उत्तर प्रदेश की राजनीतिक गलियारों में हमेशा कुछ-न-कुछ नई कहानियां सुनने को मिलती रहती है। इसी बिच चंद विधायकों की बगावत से बौखलाईं बसपा प्रमुख मायावती ने प्रदेश की राजनीति में उथल-पुथल मचा देने वाली बात कह डाली। राज्यसभा चुनाव में सपा द्वारा मायावती के छह विधायकों में सेंधमारी के बाद उन्होंने कहा कि बसपा, विधान परिषद चुनाव में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को सबक सिखाने के लिए भारतीय जनता पार्टी को समर्थन देने से भी गुरेज नहीं करेगी।
भाजपा के साथ नहीं करूंगी गठबंधन: मायावती
हालाँकि, जल्दबाजी में दिए गए इस बयान के नुकसान को मायावती ने तत्काल ही भांप लिया, लिहाजा सफाई देते हुए बसपा सुप्रीमो ने कहा कि, “भले ही मैं राजनीति से संन्यास ले लुंगी, लेकिन भारतीय जनता पार्टी के साथ कभी गठबंधन नहीं करुँगी।”
क्या मुस्लिम वोटर्स ब्लू ब्रिगेड के साथ आ सकते है?
सभी के जहन में सिर्फ एक ही सवाल है कि क्या मायावती के बीजेपी वाले बयान पर सफाई देने के बाद भी जनता मान सकती है? क्या मुस्लिम वोटर्स ब्लू ब्रिगेड के साथ आ सकते है? या उनका बसपा के प्रति जो विश्वाश था वो मायावती के सिर्फ एक बयान से खत्म हो गया? सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, अभी कांग्रेस प्रदेश में उस स्थिति में नहीं है कि मुस्लिम उसे विकल्प बनाए। ऐसे में बसपा से रूठा मुस्लिम मार्च पास्ट करता हुआ सपा में ही आएगा। अतः सपा के खेमे में खुशियां मनना लाजमी है।
भजपा करेगी सपा और बसपा के दलित बैंक में सेंधमारी
सूत्रों की मानो तो, अभी जो उत्तर प्रदेश की राजनीतिक गलियारों हालात बने हुए है यह सबसे ज्यादा भाजपा के लिए फायदेमंद होंगे, क्योंकि बहुत संभावना है कि मुस्लिमों की एक राह पर चाल देख विधानसभा चुनाव के वक्त ध्रुवीकरण के आसार बन जाएं। माना जा रहा है कि, अपने काम और नीतियों से भगवा दल, सपा के पिछड़े और बसपा के दलित वोट बैंक में बड़ी सेंध लगा चुका है। इसका सुबूत पिछले दो लोकसभा और एक विधानसभा चुनाव के परिणाम हैं।
मोदी लहर में दलित-मुस्लिम फार्मूला हुआ खत्म
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की सुनामी से दलित-मुस्लिम फार्मूला तहस-नहस होने के साथ ही हाथी के पांव भी उखड़ते गए। हाथी की सवारी करने वाले सवर्णो के साथ ही दरकते परंपरागत दलित और मुस्लिम वोट बैंक से विधानसभा की सिर्फ 19 सीटों पर सिकुड़कर बसपा तीसरे नंबर की पार्टी बनकर रह गई। इसी बिच पार्टी की घटती ताकत पर एक के बाद एक जनाधार वाले नेताओं में नसीमुद्दीन सिद्दीकी, स्वामी प्रसाद मौर्य, ब्रजेश पाठक, आरके चौधरी, ठाकुर जयवीर सिंह, जुगल किशोर, इंद्रजीत सरोज आदि की बगावत से भी माहौल बिगड़ता गया, जिससे पार्टी के सामने पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा के मुकाबले मजबूती से खड़े होने की बड़ी चुनौती थी।