कांग्रेस के नेताओं ने स्वीकार किया कांग्रेस में नेतृत्व की कमी

कांग्रेस पार्टी की लगातार हार का कारण पार्टी का नेतृत्व बनता जा रहा है। देश की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी के नेताओं ने भी स्वीकार करना शुरू कर दिया है कि ‘‘स्पष्टता की कमी’’ कांग्रेस पार्टी को नुकसान पहुंचा रही है।

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नीतीश कुमार ने लगातार चौथी बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है। इसी के साथ एक बार फिर बिहार की बागडोर नीतीश कुमार और एनडीए के हाथों में होगी। 2020 बिहार विधानसभा चुनाव जितना भाजपा के लिए अहम था उतना ही कांग्रेस के लिए भी। बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पास पार्टी का जनाधार बचाने की चुनौती थी। लेकिन एक बार फिर मोदी सरकार के खिलाफ बयानबाजी और पार्टी का नेतृत्व कांग्रेस को बड़ी हार से नहीं बचा पाया। बिहार चुनाव के बाद अब पार्टी के कार्यकर्ता समेत तमाम दिग्गज नेता भी इस बात को मानने लगे हैं कि कांग्रेस को लगातार मिलने वाली हार के पीछे पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में कमी एक बड़ी वजह है।

ये बात किसी से छिपी नहीं है कि राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद नेतृत्व को लेकर ‘‘स्पष्टता की कमी’’ कांग्रेस पार्टी को नुकसान पहुंचा रही है। कांग्रेस पार्टी की कमान इस समय सोनिया गांधी के हाथों में है। लेकिन यह भी आज तक किसी से छिपा नहीं है कि सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता और कुछ कार्यकर्ता भी काम करने को तैयार नहीं है। यही कारण है कि अब इस समय कांग्रेस की कमान किसी युवा नेता को सौंपी जानी चाहिए। शीर्ष नेतृत्व में स्पष्टता की कमी का अभाव कांग्रेस के भविष्य को एक बड़े अंधकार की ओर लेता जा रहा है। यहां से अगर कांग्रेस सरकार नेतृत्व की कमी को दूर कर पाने में कामयाब रहती है तो पार्टी में राष्ट्र की दिलचस्पी बढ़ सकती है तथा वह एक बार फिर और ज्यादा मतदाताओं को अपनी ओर प्रेरित कर सकती है।

कांग्रेस को अपने ही नेता दिखा रहे आईना

करीब 70 सालों तक देश पर राज करने वाली कांग्रेस पार्टी की हालत कुछ इस तरह हो चली है कि अब पार्टी के नेता ही कांग्रेस को आईना दिखाने लगे हैं। बिहार विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद आरजेडी के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने बिहार में कांग्रेस की हार का सीधे तौर पर जिम्मेदार राहुल गांधी को ठहराया है। शिवानंद तिवारी ने कहा ‘कांग्रेस जिस तरह से चुनाव लड़ रही है, उससे बीजेपी को ही फायदा पहुंचा रही है। पार्टी ने 70 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन 70 रैलियां भी नहीं की। जो लोग बिहार को जानते नहीं थे, उनके हाथ में प्रचार की कमान थी। राहुल गांधी तीन दिन के लिए आए, जबकि प्रियंका गांधी तो आईं भी नहीं। चुनाव के वक्त तो राहुल गांधी शिमला में पिकनिक कर रहे थे। क्या कोई पार्टी ऐसे चलती है?’

इसके अलावा इसी साल अगस्त में 23 कांग्रेस नेताओं के एक समूह ने अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर नेतृत्व की स्पष्टता के लिए कहा था। लेकिन राहुल गांधी और सोनिया गांधी ने इन्हीं नेताओं को पार्टी का गद्दार नेता करार दिया था। जबकि इन नेताओं ने कांग्रेस के नेतृत्व में सुधार को लेकर पार्टी के आलाकमान को सुझाव दिए थे।

मोदी सरकार केवल प्रतिद्वंदी

कांग्रेस को सबसे पहले यह समझना होगा कि नरेंद्र मोदी सरकार उनके लिए सिर्फ एक प्रतिद्वंदी है। जाहिर तौर पर भाजपा और कांग्रेस इस समय 2 सबसे बड़े राजनीतिक दल हैं। दोनों ही पार्टी चुनावी माहौल के दौरान एक दूसरे को आरोप-प्रत्यारोप का विकल्प प्रदान करती हैं। लेकिन कांग्रेस की राजनीति मोदी सरकार से बिल्कुल अलग है। राहुल गांधी केंद्र सरकार को उनकी पार्टी के खिलाफ निशाना साधने के कई विकल्प तोहफे में दे देते हैं। राहुल गांधी की रैलियों में विकास, स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था जैसे बड़े मुद्दों के अलावा हर वह चीज देखने को मिलती है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जुड़ी हो। कांग्रेस पार्टी का मुद्दा केवल नरेंद्र मोदी ही होते हैं। अपने भाषण में मोदी सरकार पर निशाना साधना के बाद राहुल गांधी ने कई बार अपनी ही पार्टी के के लिए मुश्किलें खड़ी की हैं।

अगले 2 राज्य कांग्रेस के लिए अहम

बिहार के बाद अब पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में अगले कुछ महीने में विधानसभा चुनाव होने हैं। पश्चिम बंगाल से पहले तमिलनाडु में चुनाव होंगे। दोनों ही राज्यों के चुनाव कांग्रेस पार्टी के लिए सबसे अहम रहने वाले हैं क्योंकि यहीं से कांग्रेस पार्टी के भविष्य की तस्वीर साफ होगी। हालांकि कांग्रेस पार्टी के वर्चस्व और नेतृत्व ने सहयोगी दलों को भी परेशानी में डाल दिया है।

पार्टी का नेतृत्व सबसे बड़ा मुद्दा

तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में होने वाले चुनावों से पहले कांग्रेस पार्टी के लिए पार्टी का नेतृत्व सबसे बड़ा मुद्दा है। कांग्रेस को इस समय पार्टी में एक्स्पोज़र की जरूरत है। राहुल गांधी से किसी को भी कोई परेशानी नहीं है लेकिन केवल एक चेहरे पर पार्टी की जिम्मेदारी सौंपना भी सबसे बड़ी समस्या है।

कांग्रेस के लिए अब आगे क्या?

केवल मोदी सरकार को अपनी राजनीति का हिस्सा मान कर कांग्रेस ने अपने लिए ही कई मुश्किलें खड़ी कर ली हैं। इन सबके बीच कांग्रेस अब ऐसे मोड़ पर आ गई है, जहां से राजीनीतिक सक्रियता को अगर नहीं बढ़ाया, तो जो थोड़ी-बहुत उम्मीद बची है वो भी खत्म हो जाएगी। यूं तो सोनिया गांधी ने काफी समय तक पार्टी को मजबूती से चलाया था लेकिन पार्टी को केवल राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा तक ही सीमित कर देना आने वाले समय में पार्टी के लिए गलत निर्णय साबित हो सकता है। कांग्रेस में नए पूर्णकालिक अध्यक्ष पद के लिए जनवरी 2021 में चुनाव होने हैं। यहां से कांग्रेस पार्टी नेतृत्व में आई स्पष्ठता की कमी को दूर करने का काम कर सकती है।

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