नई दिल्ली । निर्भया रेप केस के दोषियों को फांसी से बचाने के लिए उनके वकील एपी सिंह ने सारे पैंतरे आजमा लिए। लेकिन वो दोषियों को मौत की सजा मिलने से बचा नहीं पाए। दिल्ली हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति तक से मिन्नतें करने के बाद भी आखिर में देश की बेटी निर्भया को न्याय मिल गया। चारो दोषियों को शुक्रवार 20 मार्च की सुबह 5 बजकर 30 मिनट पर फांसी के फंदे पर लटका दिया गया। फांसी से पहले चारो दरिंदो से उनकी आख़िरी इच्छा भी पूछी गयी, लेकिन उन्होंने ऐसी कोई भी इच्छा जाहिर नहीं की।
दोषियों को फांसी तिहाड़ जेल में दी गयी। वैसे तो तिहाड़ जेल कई अपराधियो की फांसी का गवाह बन चुका है। लेकिन तिहाड़ जेल के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि जब चार दोषियों को एक साथ फांसी के फंदे पर लटकाया गया है। इससे पहले साल 1982 में रंगा-बिल्ला को एक साथ फांसी दी गई थी। निर्भया के चारों दोषियों विनय, मुकेश, पवन और अक्षय को फांसी देने के लिए तिहाड़ के फांसी घर में स्पेशल इंतज़ाम किया गया था। इसके लिए फांसी के कुएं को चौड़ा किया गया था।
जिस जेल में ये चारों ठहरे थे, उससे करीब 200 कदम की दूरी पर फांसी घर है जहां कड़ी सुरक्षा में उन्हें ले जाया गया और फिर फांसी के फंदे पर लटका दिया गया। वहां 500 गज के एरिए में एक कुआं बना है जिसकी गहराई 12 फीट है। तिहाड़ जेल की दीवारें इससे पहले भी देश के कई मुजरिमो के फांसी चढ़ने का गवाह बन चुकी हैं। अब तक तिहाड़ जेल में साल 1982 में रंगा-बिल्ला को, 1983 में मोहम्मद मकबूल भट्ट 1985 में करतार सिंह-उजागर सिंह, 1989 में सतवंत सिंह-केहर सिंह और फिर साल 2013 में अफजल गुरु को फांसी दी गयी थी।