देश की राजधानी दिल्ली तथा दिल्ली की राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच हमेशा विवादों का एक पुराना नाता रहा है। इसी बीच लोकसभा में सोमवार को उपराज्यपाल को श्रम शक्ति देने वाला दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र शासन संशोधन बिल प्रस्तुत किया गया और उस पर मुहर लगा दी गई। सरकार ने कहा कि दिल्ली की बेहतरी के लिए उपराज्यपाल और राज्य सरकार के अधिकारों की स्पष्ट व्याख्या बहुत आवश्यक है जबकि विपक्ष ने इस बिल को असंवैधानिक बताते हुए कहा कि सरकार लोकतंत्र की हत्या करने की तैयारी कर रही है। बिल पेश करते हुए गृहमंत्री जी किशन रेड्डी ने कहा इसमें किसी को ना तो अतिरिक्त अधिकार दिए गए हैं और ना ही किसी के अधिकारों में कटौती की गई है। इसके जरिए दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्य क्षेत्र शासन अधिनियम 1991 में संशोधन करके उपराज्यपाल और राज्य सरकार के अधिकारों की स्पष्ट व्याख्या कर दी गई है। गृह राज्य मंत्री ने कहा साल 2015 के बाद अधिकारों की जनसंख्या के कारण लगातार विवाद होते रहे हैं ऐसे हमेशा के लिए समाप्त करने के लिए संविधान में संशोधन किया गया है।
भारतीय जनता पार्टी के सांसद मीनाक्षी लेखी ने दावा किया है कि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्य क्षेत्र शासन अधिनियम 1991 में उपराज्यपाल को कार्यकारी नहीं बल्कि प्रशासन बताया गया है। अधिकारों की गलत व्याख्या के कारण विवाद की स्थितियां उत्पन्न होती हैं। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुरूप सरकार को अधिनियम में संशोधन कर उपराज्यपाल के अधिकारों की व्याख्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। क्योंकि अरविंद केजरीवाल की सरकार सामूहिक और सहमति के आधार पर आगे बढ़ने के बदले लगातार अराजक स्थिति उत्पन्न करती रही है।
वहीं दूसरी तरफ इस बिल के खिलाफ पूरा विपक्ष एकजुट होता हुआ दिखाई दिया। बिल के विरोध में कांग्रेस,एनसीपी, बसपा,सपा,दिल्ली सरकार की आम आदमी पार्टी, मुस्लिम लीग और शिवसेना ने केंद्र सरकार पर निशाना साधा। विपक्ष ने सरकार पर उपराज्यपाल को सुपर सीएम बनाने का आरोप लगा दिया विपक्ष ने इसे देश के संघीय ढांचे के लिए एक खतरनाक और अलोकतांत्रिक कदम बताया।