2014 के लोकसभा चुनाव के बाद पूरे देश को यह पता चल गया कि अब भारत में अपनी सरकार बनाने के लिए आपको हिंदुओं का वोट लेना भी आवश्यक है। जिसका सबसे बड़ा उदाहरण बनी 2014 और 2019 की मोदी सरकार। 2014 और 2019 से पहले कभी हिंदुत्व के वोट को इतना संगठित नहीं देखा गया था जितना इन बार देखा गया। केवल देश में ही नहीं अपितु सभी राज्यों की सरकारों में भी ऐसा देखा गया कि हिंदुत्व का वोट संगठित रूप से सरकार बनाने के लिए काफी है। इसीलिए वे सभी दल जो कभी हिंदुत्व के वोट का आंकलन नहीं करते थे, वे सभी दल अब हिंदुत्व का वोट पाना चाहते हैं। जिसमें कमलनाथ और प्रियंका गांधी की राम भक्ति, अरविंद केजरीवाल की भगवान हनुमान की भक्ति और अखिलेश यादव की परशुराम भक्ति शामिल है।
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश में अपनी रणनीति में बदलाव किया है और राम मंदिर के मुद्दे पर पार्टी के दूसरे नेताओं से पहले खुलकर अपना विचार रखा है। पार्टी में आचार्य प्रमोद कृष्णम, हरेंद्र मलिक राकेश सचान और बेगम नूर बानो का नाम यूपी की एडवाइजरी काउंसिल में रखा गया है। प्रमोद कृष्णम को इस काउंसलिंग में रखने का केवल एक लक्ष्य है कि किसी भी प्रकार से हिंदुत्व का वोट कांग्रेस की ओर ट्रांसफर हो सके। क्योंकि इस समय उत्तर प्रदेश में जो ब्राह्मण राजनीति चल रही है उसके तहत यह लग रहा है कि ब्राह्मण भाजपा का साथ छोड़ सकते हैं। और यदि ब्राह्मण भाजपा का साथ छोड़ते हैं तो वह किसी ऐसे दल के पास जाना चाहेंगे जहां उन्हें उनका सम्मान वापस मिल सके। इसीलिए प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों को रिझाने के लिए अब ब्राह्मण चेहरों को सक्रिय कर दिया है।