बिहार में 4 गठबंधन, जमीनी हकीकत शून्य, बिहार की जनता देगी करारा जवाब!

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले हर रोज़ एक नए गठबंधन की नींव रखी जा रही है। 2015 में जो चुनाव NDA और महागठबंधन के बीच लड़ा गया था वो अब 4 गठबन्धन के बीच होगा।

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बिहार विधानसभा चुनावों का बिगुल बज चुका है। राज्य के विधानसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान होते ही सभी राजनैतिक पार्टियां हरकत में आनी शुरू हो गयी हैं। सूबे का सियासी पारा पहले ही आसमान पर था जबकि लगातार बदलते पार्टी के मोहरे और चेहरों ने इस बार के चुनाव को और भी दिलचस्प बना दिया है। बिहार का 2015 विधानसभा चुनाव NDA के नितीश कुमार और महागठबंधन के बीच था। कयास लगाए जा रहे थे कि इस बार का चुनाव भी गठबंधन और NDA के बीच ही देखने को मिलेगा। लेकिन पिछले कुछ दिनों में बने नए गठबंधन ने इस बार चुनाव की तस्वीर को पूरी तरह से बदल कर रख दिया है। इस बार सबसे बड़े दुश्मन एक साथ हैं तो बरसो पुरानी दोस्ती को तोड़ते हुए कई नेताओं ने पाला बदल लिया है।

बिहार की जातीय राजनीति आज तक किसी से छिपी नहीं है। यहां जनता के बीच जाकर उनके मुद्दों को सुनने से पहले सीट बटवारें को लेकर घमासान जारी रहता है। अभी तक 2020 के चुनाव से पहले भी ये घमासान जारी है। सीट बटवारें को लेकर कई घटक दल गठबंधन से अलग हो गए हैं तो कुछ ने साथ आकर नितीश कुमार के खिलाफ बिगुल फूंक दिया है। बिहार का जो विधानसभा चुनाव 2015 में NDA और महागठबंधन के बीच लड़ा गया था वो अब 4 गठबंधन के बीच लड़ा जाएगा। लेकिन सवाल ये है कि क्या अब बिहार की राजनीति में सिर्फ गठबंधन ही बाकी रह गया है? क्या अब सभी पार्टी जमीनी हकीकत से दूर स्वार्थ की राजनीति पर उतर आई हैं?

RSLP के साथ हुआ बसपा का गठबंधन

चुनाव की घोषणा के साथ ही उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी (BSP) सुप्रीमों मायावती ने बिहार में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) और अन्य पार्टियों के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया है। मायावती ने उपेंद्र कुशवाहा को गंठबंधन की ओर से बिहार के मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया है। बिहार में इस बार RSLP और बसपा का तीसरे गठबंधन के तौर पर मैदान में उतरेंगी। दोनों ही पार्टी दलितों के वोट बैंक को अपने पाले में करने की तक में होंगी। बता दें कि उपेंद्र कुशवाहा पहले RJD के गठबंधन का हिस्सा थे लेकिन मुख्यमंत्री पद की दावेदारी ने उन्हें बसपा के साथ गठबंधन करने पर मजबूर कर दिया।

AIMIM के साथ होगी पप्पू यादव की पार्टी

बिहार की सियासत में असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने भी प्रदेश के सियासी रंग में रंगना शुरू कर दिया हैं। बिहार की राजनीति में कदम रखते ही AIMIM ने जन अधिकार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पप्पू यादव के साथ हाथ मिला लिया है। दोनों के अलावा पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की सियासी विंग सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) बिहार में किस्मत आजमाने के लिए मैदान में उतर रही है। इनका गठबंधन भी अन्य पार्टियों के लिए बड़ी चुनौती साबित होगा क्योंकि बिहार में 47 सीटें मुस्लिम बहुल्य मानी जाती हैं।

तेजस्वी यादव के साथ दिखेगी कांग्रेस

NDA को चुनौती देने के लिए दूसरा सबसे बड़ा गठबंधन राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता तेजस्वी यादव और कांग्रेस का होगा। तेजस्वी यादव को महागठबंधन के सीएम चेहरे के रूप में पेश किए जाने की पूरी तैयारी है। कांग्रेस ने संकेत दिया है कि तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट करने पर उसे कोई दिक्कत नहीं है। ऐसे में फिलहाल महागठबंधन की नींव रखने वाले तेजस्वी यादव और कांग्रेस के बीच किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं है।

NDA में सीट बटवारें को लेकर खींचतान

NDA में सींट बटवारें को लेकर अभी भी घमासान चल रहा है। रामविलास पासवान की पार्टी LJP अपनी पूरी हिस्सेदारी की कवायद में जुटी हुई है। LJP नेता चिराग पासवान ने 143 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी की बात कर गठबंधन की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। हालांकि JDU और भाजपा LJP को 27 सीट देने की बात कह रही है।

बिहार की जमीनी हकीकत शून्य

गठबंधन के खेल और सीट बटवारें को लेकर घमासान के बीच बिहार की दूसरी और सबसे मुख्य तस्वीर यानि राज्य की जमीनी हकीकत अभी भी शून्य नजर आ रही है। चुनाव होने में 1 महीने का समय भी नहीं बचा है लेकिन गठबंधन की प्रक्रिया में उलझी पार्टियां अभी तक जनता के बीच नहीं उतरी हैं। कोरोना महामारी के बाद रोजगार और व्यापारिक मार झेल रही बिहार की जनता को राजनैतिक पार्टियों से खासा उम्मीद है लेकिन मौजूदा स्थिति कुछ और ही बयां कर रही हैं।

जनता देगी मुहतोड़ जवाब?

भले ही बिहार का राजनैतिक माहौल इस समय किसी फिल्मी ड्रामे से कम नहीं चल रहा हो लेकिन ये स्पष्ट है कि इस पिक्चर का क्लाइमेक्स बिहार की जनता ही तय करेगी। दल आपस में हाथ मिलाकर किंगमेकर बनने का सपना तो देख रहे हैं, लेकिन जिस जनता के हाथ में सत्ता की चाबी है उस पर किसी का ध्यान अभी तक नहीं गया। किसी पार्टी ने अभी तक विकास के मुद्दे लोगों के सामने नहीं रखे और ना ही ग्राउंड जीरो की हकीकत जानने की अभी तक कोशिश की। बिहार की तस्वीर अगर आने वाले समय में भी इसी तरह की रही तो जनता इस बार पार्टियों को करारा जवाब भी दे सकती है।

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