कोरोना संक्रमण के समय में निश्चित रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा की छवि को नुकसान हुआ है। जिसका सीधा उदाहरण उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनावों में देखा जा सकता है। अगले साल यूपी में विधानसभा चुनाव होने हैं जिसमें भाजपा किसी भी प्रकार का रिस्क नहीं लेना चाहती। कोरोना काल के दौरान उत्तर प्रदेश ही क्या पूरे देश की स्वास्थ्य व्यवस्था ठप होती हुई दिखाई दी है? ऐसे में यह बात लगातार उठ रही है अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा को नुकसान हो सकता है। अगले साल उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं जहां वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है।
अगर केवल उत्तर प्रदेश की बात करें तो उत्तर प्रदेश की 404 विधानसभा सीटों में से 307 पर बीजेपी जीती थी, लेकिन वर्तमान में हुए पंचायत चुनावों में विपक्षी दलों ने भाजपा को करारी टक्कर देने का काम किया है। ऐसे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के सभी बड़े नेता उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार को दोबारा लाने की कोशिश में जुट गए हैं। यह कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के परिचित और बनारस में पीएम की अनुपस्थिति में उनका लोकसभा क्षेत्र संभाल रहे पूर्व आईपीएस और विधान परिषद सदस्य एके शर्मा को प्रदेश सरकार की कैबिनेट में अहम पद मिल सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि ए के शर्मा सीधे तौर पर नरेंद्र मोदी और अमित शाह के संपर्क में हैं। और पूर्वांचल में जिस तरह उन्होंने कोरोना संक्रमण की स्थिति को संभाला है इससे उनके सरकार में जाने की चर्चा तेज हो गई है।
ऐसे भी चर्चा हो रही है कि वर्तमान में उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को दोबारा भारतीय जनता पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि केशव प्रसाद मौर्य की जाति पार्टी के साथ बनी रहे तो सरकार में आना आसान हो जाएगा। वहीं दूसरी तरफ ब्राह्मणों की नाराजगी दूर करने के लिए ए के शर्मा को कैबिनेट में लाया जाएगा। कोरोना संक्रमण तथा किसानों की नाराजगी का फायदा उठाकर कांग्रेस और बसपा तथा समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल एक साथ आकर भाजपा के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर सकते हैं। ऐसे में इन चुनौतियों से लड़ने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व लगातार विचार कर रहा है।
कई विशेषज्ञों का कहना है कि उत्तर प्रदेश में कई विधायकों के व्यवहार के कारण उनकी जनता चाहते हुए भी पार्टी के पक्ष में वोट नहीं डालेगी। ऐसा इसलिए क्योंकि उन विधानसभा की सीटों पर विधायकों का कार्य इतना बुरा रहा है कि उन्होंने अपनी जनता के लिए कुछ भी नहीं किया है। ऐसे में 2022 के विधानसभा चुनावों में कुल विधायकों की टिकट कटने की पूरी संभावना है, जिनसे उनकी जनता नाराज है।