महाराष्ट्र में कोरोना संक्रमण किस तरह से बढ़ रहा है यह सबके सामने है। राज्य सरकार हालात को संभालने में विफल साबित होती हुई नजर आ रही है। महाराष्ट्र राज्य भी लगातार ऑक्सीजन की किल्लत से जूझ रहा है। लेकिन कहा यह जा रहा है कि उद्धव ठाकरे की सरकार को विधान परिषद में 8 महीने पहले प्रत्येक जनपद में एक ऑक्सीजन प्लांट लगाने का प्रस्ताव दिया गया था। लेकिन तत्काल प्रभाव से सरकार ने उस प्रस्ताव को नहीं माना जिसके कारण आज यह स्थिति उत्पन्न हुई है। बुलाए गए इस सत्र में फड़नवीस सरकार में गृह राज्यमंत्री रहे डा. रंजीत पाटिल ने देर रात सदन को संबोधित करते हुए राज्य सरकार को आगाह किया था कि कोविड-19 के दौरान ऑक्सीजन आपूर्ति की स्थित विकट होने वाली है। यदि हर जिले में सरकार ने ऑक्सीजन का कम से कम एक प्लांट नहीं लगाया तो भविष्य में स्थिति और गंभीर हो सकती है, क्योंकि निजी अस्पतालों को भी ऑक्सीजन आपूर्ति की जिम्मेदारी सरकार की ही होगी। इसके बिना वेंटिलेटर और दवाइयों से भी काम नहीं चल पाएगा, इसलिए कम से कम राज्य के 15 जिलों में एक-एक ऑक्सीजन प्लांट लगाया जाना चाहिए, जिससे सरकार को भविष्य में आक्सीजन की कमी से न जूझना पड़े।
डॉक्टर पाटिल के इस प्रस्ताव पर विचार करने के पश्चात वित्त मंत्री अजित पवार ने महाराष्ट्र के जिलों में कम से कम 10 ऑक्सीजन प्लांट लगाने के निर्देश दिए थे। लेकिन बाद में समय बीतता गया और इस प्रस्ताव को केवल कागजों पर जगह मिली। डॉक्टर पाटिल के द्वारा दिए गए प्रस्ताव के बाद सरकार के कई मंत्रियों ने कहा था कि प्रदेश में ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं होने दी जाएगी। जरूरत पड़ने पर उद्योगों के काम आने वाली 70 फीसद ऑक्सीजन का उपयोग स्वास्थ्य सेवाओं के लिए किया जाएगा।लेकिन वास्तविकता आज सभी के सामने है। सरकार ने यदि उस समय बीजेपी के नेता की बात पर विचार किया होता तो आज बहुत सारे लोगों के जीवन को बचाया जा सकता था।
डॉ रंजन पाटिल खुद भी एक डॉक्टर है और वे यह बताते हैं कि महाराष्ट्र जैसे प्रदेश के लिए ऑक्सीजन के प्लांट लगाना कोई बड़ी बात नहीं है। उनका मानना है कि 35 से 55 लाख के बीच में एक ऑक्सीजन का प्लांट लगाया जा सकता है। डा. पाटिल कहते हैं कि मनुष्य की जिंदगी के लिए सबसे जरूरी ऑक्सीजन का प्लांट लगाने के लिए यदि आवश्यकता पड़े तो विधायक व सांसद निधि का भी उपयोग किया जाना चाहिए।