सौ से शून्य पर कैसे सिमटी कांग्रेस, राहुल की अपरिपक्व राजनीति क्यों नहीं फूँक पा रही जान?

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में आज मुख्य नेतृत्व, संचार,और पर्यवेक्षण की कमी है। करीब डेढ़ सालों से बिना मुखिया के संचालित हो रही है, जिससे इस बात का अंदाजा आवाज से लगाया जा सकता है कि नेतृत्व की कमी कांग्रेस खाए जा रही है। संवादहीनता के वजह से नेताओं तक योजना और रणनीति पहुंच नहीं पा रही है।

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चित्र साभार: ट्विटर @RahulGandhi

भारत की प्रमुख राजनीतिक पार्टी जो 55 वर्षों तक सर्वाधिक सत्ता में रहने का रिकॉर्ड बनाई, पहले लोकसभा चुनाव में 346 सीटों पर प्रचंड जीत हासिल करने वाली पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 16वीं लोकसभा चुनाव में 19% वोटों के साथ मात्र 44 सीटों पर सिमट गयी। वह कहते हैं न की होईहि सोइ जो राम रचि राखा।

पार्टी के स्थापना का मुख्य उद्देश्य स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करना और गुलामी से मुक्ति पाना था। आजादी के बाद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि कांग्रेस का उद्देश्य अब पूरा हो चुका है अतः इसे अब खत्म कर देना चाहिए। परंतु हकीकत मे स्वतंत्रता मिलने के पश्चात यह भारत की प्रमुख राजनीतिक पार्टी बन गई। आजादी के बाद से अब तक 16 आम चुनाव में कांग्रेस 6 बार पूर्ण बहुमत और चार बार सत्तारूढ़ गठबंधन के साथ नेतृत्व कर चुकी है।

कांग्रेस की वर्तमान हालत

बिहार चुनाव में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन और हार पर मंथन न करने से कांग्रेस पर सवाल उठने शुरू हो गए है। सवाल यह उठ रहा है कि क्या कांग्रेस पार्टी सिर्फ एक परिवार के लिए बनी है।क्या जनता के सरोकार के मुद्दे पार्टी के लिए सिर्फ छलावा है? तेजस्वी यादव की पार्टी आरजेडी के साथ गठबंधन में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मात्र 8 रैलियां की जबकि तेजस्वी यादव कुल 247 रैलियां की। इससे यह बात तो स्पष्ट हो जाता है कि जनता के जन कल्याण से कांग्रेस का कोई लेन-देन नहीं है। कांग्रेस को सिर्फ परिवारवाद की राजनीति करके अपना पेट भरना चाहती है। परंतु यह ज्यादा दिन तक चलता नहीं है। उसी स्थिति में कांग्रेस पार्टी अब अपने बुरे दिनों कों गिनना शुरू कर चुकी हैं।

सौ से शून्य पर कैसे सिमट गई कांग्रेस

भारत की सबसे पुरानी पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पर परिवारवाद का आरोप हमेशा से लगता आया है। आजादी के बाद भारत के प्रमुख राजनीतिक पार्टी बनकर उभरी कांग्रेस की स्थिति का इस बात से पता लगाया जा सकता है कि पूर्व अध्यक्ष राहुल अपनी लोकसभा सीट अमेठी भी नहीं बचा पाते हैं। संपूर्ण भारत में अपना परचम लहराने वाली पार्टी आज मात्र संकुचित राज्यों में सीमित है। 346 सीट जीतने वाली पार्टी आज मात्र 44 सीटों पर सिमट कर रह गई है। पूर्वी राज्यों में राजस्थान और पंजाब को छोड़ दें तो कांग्रेसी अपनी पैठ कहीं नहीं जमा पाई है।

हाल ही में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 70 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और मात्र 19 सीटों पर जीत दर्ज कर पाई। जिसके बाद से कांग्रेस की टूटती कड़ियों की चर्चा तेज हो गई, कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेता और विपक्ष इसके कार्यशैली पर सवालिया निशान उठाना शुरू कर दीए। सोनिया गांधी का दिल्ली छोड़कर गोवा जाना, राहुल गांधी और प्रियंका का शिमला में पिकनिक मनाना डेढ़ सालों से बिना अध्यक्ष के पार्टी चलना, युवा नेताओं को वजूद ना देना यह फितरत कांग्रेस पार्टी को लगातार कमजोर कर रही है। लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर कांग्रेस मात्र 7 सीटें जीत पाई। राहुल गांधी अपनी पुश्तैनी सीट भी गवा बैठे। हाल ही में मध्य प्रदेश में हुए चुनाव में भी कांग्रेस की हालत यही रही। बगावत के सुर भी उठने तेज हो गए है। जमीनी स्तर पर काम करने वाले नेताओं की कमी हो गई है। जिसके कारण फाइव स्टार की चाह रखने वाले कांग्रेसी नेताओं की दाल नहीं गल रही है।

