यदि हम बात करें कि भारत में सर्वाधिक समय तक किस पार्टी ने राज किया है तो आप कहेंगे कांग्रेस पार्टी ने! अगर हम बात करें कि किस परिवार ने भारत पर सर्वाधिक समय तक राज किया है तो आप कहेंगे नेहरू-गांधी परिवार ने। यानी कि 1947 में देश की 256 रियासतें खत्म हो गईं और देश में केवल एक संविधान लागू हुआ लेकिन वह संविधान कांग्रेस पार्टी पर लागू नहीं हुआ। आज भी वही परंपरागत वंशवाद चला आ रहा है जो 1947 से पहले चला आ रहा था।
अब आप स्वयं समझ सकते हैं, भारत के लोकतंत्र पर सबसे ज्यादा समय तक राज करने वाली पार्टी कांग्रेस में खुद के भीतर ही कोई लोकतंत्र नहीं बचा है। पंडित नेहरू के बाद इंदिरा गांधी फिर संजय गांधी, राजीव गांधी उसके बाद सोनिया गांधी, सोनिया गांधी के बाद राहुल गांधी और प्रियंका गांधी। यह है कांग्रेस के वंशवाद की कथा। वर्तमान में पूरी कांग्रेस पार्टी राहुल गांधी के ही हाथों में है।
2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के उत्तराधिकारी राहुल गांधी एक पस्त और हारे हुए नेता के रूप में उभरे। 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 44 सीटें जीती तो 2019 के चुनाव में 52 सीटों पर कांग्रेस सिमट गई। अगर हम बात करें उत्तराधिकारी की तो राहुल गांधी की दादी के पिता पंडित नेहरू सर्वाधिक समय तक भारत के प्रधानमंत्री रहे, उनकी दादी इंदिरा गांधी देश की पहली महिला प्रधानमंत्री थीं, उनके पिता राजीव गांधी देश के सबसे युवा प्रधानमंत्री थे। राहुल गांधी की स्थिति को हम भारतीय राजनीति में केवल इसी बात से भांप सकते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में अमेठी जो उनकी परंपरागत सीट है जिस पर उनका खानदान जीतता आया था और 15 सालों से राहुल गांधी भी वहां से सांसद थे। वह सीट भी राहुल गांधी के हाथों से निकल गयी।
कांग्रेस का चल रहा है राहुकाल
यह माना जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी इस समय अपनी स्थापना के बाद सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। अगर हम केवल 2013 की बात करें तो राहुल गांधी के उपाध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस पार्टी ने लगातार 24 चुनाव हारी है। जिसमें, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड, नागालैंड, दिल्ली, राजस्थान, असम, छत्तीसगढ़, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल और केरल शामिल थे।
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इसके अलावा एक और बात कही जाती है कि राहुल गांधी अपनी पार्टी के लिए ही नहीं बल्कि सहयोगी गठबंधन दलों के लिए भी राहु साबित हो रहे हैं। जिसका उदाहरण है उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का लगभग समाप्त होना। 16 दिसंबर 2017 को कांग्रेस पार्टी की कमान राहुल गांधी के हाथों में आई थी। जिसके बाद सबसे पहले गुजरात विधानसभा चुनाव हारे और 6 महीने बाद मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ का चुनाव कांग्रेस ने भारी मतों से जीता। उसके छह महीने लोकसभा के चुनाव हुए और कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा। राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने लगातार 14 राज्यों में हार का सामना किया है।
अगर हम 2017 से 2020 के बीच हुए चुनावों की बात करें तो छत्तीसगढ़, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में कांग्रेस ने विजय हासिल की और इसके अलावा गुजरात विधानसभा चुनाव, त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड, मिजोरम, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, उत्तर प्रदेश और दिल्ली, इन सभी प्रदेशों में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। राहुल गांधी के राजनीतिक जीवन को आप इस बात से ही समझ सकते हैं कि उन्होंने अपनी परंपरागत सीट अमेठी जहां से वे पिछले 15 सालों से सांसद थे वह भी इस 2019 के चुनाव में गंवा दी।
अयोग्य नेतृत्व के कारण गिरती हैं सरकारें
