19वीं सदी में हॉकी ने भारत में दस्तक दे दी थी। इसके बाद वो दौर आया जब भारत को विश्व के कई देश हॉकी के नजरिए से पहचानने लगे। ओलंपिक खेलों में भारत ने कई सालों तक राज़ किया। उस दौर में भारतीय हॉकी टीम ने इस खेल को देश में इस कदर लोकप्रिय कर दिया था कि सरकार को हॉकी को देश का राष्ट्रीय खेल घोषित करना पड़ा। आज भी फैंस भारतीय हॉकी टीम को ओलंपिक में खेलते देखने के लिए काफी उत्सुक रहते हैं।
भारत ने 2021 में होने वाले ओलंपिक खेलों के लिए क्वालिफाई कर लिया है। पिछले कुछ साल से भारतीय हॉकी टीम लगातार शानदार प्रदर्शन कर रही है। ऐसे में फैंस को इस बार हॉकी टीम से ओलंपिक मेडल की उम्मीद और ज्यादा बढ़ गयी है। भले ही 1980 के बाद से भारत हॉकी में कोई ओलंपिक मेडल नहीं जीत पाया है लेकिन भारत का हॉकी इतिहास स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है।
लगातार 6 ओलंपिक में रहा भारत का जलवा
भारतीय टीम ने एक दौर में लगातार 6 ओलंपिक हॉकी गोल्ड जीत कर रिकॉर्ड कायम किया था। टीम इंडिया ने 1928 से लेकर 1956 तक लगातार 6 गोल्ड जीते। इसके बाद टीम ने 2 और गोल्ड अपने नाम किए। भारत हॉकी में अभी तक कुल 8 गोल्ड समेत 11 मेडल अपने नाम कर चुका है।
एम्सटर्डम से शुरू हुआ भारत का विजयरथ
विश्व ने पहली बार ओलंपिक में भारत का जलवा 1928 एम्सटर्डम ओलंपिक में देखा था। ये पहली बार तब जब भारत ने अपना पहला ओलंपिक हॉकी गोल्ड जीता। इसी साल भारत को ध्यानचंद जैसा महान खिलाड़ी मिला। उस ओलंपिक में ध्यानचंद ने कुल 14 गोल कर इतिहास रचा था। ध्यानचंद का खेल देख कर उस समय हर कोई हैरान रह गया था। यहीं से भारत के स्वर्णिम हॉकी इतिहास की शुरुआत हुई।
1980 के बाद बदला खेल
1980 मॉस्को ओलंपिक में भारत ने हॉकी में आखिर बार गोल्ड अपने नाम किया था। इसके बाद से भारत हॉकी में अभी तक कोई मेडल नहीं जीत पाया है। ऐसा क्या कारण था कि कई सालों तक हॉकी की दुनिया पर राज करने वाली टीम इंडिया अर्श से फर्श पर पहुंच गई? 1980 तक के स्वर्णिम युग के बाद हॉकी में एक बड़ा बदलाव आया। कौशलपूर्ण हॉकी की जगह 1980 के बाद एस्ट्रो-ट्रफ ने ले ली। अब हॉकी और तेज़ तर्रार हो गयी। अचानक बदले खेल ने भारत के सामने बड़ी चुनौती खड़ी कर दी। ट्रफ पर अनुभव न होने के कारण भारतीय हॉकी टीम का प्रदर्शन लगातार गिरता चला गया।
टीम इंडिया को ट्रफ के लिए उस समय बेहतर आधिकारिक संरचना की जरुरत थी लेकिन सरकारी सुविधाओं की कमी के कारण हॉकी का सूरज डूबता ही चला गया। दूसरी तरफ उसी दौर में क्रिकेट हॉकी की जगह ले चुका था। क्रिकेट की बढ़ती लोकप्रियता ने हॉकी को पीछे धकेल दिया। न तो हॉकी प्लेयर्स की किसी ने सुध ली और न ही फैंस की हॉकी में दिलचस्पी बची। नतीजा ये रहा कि जिस हॉकी ने भारत को अलग पहचान दी उसे देखते ही देखते दरकिनार कर दिया गया।
कैसे तय होगा हॉकी का भविष्य?
हॉकी एक बेहद ही शानदार खेल है। इसमें हर उस चीज़ की जरुरत होती है जो बाकी खेलों में जरुरी होता है। पिछले कुछ सालों में कई ऐसे खिलाड़ी आए जिन्होंने इस खेल को एक बार फिर फैंस के दिलों में जिंदा करने की कोशिश की है। यही कारण है कि फैंस हॉकी को लेकर फिर से रूचि दिखाने लगे हैं। खिलाड़ियों को जरुरत है सरकार के सहयोग की। हॉकी के दूसरे स्वर्णकाल को लाने के लिए सरकार को स्कूल और कॉलेज स्तर पर हॉकी को फिर से जीवित करना होगा। इस खेल की गरिमा बढ़ाए रखने के लिए सरकार द्वारा हॉकी खेलने वाले विद्यार्थियों और राष्ट्रीय टीम के खिलाड़ियों के लिए बेहतर धन राशि और वित्तीय सुविधाओं के साथ अन्य सुविधाएं भी उपलब्ध करानी चाहिए। ताकि भविष्य में एक बार फिर विश्व भारतीय हॉकी को अलग नजरिए से देख सके।
ओलंपिक में भारत के मेडल (हॉकी)
1928, एम्सटर्डम- गोल्ड
1932,लॉस एंजेल्स- गोल्ड
1936, बर्लिन- गोल्ड
1948, लंदन- गोल्ड
1952, हेलिंसिकी- गोल्ड
1956, मेलबर्न- गोल्ड
1960, रोम- रजत
1964, टोक्यो- गोल्ड
1968, मेक्सिको- कांस्य
1972, म्यूनिख- कांस्य
1980, मॉस्को- गोल्ड
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