जल्द ही Drone से की जाएगी फसलों की निगरानी

पिछले कुछ दशकों में भारत ने कृषि के क्षेत्र में शानदार कामयाबियां हासिल की हैं। इस सफलता का ज्यादातर श्रेय किसानों और सरकार के कृषि विभाग को दिया जाता है। इस क्षेत्र में आए दिन हो रही तरक्की भारत को एक अलग पहचान देती है।

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भारत में पिछले 40 सालों के दौरान खाद्यान्न उत्पादन में दो गुना बढ़ोतरी हुई है। कृषि क्षेत्र की बात की जाए तो इसमें देश की लगभग आधी श्रमशक्ति कार्यरत है। किसी भी फसल के उत्पाद कई चीज़ों पर निर्भर करते हैं। इनमें कृषि इनपुट्स, जैसे जमीन, पानी, बीज इनकी देखभाल सबसे पहले आता है। अब ऐसे में किसी भी किसान का हर चीज़ पर ध्यान रख पाना थोड़ा मुश्किल हो जाता है।

यही वजह है कि एग्रीकल्चर मॉनीटरिंग सिस्टम ने इसका तोड़ निकाला है। जी हां, कृषि क्षेत्र में तरक्की के लिए एग्रीकल्चर मॉनीटरिंग सिस्टम ने ड्रोन का इस्तेमाल शुरू किया है। ड्रोन का इस्तेमाल करने से किसानों को ये पता चलेगा कि किस फसल को कितने खाद और पानी की जरूरत है। इतना ही नहीं इससे ये भी पता चल जाएगा कि फसल में रोग लगा है या फिर रोग लगने की आशंका है।

इस शानदार तकनीक पर आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों ने शोध किया है। वैज्ञानिकों की मानें तो जल्द भारत सरकार ड्रोन के जरिए खेती की मॉनिटरिंग कराने की योजना बना रही है। करीब एक साल पहले केंद्र सरकार की ओर से प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) के तहत पूरे देश के 100 से ज्यादा जिलों में फसल की पैदावार के आकलन के लिए ड्रोन से निगरानी को मंजूरी दी गई थी। जिसमें ये शोध काफी कारगर साबित हो सकता है। माना जा रहा है कि पूरे देश में ये लागू करने के लिए करीब 15 हजार से ज्यादा ड्रोन की जरूरत पड़ेगी।

आईआईटी रुड़की के एक वैज्ञानिक के मुताबिक किए गए शोध के तहत ड्रोन के कैमरे से ली गई फसलों की तस्वीरों की इमेज प्रोसेसिंग की गई है। इसके बाद इमेज में मौजूद कलर और पैटर्न के आधार पर विश्लेषण किया जाता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस तकनीक को डीप लर्निंग या मशीन लर्निंग कहते हैं। ड्रोन के कैमरे से ये पता चलता है कि कौन सी फसल को कितने पानी की ज़रूरत हैं, उसमें क्या रोग है या फिर उसे कितने कीटनाशक की जरूरत है। पता चलने पर किसानों को जानकारी दी जाती है जिसपर वो काम करते हैं।

वैज्ञानिकों ने ये भी बताया कि ड्रोन एग्रीकल्चर मॉनीटरिंग के लिए मल्टी स्पेक्ट्रल कैमरा आधारित ड्रोन का इस्तेमाल किया गया है। जिसकी कीमत करीब 11 लाख रुपये है। इसमें पांच कैमरे होते हैं, जो फसल की अलग-अलग तरह की तस्वीरें लेते हैं।

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