यह माना जाता है कि नेतृत्व गलत हाथों में हो तो हाथ में आई हुई विजय हार में बदल जाती है। यह बात बिल्कुल सत्य साबित होती है कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी के लिए। कांग्रेस पार्टी ने कर्नाटक, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में अच्छी विजय प्राप्त की थी। लेकिन कुछ समय बाद कर्नाटक में कांग्रेस के समर्थन से बनी सरकार गिर गई। 14 महीने की सरकार चलाने के बाद कर्नाटक की सरकार भी भाजपा के हाथों में आ गयी।
इसके बाद यदि हम बात करें मध्यप्रदेश की तो मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की कड़ी मेहनत के बाद कांग्रेस पार्टी सत्ता में वापस आई थी लेकिन न तो ज्योतिरादित्य सिंधिया को राज्यसभा भेजने की बात तय हुई न उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। जिस से दुखी होकर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी को अलविदा कह दिया और भारतीय जनता पार्टी के समर्थन में आ गए। जिसके बाद ज्योतिरादित्य के समर्थक विधायकों ने भारतीय जनता पार्टी को समर्थन दे दिया और कांग्रेस की सरकार गिर गई और मध्यप्रदेश के चौथी बार मुख्यमंत्री बने शिवराज सिंह चौहान।
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वर्तमान समय में राजस्थान की भी कुछ ऐसी ही हालत है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सामने सचिन पायलट की एक नहीं चली! सचिन पायलट ने कहा, “मेरी कही हुई किसी भी बात पर मुख्यमंत्री ने अमल नहीं किया, मेरे द्वारा जिताये गए चुनाव का प्रतिफल मुझे बहुत बुरा मिला है।”
गांधी-नेहरू परिवार के अलावा किसी युवा को स्वीकार नहीं करती कांग्रेस
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जब बनी थी, उस समय भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन चल रहा था। निश्चित रूप से उस समय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में बहुत सारे लोग अपनी पूरी ताकत के साथ काम किया करते थे। लेकिन वर्तमान में कांग्रेस पार्टी ने कभी भी गांधी-नेहरू परिवार के अलावा किसी भी युवा नेता का नेतृत्व स्वीकार नहीं किया है। जिसका परिणाम है आज कांग्रेस पार्टी के सभी बड़े नेताओं में अशोक गहलोत, चिदंबरम, मणिशंकर अय्यर, गुलाम नबी आजाद, कमलनाथ जैसे पुराने नेता शामिल हैं।
पार्टी के कारनामों का परिणाम है कि राजस्थान में सचिन पायलट ने अशोक गहलोत से बगावत कर दी और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मध्यप्रदेश में कमलनाथ की बनी-बनाई सरकार गिरा दी। इसके अलावा कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता रही प्रियंका चतुर्वेदी को भी कांग्रेस छोड़नी पड़ी। कांग्रेसी विधायक आदिति सिंह ने भी कांग्रेस से बगावत कर दी। कांग्रेस पार्टी के सभी वरिष्ठ नेता केवल और केवल नेहरू-गांधी परिवार के किसी युवा का नेतृत्व स्वीकार करते हैं अन्य किसी व्यक्ति का नहीं।
इन घटनाक्रमों को पढ़ने के बाद आपको महाभारत के धृतराष्ट्र की याद आ रही होगी। जिन्होंने अपने पूरे साम्राज्य का विनाश केवल अपने पुत्र के मोह में करा दिया। इसके अलावा गुरु द्रोणाचार्य ने भी अपने पुत्र अश्वत्थामा के मोह में अपने प्राण त्याग दिए। यदि द्रौपदी के चीरहरण के समय धृतराष्ट्र ने अपने बेटे का विरोध किया होता तो निश्चित रूप से इतिहास में उन्हें एक हारे हुए पिता और एक स्वार्थी राजा की तरह नहीं देखा जाता।
इसी तरह अगर गांधी परिवार के अलावा कांग्रेस ने किसी अन्य युवा का नेतृत्व स्वीकार किया होता तो इतिहास के पृष्ठों में कांग्रेस की इतनी बुरी दशा नहीं होती। जब तक कांग्रेस में यह परिवारवाद का खेल चलेगा तब तक निश्चित रूप से कांग्रेस पार्टी कभी भी भारत पर राज कर नहीं कर पायेगी। इसीलिए कहा जाता है कि जब अयोग्य लोगों के हाथ में राजनीति आ जाती है तो राजनीति अराजक हो जाती है और यदि राजनीति योग्य लोगों के हाथ में आ जाती है तो राष्ट्र दोगुनी गति के साथ उन्नति करता है।