पश्चिम बंगाल ने तोड़े चुनावी हिंसा के सारे रिकॉर्ड, 2018 से अब तक हुई 100 नेताओं की हत्या

पश्चिम बंगाल का नाम राजनीतिक हिंसा के मामले में नंबर एक पर आता है। अगर हम ताजा आंकड़ों की बात करें तो 2018 पंचायत चुनाव से लेकर अब तक पश्चिम बंगाल में 100 नेताओं की हत्या हो चुकी है। देश में अब तक 54 राजनीतिक हत्याओं में से 12 हत्या केवल बंगाल में हुई हैं।

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पश्चिम बंगाल एक ऐसा राज्य है जहां पर भारतीय जनता पार्टी अपना साम्राज्य बनाने की तैयारी कर रही है। जिसके कारण लगातार सत्ता के नशे में चूर हुई तृणमूल कांग्रेस और ममता बनर्जी भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं पर कभी तो लाठीचार्ज कराती हैं और कभी टीएमसी के कार्यकर्ता भाजपा के कार्यकर्ताओं की हत्या कर देते हैं। लगातार भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच जुबानी जंग भी तेज रहती है और कभी-कभी यह जंग सांप्रदायिक हिंसा का रूप ले लेती है।

भाजपा नेताओं का दावा है कि साल 2018 के पंचायत चुनाव से लेकर अब तक भारतीय जनता पार्टी के करीब 100 कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है। हालांकि तृणमूल कांग्रेस इन हत्याओं के लिए पार्टी की अंदरूनी गुटबाजी को जिम्मेदार ठहराते है। एनसीआरबी के अनुसार 2018 में पूरे साल के दौरान देश में होने वाली 54 राजनीतिक हत्याओं में से 12 हत्यार बंगाल में हुई थी। उसी साल केंद्र सरकार ने राज्य को एडवाइजरी भेजी थी। जिसमें यह बताया गया था कि पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा में 96 हत्याएं हुई हैं और लगातार होने वाली हत्याएं एक गंभीर चिंता का विषय है।

उस रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि वर्ष 1999 से 2016 के बीच पश्चिम बंगाल में हर साल औसतन 20 राजनीतिक हत्याएं होती हैं। इसमें सबसे ज्यादा 50 हत्या 2009 में हुई थी। उस साल अगस्त में माकपा के एक पत्र जारी कर दावा किया था कि 2 मार्च से 30 जुलाई के बीच तृणमूल कांग्रेस ने 62 काडर की हत्या कर दी। यह उस समय की बात है जब तृणमूल कांग्रेस मजबूती से आगे आने लगा था नंदीग्राम और सिंगूर में जमीन अधिग्रहण विरोधी आंदोलनों के जरिए ममता बनर्जी ने देश-विदेश में सुर्खियां बटोरी थी। राज्य में उनके कार्यकर्ता वर्चस्व की लड़ाई के लिए अपना सब कुछ दाव पर लगा चुके थे।

1980 से 1990 के दशक में जब बंगाल में राजनीतिक परिदृश्य में तृणमूल कांग्रेस और भाजपा को कोई वजूद नहीं था। तब पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा और कांग्रेस के बीच हिंसा जारी रहती थी। 1989 में तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु की ओर से विधानसभा में पेश आंकड़ों में यह कहा गया था कि 1988 से 1989 के दौरान राजनीतिक हिंसा में 86 कार्यकर्ताओं की मौत हुई है और उनमें से 34 माकपा के थे तथा उन्नत कांग्रेस के।

वर्तमान परिदृश्य में लगातार भारतीय जनता पार्टी और तृणमूल कांग्रेस के बीच जंग जारी है और जब 2014 में 2 सीट जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में 42 में से 18 लोकसभा सीटें जीत ली तब यह जंग और तेज हो गईं। भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस और वाम दल को पढ़ते हुए मुख्य विपक्षी दल के रूप में अपनी जगह बना ली और अब तृणमूल कांग्रेस साम दाम दंड भेद का तरीका अपनाते हुए जिन स्थानों से भारतीय जनता पार्टी की विजय हुई थी अपनी जमीन बचाने की तलाश में है। लेकिन पश्चिम बंगाल की सरकार भारतीय जनता पार्टी को एक भी मौका नहीं देना चाहती, और भारतीय जनता पार्टी के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए पश्चिम बंगाल की सरकार संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करते हुए अपनी राजनीतिक दुश्मनी के लिए सत्ता की शक्तियों का उपयोग कर रही है।

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