नेतृत्वविहीन कांग्रेस, युवाओं के लिए नहीं जगह

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में आज मुख्य नेतृत्व, संचार और पर्यवेक्षण की कमी है। करीब डेढ़ सालों से बिना मुखिया के संचालित हो रही है, जिससे इस बात का अंदाजा आवाज से लगाया जा सकता है कि नेतृत्व की कमी कांग्रेस खाए जा रही है। संवादहीनता के वजह से नेताओं तक योजना और रणनीति पहुंच नहीं पा रही है। जो जिस पद पर है वह स्वयं को मसीहा समझ रहा है। युवाओं को वजूद ना देने से पार्टी का शीर्ष नेतृत्व भी कमजोर हो रहा है, और यही कारण है कि बगावत के सूर उठने लगे हैं। रणनीति और कार्यशैली को संचालित करने के लिए कोई पर्यवेक्षण नहीं है, जिसके कारण नेता अपनी मनमानी कर रहे हैं। जनता के सरोकार नहीं बल्कि अपना 4 मंजिला मकान तैयार कर रहे हैं। जिसके बाद जनता ने भी उन्हें चुनना बंद कर दिया है। अब कांग्रेस कुछ दिनों में जमींदोज होने के कगार पर आ सकती है।

कांग्रेस के चाटुकार नेता नहीं चाहते भला

कांग्रेस के शीर्ष नेता कपिल सिब्बल गुलाम नबी आजाद समेत कई लोगों ने कांग्रेस के हाईकमान पर कई बार सवाल खड़े किए हैं। कांग्रेस के अध्यक्ष पद को लेकर कई बार चर्चाएं हुई परंतु परिणाम निष्फल रहा। बिहार में हुई करारी हार का भी मंथन नहीं किया गया, जिसके कारण शीर्ष नेतृत्व के नेता भी कांग्रेस के हाईकमान से नाराज चल रहे हैं। परंतु कांग्रेस के कुछ चाटुकार नेता कांग्रेस की लुटिया डुबोने में लगे हुए, ऐसे नेता नहीं चाहते कि उनके फाइव स्टार महलों पर कोई आँच आए। ऐसे नेता पार्टी हित में नहीं बल्कि अपनी जेब भरने के लिए सोच रहे हैं। यही कारण है कि जब कपिल सिब्बल जैसे बड़े नेता हाईकमान पर सवाल उठाते हैं तो कुछ चाटुकार नेता अपने आकाओं का दर्द लेकर रोने लगते है। और सवाल उठा रहे नेताओं आजाद होने जैसी बातों का बेतुका बयान देने लगते हैं। यह कांग्रेस की स्थिति को और धूमिल कर रही है।

सोनिया गांधी का पुत्र मोह और राहुल की अपरिपक्व राजनीति

2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही कांग्रेस के अध्यक्ष पद में बदलाव होने की बात सुर्खियों में थी। हर कोई है जानना चाहता था कि आखिर कांग्रेस का नया अध्यक्ष कौन बनता है, कुछ लोगों को यह उम्मीद भी थी कि गांधी परिवार से हटके कोई नया अध्यक्ष बनाया जा सकता है। परंतु ऐसा कुछ देखने को नहीं मिला। राहुल गांधी के बाद सोनिया गांधी ने अध्यक्ष पद संभाला। सोनिया गांधी यह चाहती हैं कि राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। परंतु लगातार राज्यों और लोकसभा चुनाव में हो रहे करारी हार के बाद यह स्पष्ट होता है कि राहुल परिपक्व नेता नहीं है, खासकर अध्यक्ष पद के लायक राहुल गांधी नहीं है। राहुल गांधी के अब परिपक्व राजनीति से लगातार एक के बाद एक कांग्रेस के हाथ से छूटता जा रहा है। परंतु सोनिया गांधी का पुत्र मोह वास्तविकता को समझने से नकार रहा है। महाभारत में जिस प्रकार धृतराष्ट्र का पुत्र मोह युद्ध का कारण बना था, ठीक उसी प्रकार सोनिया का पुत्र मोह कांग्रेस की लुटिया डुबो देगी।

क्षेत्रीय दल ले रहे हैं कांग्रेस का जगह

समाजवादी पार्टी, लोक जनशक्ति पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल यूनाइटेड समेत कई क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस पर हावी हो रही है। राज्यों दर राज्यों में हो रहे चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन इन क्षेत्रीय पार्टियों से भी खराब है। कांग्रेस के राष्ट्रीय मुद्दों पर क्षेत्रीय नेताओं के मुद्दे हावी हो रहे हैं। कांग्रेस अपने मुद्दे पर उतना बल नहीं दे पा रही, जिसके कारण क्षेत्रीय पार्टियां बाजी मार रही हैं। कांग्रेस के जड़ों को क्षेत्रीय पार्टियां दीमक की तरह खाए जा रही है। अपनी पैठ बनाने के लिए क्षेत्रीय पार्टियां अलग-अलग मुद्दों के साथ चुनावी रण में उतर रही हैं, जिससे सबसे अधिक हानि कांग्रेस पार्टी को हो रही है। यह समझना बेहद आसान है।परंतु नेतृत्वहीनता के कारण कांग्रेस के आंख में बंधी पट्टी कुछ भी देखने को मंजूर नहीं कर रही है।

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