क्या आप जानते हैं कैसे हुई थी हॉकी के जादूगर, Major Dhyanchand की मृत्यु

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब से राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार का नाम बदलकर मेजर ध्यानचंद को खेल रत्न पुरस्कार किया है। तब से लगातार MAJOR DHYANCHAND का नाम सुर्खियों में बना हुआ है। लेकिन क्या आप जानते है कि हॉकी के इस जादूगर MAJOR DHYANCHAND की मृत्यु कैसे हुई थी।

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MAJOR DHYANCHAND देश के उन सभी लोगों के आदर्श हैं जिन्होंने राष्ट्र के लिए स्वयं को समर्पित करने का प्रण लिया है। या फिर जो राष्ट्र के लिए खेलकर अपनी देशभक्ति साबित करना चाहते हैं। पिछले कुछ दिनों में हमारे राष्ट्र भारत ने ओलम्पिक में जो प्रदर्शन किया है उसके बाद तमाम सरकारें और बुद्धिजीवी वर्ग ये सोचने को मजबूर हुआ है कि क्रिकेट के अलाबा कई और खेल भी हैं जो राष्ट्र को दुनिया के सामने सम्मान दिला सकते हैं। ठीक ऐसा ही समय तब भी हुआ करता था ज़ब हॉकी के जादूगर MAJOR DHYANCHAND हॉकी के मैदान में अपना हुनर दिखाते थे। MAJOR DHYANCHAND से जुड़ी कई कहानियाँ आपने सुनी होंगी या आपको याद होंगी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस बेहतरीन खिलाड़ी की मृत्यु कैसे हुई थी। आइये आपको बताते हैं –

भारत को हॉकी में तीन ओलंपिक मेडल्स दिलाने में अहम रोल निभाने वाले मेजर ध्यानचंद (Dhyan Chand) की मौत 3 दिसंबर, 1979 को दिल्ली के एम्स अस्पताल में लीवर के कैंसर से जूझते हुए हुई थी। लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जब MAJOR DHYANCHAND की मृत्यु हुई थी तब वहाँ महाभारत के युधिष्ठिर Gajendra Chauhan भी थे। ABP NEWS को दिए एक इंटरव्यू में Gajendra Chauhan बताते हैं कि उन दिनों मैं रेडियोग्राफर (पैरा मेडिकल स्टाफ) के तौर पर दिल्ली के ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (एम्स) में काम किया करता था। मैंने 11 सितंबर, 1979  से बतौर रेडियोग्राफर एम्स में काम करना शुरू किया था। जिसके कुछ ही महीने बाद मेजर ध्यानचंद की मौत उसी अस्पताल में मौत हुई थी।

गजेंद्र चौहान बताते हैं कि लीवर के कैंसर के इलाज के लिए भर्ती ध्यानचंद उन दिनों अर्द्ध-बेहोशी की हालत में थे। ऐसे में देर रात को मेजर ध्यानचंद का एक इमरजेंसी एक्स-रे निकाले जाने का निर्देश डॉक्टर की ओर से मुझे मिला, जिसे मैंने अंजाम दिया। मेजर ध्यानचंद के बेटे अशोक कुमार उन दिनों अपने पिता की देखभाल के लिए अस्पताल में मौजूद रहा करते थे। ध्यानचंद की मौत के कुछ ही मिनट पहले ध्यानचंद के बेटे अशोक कुमार ने मुझे कहा कि कुछ ही देर में चाय पीकर नीचे से वापस लौटेंगे और तब तक मैं उनके पिता के पास मौजूद रहूं… मगर कुछ ही देर बाद जब अशोक कुमार नीचे से वापस ऊपर कमरे में लौटे तब तक मेजर ध्यानचंद MAJOR DHYANCHAND मेरे हाथों में दम‌ तोड़ चुके थे।

मेरे हाथों में तोड़े थे MAJOR DHYANCHAND ने अपने प्राण : गजेंद्र चौहान

घटना को याद करते हुए वे कहते हैं कि बिस्तर में अर्द्ध-बेहोशी की अवस्था में लेटे मेजर ध्यानचंद को अचानक से कुछ असहज सा महसूस हुआ। ऐसे में मैं फौरन उनके पास गया और जैसे ही उनका सिर अपने दोनों हाथों में लिया, कुछ ही पलों में उनकी आंखें हमेशा-हमेशा के लिए बंद हो चुकीं थीं। इतने में अशोक कुमार लौटे तो उन्होंने देखा कि उनके पिता का सिर मेरे हाथों में है। वो यह मंजर देखते ही समझ गए कि अब उनके पिता ध्यानचंद इस दुनिया में नहीं रहे। मेरे हाथों में इस तरह से मेजर ध्यानचंद की मौत की वो घटना मेरे लिए आज भी एक बेहद अविस्मरणीय पल की तरह है।

महान खिलाड़ी के नाम पर होना चाहिए खेलों के पुरस्कार का नाम : गजेंद्र चौहान

गजेंद्र चौहान कहते हैं कि ये बात सही है प्रधानमंत्री राजीव गांधी देश की एक बड़ी राजनीतिक शख्सियत थे, मगर ‘हॉकी के जादूगर’ मेजर ध्यानचंद भी खेल से जुड़ी कम बड़ी हस्ती नहीं थे। वे कहते हैं, ‘ऐसे में खेलों से जुड़े पुरस्कार का नाम उनके नाम पर रखना एक सराहनीय कदम है… वैसे भी खेलों से जुड़े पुरस्कार का नाम किसी महान खिलाड़ी के नाम पर ही होना चाहिए और प्रधानमंत्री का नाम बदलने का ये फैसला काबिल-ए-तारीफ है।’

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