दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर्स पर लगातार किसानों का आंदोलन जारी है। इस आंदोलन को राजनीतिक पार्टियों का समर्थन भी प्राप्त हो चुका है क्योंकि जिन पार्टियों ने इसे अपना समर्थन दिया है वह सभी अलग-अलग राज्यों के विधानसभा चुनावों में इस आंदोलन के जरिए सत्ता को हासिल करना चाहती हैं। कुछ समय बाद ही उत्तर प्रदेश और पंजाब में पंचायत चुनाव होने हैं। वहीं दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश पंजाब और हरियाणा के विधानसभा चुनावों में किसानों के नाम पर खूब राजनीति होगी और भारतीय जनता पार्टी के वोटर्स को तोड़ने का काम किया जाएगा।
महाराष्ट्र में इस आंदोलन के जरिए राष्ट्रवादी कांग्रेस अपना खोया हुआ वजूद प्राप्त करने में लग गई है। कुछ दिन पहले ही राष्ट्रवादी कांग्रेस के अध्यक्ष शरद पवार किसानों की रैली में शामिल हुए थे। वहीं भारतीय जनता पार्टी का दामन छोड़कर धर्मनिरपेक्ष राजनीति का दावा करने वाली शिवसेना भी इस आंदोलन से अपनी राजनीतिक फायदे को प्राप्त करने में लग गई है। इसके लिए शिवसेना के राज्यसभा सांसद संजय राउत ने राकेश टिकैत से मुलाकात की और भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार को खरी-खोटी सुनाई।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी किसानों के आंदोलन पर अपनी राजनीतिक रोटियां सीखना चाहती हैं क्योंकि वे जानती हैं कि अब पश्चिम बंगाल से उनका सूपड़ा साफ होना तय है। क्योंकि पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले ही कई तृणमूल कांग्रेस के विधायक उनका साथ छोड़कर भाजपा के साथ जा चुके हैं।
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भी इस आंदोलन का खासा प्रभाव देखने को मिलेगा.. क्योंकि प्रदेश में जाटों की संख्या बहुत है और उत्तर प्रदेश में जनसंख्या अधिक होने के कारण यहां पर कृषि करने वाले लोग भी अधिक हैं! ऐसे में यह देखना ज्यादा महत्वपूर्ण होगा उत्तर प्रदेश में इस पूरे आंदोलन का क्या प्रभाव पड़ेगा?