हिंदुत्व की नैया पर सवार हुई बहुजन समाज पार्टी, पार्टी महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा ने शुरू किए ब्राह्मण सम्मेलन

सदैव दलितों के हितों की लड़ाई लड़ने का दावा करने वाली बहुजन समाज पार्टी अब हिंदुत्व की ओर बढ़ रही है। अयोध्या, मथुरा, काशी में ब्राह्मण सम्मेलनों का आयोजन यह दिखाता है कि अब इस पार्टी के नेताओं को हिंदुत्व बनाने में कोई भी गुरेज नहीं है।

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चित्र साभार: ट्विटर @mishraji_bsp

कभी केवल दलितों के हितों के लिए लड़ने वाली पार्टी अब हिंदुत्व को अपनाने जा रही है। कल बहुजन समाज पार्टी के महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा ने भगवान श्री राम की जन्मभूमि अयोध्या से ब्राह्मण सम्मेलन की शुरुआत की। सतीश चंद्र मिश्रा ने सबसे पहले भगवान हनुमान के दर्शन किए और उसके उपरांत कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इस कार्यक्रम के माध्यम से उन्होंने कांग्रेस, समाजवादी पार्टी तथा भाजपा की सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने ब्राह्मणों को आवाहन करते हुए कहा कि अब सभी ब्राह्मणों को एक होकर अपने ऊपर हुए अत्याचारों का बदला लेना चाहिए। उन्होंने यह भी ऐलान किया कि विकास दुबे के भतीजे की पत्नी खुशी दुबे को रिहा कराने के लिए बहुजन समाज पार्टी के द्वारा जो भी मदद हो सकेगी वह की जाएगी।

सतीश चंद्र मिश्रा के पूरे भाषण से यह सिद्ध हो रहा था कि कहीं ना कहीं बहुजन समाज पार्टी अब केवल दलितों के सहारे नहीं अपितु हिंदुत्व के मुद्दे को लेकर आगे बढ़ेगी। बसपा ने अब वोट प्रतिशत बढ़ाने के मद्देनज़र ही 75 जिलों में ब्राह्मण संगोष्ठियां करने का फैसला किया है। इसके तहत मथुरा, काशी और प्रयागराज में कार्यक्रम होंगे। राजनीतिक विश्लेषक पूर्व आईजी अरुण कुमार गुप्ता कहते हैं- ‘बसपा को यह बखूबी एहसास हो चुका है कि बिना बेस वोट बैंक में अन्य मतदाताओं को जोड़े उसका सत्ता हासिल करना मुश्किल है। लिहाजा अब यह नरम हिन्दुत्व या यूं कहें ब्राह्मण वोट कार्ड खेलकर भाजपा के वोटों में सेंधमारी की कोशिश की जा रही है।’ हालांकि मायावती के साथ रहे मौजूदा भाजपा सरकार के कैबिनेट मंत्री ब्रजेश पाठक कहते हैं- ‘ब्राह्मण अब दोबारा नहीं ठगे जाएंगे। वे बसपा का चरित्र समझ चुके हैं। बसपा का यह दांव अब अप्रासंगिक हो चुका है।’

2007 जैसी जीत का ख्वाब

बहुजन समाज पार्टी 2007 में हुए विधानसभा चुनावों की तरह जीत हासिल करना चाहती है। इस विधानसभा चुनाव में मायावती ने 13% ब्राह्मणों और 23% दलितों को एक साथ लेकर प्रदेश में अपनी सरकार बना ली थी। इसमें क्षत्रिय तथा ओबीसी के भी बहुत सारे वोटर्स का साथ मिला था। लेकिन 2007 के बाद लगातार 2012 और 2017 के विधानसभा चुनाव में मायावती को तगड़ा झटका लगा। मायावती का प्रमुख दलित वोट भी धीरे-धीरे भारतीय जनता पार्टी की ओर खिसकता हुआ दिखाई दिया। आपको बता दें 2007 के विधानसभा चुनावों में पार्टी को 206 विधानसभा सीटों पर विजय मिली, 30.43 प्रतिशत वोट हासिल हुए। 2012 में 80 विधानसभा सीटों पर विजय मिली, 25.95 प्रतिशत वोट मिले। तथा 2017 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी को 19 सीटें मिली और 22.23% वोट मिले।

राम नाम का सहारा

अयोध्या में सतीश चंद्र ने कहा कि यहां आज जैसे शंखनाद कर शुरुआत हुई है, अगर ब्राह्मण साथ आया तो हमारी सरकार बनेगी, हमारी सरकार बनेगी तो राम का भव्य मंदिर हमारी सरकार में बनेगा। सतीश मिश्रा ने ये भी कहा कि पहले हमने ब्राह्मणों से पूछा कि हाशिये पर क्यों हैं, ब्राह्मण अगर 13 प्रतिशत एक साथ आएगा तभी ब्राह्मण सत्ता की चाबी पायेगा! सतीश चंद्र ने कहा कि अगर 13 प्रतिशत ब्राह्मण और 23 प्रतिशत दलित मिलकर भाईचारा कायम कर लें तो सरकार बनाने से कोई रोक नहीं सकता… ब्राह्मणों के बीच की जाति और उपजाति की दीवार खत्म करनी होगी। सब उपजातियों को छोड़कर जब हम खुद को ब्राह्मण समझेंगे तभी ताक़त बनेंगे।

बीजेपी में सिर्फ गुलदस्ता भेंट करते हैं ब्राह्मण : सतीश चंद्र मिश्रा

ब्राह्मण समाज के बहाने बीजेपी को घेरते हुए सतीश चंद्र मिश्रा ने कहा कि ब्राह्मण समाज के लिए क्या किया ये बीजेपी से पूछा जाना चाहिए। मायावती जी ने हाथ में गणेश की मूर्ति लेकर नया नारा दिया था- हाथी नहीं गणेश है ब्रह्मा विष्णु महेश है। मायावती ने 15 ब्राह्मण को मंत्री बनाया था, 35 को चेयरमैन बनाया था, 15 को MLC बनाया था, 2200 ब्राह्मण समाज के वकीलों को सरकारी वकील बनाया, पहला चीफ सीक्रेट बनाया। जबकि बीजेपी में ब्राह्मण को गुलदस्ता भेंट करने के लिये रखा गया, शो केस की तरह रखा गया है। सतीश चंद्र ने कहा कि हम दिखावे की पंडिताई नहीं करते, हम जन्म से ब्राह्मण हैं। योगी सरकार पर सवाल खड़े करते हुए सतीश चंद्र ने कहा कि दलितों और ब्राह्मणों को इस सरकार में चिन्हित किया गया है। जिस तरह से एनकाउंटर में ब्राह्मणों को मारा गया है उसका बदला लेने का वक्त आ गया है।

पार्टी के दूसरे नंबर के नेता सतीश चंद्र मिश्रा के यह बयान साफ करते हैं कि अब मायावती की पार्टी केवल अल्पसंख्यकों तथा दलितों के भरोसे चुनावी मैदान में नहीं उतरेगी। बल्कि ब्राह्मणों तथा सवर्णों का साथ लेकर भी मायावती सत्ता में आना चाहती हैं। भगवान राम के मंदिर को भव्य रूप देने का दावा भी इसी बात का प्रतीक है, कि अब प्रदेश और राष्ट्र में वही व्यक्ति सत्ता में बैठ सकता है जिसे देश के बहुसंख्यक वर्ग का समर्थन प्राप्त होगा।

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