बिहार से हैदराबाद तक ओवैसी का बढ़ता वोटबैंक, क्या बंगाल और उत्तर प्रदेश में देगा AIMIM को फायदा

AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी का वोटबैंक लगातार बढ़ता जा रहा है। बिहार और हैदराबाद के चुनाव इस बात की गवाही देते हैं। ऐसे में ओवैसी की बढ़ती लोकप्रियता बंगाल और उत्तर प्रदेश में आने वाले चुनावों का समीकरण पूरी तरह से बदल सकती है।

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चित्र साभार: ट्विटर @aimim_national

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी अपने तीखे व्यंग और तेज-तर्रार भाषणों से राजनीति में खुद की एक अलग पहचान बना चुके हैं। हाल ही में ग्रेटर हैदराबाद में संपन्न हुए नगर निगम चुनावों में मिली सफलता के बाद ओवैसी ने एआईएमआईएम के लगातार बढ़ते स्ट्राइकरेट की झलक दिखा कर सभी को चौंका दिया है। बिहार विधानसभा चुनाव और हैदराबाद के नगर निगम चुनावों ने स्पष्ट कर दिया है कि बिहार से लेकर हैदराबाद तक ओवैसी का वोट बैंक बढ़ना शुरू हो गया है। ये कहना गलत नहीं होगा कि ओवैसी ने महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनाव में पहले के मुकाबले आधी से ज्यादा सीटें जीतने के बाद बिहार में हुए उपचुनावों में पिछली बार के मुकाबले शानदार प्रदर्शन के जरिए खुद को चर्चा का विषय बना दिया है।

आज ओवैसी महाराष्ट्र लेकर बंगाल और बिहार से लेकर हैदराबाद तक सभी जगह मुसलमानों के लिए आइकॉन बन चुके हैं। उनके वीडियोस को सोशल मीडिया पर काफी वायरल होते हैं। हालांकि उनके भाषण काफी भड़काऊ होते हैं लेकिन अब ओवैसी एक राष्ट्रीय नेता के रूप में खुद को स्थापित कर चुके हैं। भले ही हैदराबाद को ओवैसी का गढ़ माना जाता हो लेकिन महाराष्ट्र और बिहार जैसे बड़े राज्यों में ओवैसी की पार्टी ने जीत का स्वाद चखा। ओवैसी की बढ़ती लोकप्रियता के पीछे आखिर क्या कारण है? क्या मुस्लिम वोटबैंक ने ओवैसी को राजनीति में अलग मुकाम देना शुरू कर दिया है?

ओवैसी का बढ़ता वोटबैंक

पिछले कुछ सालों में ओवैसी ने अपने दम पर खुद का एक अलग वोट बैंक स्थापित किया है पिछले कुछ सालों में हुए चुनाव इस बात की गवाही देने के लिए काफी हैं। महाराष्ट्र के बाद एआईएमआईएम ने 2013 में कर्नाटक का स्थानीय चुनाव लड़ा और 6 सीटें अपने नाम कीं। इसके बाद 2019 तक एआईएमआईएम अलग-अलग राज्यों में निकाय चुनाव लड़कर अपना वजूद मजबूत करती रही। 2018 में ओवैसी ने उत्तर प्रदेश के नगर निकाय चुनावों में 31 सीटों पर जीत दर्ज की थी। यहीं से ओवैसी ने मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने की कवायद शुरू की और राज्यों के विधानसभा चुनावों में अपनी पार्टी का वर्चस्व कायम करना शुरू किया।

नजरें अब बड़ी मछली पर

नगर निकाय चुनावों में मिली सफलता के बाद बिहार विधानसभा की किशनगंज सीट पर 2019 में हुए उपचुनाव से एआईएमआईएम ने दूसरे राज्यों की विधानसभा सीटों पर नजरें जमानी शुरू कर दीं थी। 2019 किशनगंज की सीट पर ओवैसी की पार्टी AIMIM की पहली हिंदी बेल्ट की जीत थी। इसके बाद बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में पार्टी ने 20 सीटों पर ताल ठोकी और 5 पर जीत हासिल की। हाल ही में हुए ग्रेटर हैदराबाद के निगम चुनावों में ओवैसी की पार्टी 44 सीटें जीत पाने में कामयाब रही। खास बात ये रही कि इस बार AIMIM ने सिर्फ 51 उम्मीदवार ही मैदान में उतारे थे। मुस्लिम वोटर्स अब कांग्रेस और अन्य पार्टियों का साथ छोड़ कर AIMIM के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। 2021 में पश्चिम बंगाल और उसके कुछ ही समय बाद उत्तर प्रदेश में चुनाव का शंखनाद हो जाएगा। ऐसे में ओवैसी की पार्टी इस बार हर चुनाव में विपक्ष को कड़ी टक्कर देती नजर आएगी।

क्यों लोकप्रिय हुए ओवैसी?

फिलहाल मुसलमानों के दिलों में यह बात घर कर गई है कि इस समय राष्ट्रीय स्तर पर उनकी आवाज उठाने वाला चेहरा ओवैसी के अलावा और कोई नहीं है। यही कारण है कि असदुद्दीन ओवैसी और उनके भाई अकबरुद्दीन की हर आम और चुनावी रैली में मुस्लिमों की काफी भीड़ देखने को मिलती है। मुसलमानों को ओवैसी में उनके नेता की छवि दिखाई देती है। एआईएमआईएम पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी लोकसभा और अन्य मंच पर मुसलमानों की समस्याओं से जुड़े सवाल उठाते हैं। ओवैसी अपनी छवि से लगातार युवा मुस्लिम वर्ग के आइकॉन बनते जा रहे हैं यही कारण है कि पिछले कुछ सालों में ओबीसी की लोकप्रियता लगातार बढ़ी है। ओवैसी भी सिर्फ उतनी ही सीटों पर चुनाव लड़ने को वरीयता दे रहे हैं, जितने पर पार्टी अच्छी तरह परफॉर्म कर सके।

बंगाल में क्या ओवैसी को होगा फायदा?

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के लिए मुस्लिम वोट बैंक सत्ता हासिल करने से लेकर बने रहने तक एक मजबूत सपोर्ट सिस्टम साबित हुआ है। मुस्लिम समुदाय के दम पर ही तृणमूल कांग्रेस 2011 और 2016 में सत्ता में आई थी। लेकिन अब मुस्लिम समुदाय AIMIM के साथ भी खड़ा नजर आने लगा है। कुछ राज्यों खास कर पश्चिम बंगाल की बात करें तो मुस्लिम समुदाय के बारे में अब तक माना जाता रहा है कि 2014 के बाद से वे उसी पार्टी को वोट देना पसंद करते हैं जो दल बीजेपी को हराने में सक्षम नजर आता हो। ममता बनर्जी के लिए पिछले कुछ साल राजनैतिक लिहाज़ से कुछ ठीक नहीं रहे हैं। वहीं हैदराबाद में मिली जीत के बाद ओवैसी की पार्टी ने बंगाल में अभी से रणनीति बनाकर अपने वोट बैंक को और मजबूत करना शुरू कर दिया है।

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