैरीअंट का भी इलाज हो सकता है। संक्रमण की पहली लहर में जब गंगा के किनारे रहने वाले लोगों पर इस महामारी का कम प्रभाव हुआ तब यह विषय सबके सामने आया। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के डॉक्टरों ने इस पर शोध कर के गंगाजल से नेजल स्प्रे बढ़ाया और यह दावा किया कि इस नेजल स्प्रे के प्रयोग से संक्रमण को हराया जा सकता है। इस इलाज के दावे के पीछे गंगाजल में पाए जाने वाले ‘वायरोफेज’ को जिम्मेदार ठहराया गया और महज 20 रुपये की लागत से गंगाजल का नोजल स्प्रे बना दिया। इस संबंध में शोध में रुकावट आने के कारण हाई कोर्ट में एक अर्जी दाखिल की गई थी जिसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आईसीएमआर और भारत की एथिकल कमेटी से 6 हफ्तों के भीतर जवाब मांगा है। जिसके बाद से एक बार फिर 10 महीनों से रुके इस दावे को हवा मिल गई है कि गंगाजल से कोरोना का इलाज होगा।
रिसर्च के बाद सभी बातें आ जाएंगे सामने
डॉक्टर बी.एन.मिश्रा ने इस मामले पर कहा कि इसी संदर्भ में ICMR और भारत सरकार की एथिकल कमेटी से पूछा गया है कि गंगा के फेज वायरस को यूज कर सकते हैं कि नहीं? अगर हम यूज कर सकते हैं तो ट्रायल कर सकते हैं कि नहीं और ट्रायल कब तथा कहां हो सकता है? अब हाई कोर्ट ने पूछा है तो यह खुशी की बात है। न्यूरोलॉजिस्ट डॉक्टर वीएन मिश्रा ने बताया कि फेज वायरस का इस्तेमाल पहले से होता आया है। जॉर्जिया में फेस इंस्टीट्यूट है और वहां लोग दवा कम और फेज का इस्तेमाल ज्यादा करते हैं। फेज वायरस एक स्टेबलिश थेरेपी है और गंगा में हाई क्वालिटी के फेज मिलते हैं। तो इसका इस्तेमाल करने में हर्ज ही क्या है? रिसर्च करने से चीजें स्पष्ट हो जाएगी।