कर्नाटक का एक ऐसा गांव जहां किसी का नाम है गूगल, कोई ओबामा तो किसी को अमिताभ बच्चन के नाम से पहचानते हैं लोग

कर्नाटक के एक ऐसे गांव के बारे में आज हम आपको बताएंगे जहां पर कोई ओबामा है तो कोई नरेंद्र मोदी है... यहां पर शाहरुख खान भी रहते हैं और अमिताभ बच्चन भी...

0
655

हम सभी जानते हैं कि जब भी कोई शिशु दुनिया में आता है। तो उसकी एक विशेष पहचान बनाने के लिए उसे एक नाम दिया जाता है जो जीवन पर्यंत उसके साथ रहता है। तथा मृत्यु के बाद भी लोग उस नाम के सहारे उस व्यक्ति को याद करते हैं। आज हम आपको भारत के कर्नाटक राज्य में स्थित एक ऐसे गांव के बारे में बताएंगे जहां के लोगों के नाम आश्चर्यचकित करने वाले हैं। जब भी कोई बच्चा इस दुनिया में आता है तो उसका नाम रखने के लिए दोस्तों से लेकर रिश्तेदारों तक की सलाह दी जाती है। विभिन्न धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अलग-अलग रीति-रिवाजों को संपन्न करने के बाद एक बच्चे को उसका नाम मिलता है। कर्नाटक राज्य का बहादुरपुर गांव एक ऐसा गांव है जहां पर किसी व्यक्ति का नाम गूगल है तो कोई ओबामा है।

कर्नाटक के पास बेंगलुरु में हाक्कीपिक्की आदिवासी समुदाय के लोगों की बसाहट है। पहले हाक्कीपिक्की समुदाय के लोग एकांत जंगलों में रहा करते थे और उनमें से कुछ लोग बस दैनिक जरूरत की चीजें खरीदने के लिए आसपास के कस्बों में लगने वाली हाट में पहुंचते थे। समय के साथ साथ जंगलों का कटा हुआ और जंगलों में भी कस्बे बनने लगे। तो यह लोग जंगलों से निकल कर प्रमुख धारा में आने लगे। आप सभी ने पढ़ा होगा कि पुराने कबीलों और आदिवासी समूहों के अपने कुछ जिनका पालन उन्हें और उनके लोगों को जीवन भर करना होता है।

यहां पर भी एक ऐसा ही नियम चलता है। लोग बताते हैं कि यहां पर जन्म लेने वाले बच्चे का नाम उन चीजों पर रखा जाता है जो समय दुनिया में मशहूर हो। यानी अगर इस कबीले में आज किसी बच्चे का जन्म हो तो उसे इंस्टाग्राम या लॉकडाउन नाम भी दिया जा सकता है। इस तरह के अद्भुत नाम रखने का सिलसिला आज से नहीं बल्कि बहुत समय से चला आ रहा है। इस गांव में किसी का नाम गूगल है तो कोई ओबामा है…..किसी ने खुद को सुप्रीम कोर्ट पहचान दी है तो कोई माइक्रोसॉफ्ट कहलवाना पसंद करता है। वैसे यहां शाहरुख खान, अमिताभ बच्चन, सोनिया गांधी के साथ नरेन्द्र मोदी भी रहते हैं। आपको बता दें कि इस समुदाय के लोग खुद को राजपूत महाराणा प्रताप का वंशज मानते हैं। कुछ समय पहले तक यह अपने बच्चों का नाम फल तथा सब्जियों के नाम पर रखते थे लेकिन समय के साथ ट्रेंड में परिवर्तन हुआ है।

इस समुदाय के लोग आज भी जंगलों में लकड़ियां बीनने का काम करते हैं ना की लकड़ियों को काटने का। यानी कि यह लोग अपने जीवन यापन के लिए किसी जीवित वृक्ष की बलि नहीं देते बल्कि उस वृक्ष की टहनी को उठाते हैं जो स्वयं उस पेड़ से टूट कर अलग हो गई है। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि यह भारत का पहला ऐसा समुदाय है जो 14 भाषाओं की जानकारी रखता है और अब शहरों से संपर्क होने के कारण यह लगातार मुख्यधारा में आ रहा है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here