दिल्ली सरकार हमेशा ही विज्ञापनों के लिए चर्चा में रही है। दूसरी पार्टियों को दिल्ली की आम आदमी पार्टी कटघरे में खड़ा करती है परंतु अपनी और कभी भी नहीं देखती। वर्तमान में यह खबर आ रही है कि एमसीडी के कर्मचारियों को ना तो समय पर वेतन दिया जा रहा है और ना ही समय पर पेंशन मिल रही है। इससे जुड़ी जनहित याचिका पर सोमवार को सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि इस तरह विज्ञापनों पर पैसे खर्च किए जा रहे हैं और दूसरी तरफ इस मुश्किल समय में कर्मचारियों को वेतन के लाले पड़े हैं।न्यूज 18 की रिपोर्ट के अनुसार हाई कोर्ट ने कहा, हम देख सकते हैं कि किस तरह से सरकार राजनेताओं की तस्वीरों के साथ अखबारों में पूरे पन्ने का विज्ञापन देने पर खर्च कर रही है। लेकिन कर्मचारियों की सैलरी तक नहीं दी जाती है।
केजरीवाल सरकार को फटकार लगाते हुए कोर्ट ने सवाल किया, “क्या ये अपराध नहीं है कि इतने कठिन समय में भी, आप विज्ञापन पर पैसा खर्च कर रहे हैं।” आप सरकार की मंशा पर सवालिया निशान लगाते हुए कोर्ट ने कहा कि नगर निगमों को धन नहीं देना पड़े, इसलिए सरकार वित्तीय संकट का हवाला देती है। लेकिन, अखबारों और अन्य माध्यमों से विज्ञापन पर पैसा खर्च करने में सरकार को कोई दिक्कत नहीं है।शीला दीक्षित सरकार में परिवहन मंत्री रहे हारून यूसुफ का आरोप है कि केजरीवाल सरकार ने दिल्ली में विज्ञापन और प्रचार पर 611 करोड़ रुपए खर्च किए हैं, लेकिन सरकारी स्कूलों की स्थिति और बुनियादी सुविधाओं के उत्थान के लिए कुछ नहीं किया है।
हाल ही में तेजपाल सिंह की एक याचिका में यह बताया गया कि दिल्ली सरकार ने 2015 से 2019 के बीच न तो किसी भी फ्लाईओवर का निर्माण कराया है और ना ही किसी हॉस्पिटल को अनुदान दिया है। उनकी याचिका के बाद अब एक और खुलासा यह बताता है कि दिल्ली सरकार दिल्ली के विकास के लिए किस प्रकार कटिबद्ध है? और किस प्रकार विज्ञापनों की होड़ में दिल्ली की आम जनता के धन को हराया जा रहा है?