भारतीय संस्कृति का परचम आज पूरे विश्व में लहरा रहा है। हर व्यक्ति भारतीय संस्कृति को जानने और समझने की कोशिश कर रहा है। वहीं बहुत सारे लोग ऐसे भी हैं जो भारतीय संस्कृति को कपोल कल्पना मानते हैं लेकिन अब यह दुनिया भी जान रही है कि जो बातें आज सिद्ध की जा रही है वह बहुत साल पहले हमारे धर्म ग्रंथों में कहीं जा चुकी है। चाहे न्यूटन के गति के नियम हो, चाहे गॉड पार्टिकल की बात हो,चाहे तरंगों के माध्यम से सूचना प्रदान करना हो यह सभी वे क्रियाएं हैं जो हमारे धर्म ग्रंथों में लिखी है।
गीता के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति यह समझता है कि वह स्वतंत्र इकाई है। उसकी अपनी एक सत्ता है। लेकिन वास्तव में वह यह नहीं जानता कि सृष्टि में घट रही असंख्य घटनाओं में एक बिंदु मात्र है। प्रतिदिन मनुष्य के जीवन में घटने वाली घटना है सृष्टि के संचलन की एक कड़ी है यदि एक भी घटना नहीं घटित होती तो शायद आज मनुष्य का अस्तित्व नहीं होता।
गीता बताती है कि प्रत्येक व्यक्ति केवल अपने कर्मों का फल भुगतने के लिए धरती पर जन्म लेता है। उसको अपने कर्मों से अपने जीवन को सफल बनाना है या दोबारा इस जन्म या मृत्यु के चक्कर में पड़ना है यह उस पर निर्भर है। आत्मा सदैव अजर अमर रहती है, ना तो आत्मा गीली होती है,ना ही आत्मा सूखती है,ना ही आग से जलती है और ना ही समाप्त होती है।आत्मा ठीक उसी प्रकार कार्य करती है जैसे कोई भी व्यक्ति पुराने वस्त्रों को उतारकर नए वस्त्र धारण करता है वैसे ही आत्मा पुराने शरीर को छोड़कर नए शरीर में चली जाती है?
भगवान श्री कृष्ण ने इस गीता के द्वारा अर्जुन से कहा था कि व्यक्ति केवल कर्म करने का अधिकारी है वह केवल कर्म कर सकता है फल केवल ईश्वर देता है। भगवान ने गीता में कहा था कि वह व्यक्ति जो सुख-दुख में समान बना रहता है, सुख में ना तो अति हर्षित होता है और दुख में नाही शोक में जाता है, वह व्यक्ति मुझे( ईश्वर) को अति प्रिय होता है।
इस गीता में कहा गया है कि इस धरती पर प्रत्येक व्यक्ति के लिए कोई ना कोई कार्य मौजूद है ऐसा नहीं है कि किसी व्यक्ति में कोई बड़े कार्य करने की क्षमता ना हो। लेकिन बस देर है तो उस कार्य को ढूंढने की।
गीता में लिखा है क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है। जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाते हैं। जब तर्क नष्ट होते हैें तो व्यक्ति का पतन शुरू हो जाता है।