चीन में कोरोना के पश्चात एक और जानलेवा बीमारी का मंडराया खतरा

अब से पहले इस जानलेवा बीमारी का दुनिया में तीन बार हमला हो चुका है। पहली बार इसे 5 करोड़, दूसरी बार पूरे यूरोप की एक तिहाई आबादी और तीसरी बार 80 हजार लोगों की जान ली थी।

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कोरोना की उत्पत्ति वाले देश चीन में अब एक बार फिर से एक और खतरनाक और जानलेवा बीमारी फैलने का खतरा है। उत्तरी चीन के एक शहर में रविवार को ब्यूबोनिक प्लेग का एक संदिग्ध मामला सामने आया। जिसके बाद वहां अलर्ट जारी कर दिया गया है। चीन के आंतरिक मंगोलियाई स्वायत्त क्षेत्र, बयन्नुर में प्लेग की रोकथाम और नियंत्रण के लिए तीसरे स्तर की चेतावनी जारी की गई है। ब्यूबोनिक प्लेग की चपेट में आने से पहले भी पूरी दुनिया में लाखों लोग अपनी जान गंवा चुके हैं।

अब से पहले इस जानलेवा बीमारी का दुनिया में तीन बार हमला हो चुका है। पहली बार इसे 5 करोड़, दूसरी बार पूरे यूरोप की एक तिहाई आबादी और तीसरी बार 80 हजार लोगों की जान ली थी। अब एक बार फिर ये बीमारी चीन में पनप रही है। इस खतरनाक बिमारी को ब्लैक डेथ या काली मौत भी कहते हैं। ब्यूबोनिक प्लेग का संदिध मामला बयन्नुर के एक अस्पताल में शनिवार को सामने आया।



स्थानीय स्वास्थ्य प्राधिकार ने घोषणा करके बताया कि चेतावनी 2020 के अंत तक जारी रहेगी। स्थानीय स्वास्थ्य प्राधिकार ने कहा, ‘‘इस समय शहर में प्लेग महामारी फैलने का खतरा है। जंगली चूहों में पाए जाने वाले बैक्टीरिया से होने वाली इस जानलेवा बीमारी के लिए जनता को आत्मरक्षा के लिए जागरुकता और क्षमता बढ़ानी चाहिए और असामान्य स्वास्थ्य स्थितियों के बारे में तत्काल जानकारी देनी चाहिए।

इस बैक्टीरिया का नाम यर्सिनिया पेस्टिस बैक्टीरियम (Yersinia Pestis Bacterium)। यह बैक्टीरिया शरीर के लिंफ नोड्स, खून और फेफड़ों पर हमला करता है। इससे उंगलियां काली पड़कर सड़ने लगती है।” चीन की सरकार ने बयन्नुर शहर में मानव प्लेग फैलने के खतरे की आशंका जाहिर की है। ब्यूबोनिक प्लेग को गिल्टीवाला प्लेग भी कहते हैं। इसमें शरीर में असहनीय दर्द, तेज बुखार होता है। नाड़ी तेज चलने लगती है।



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दो-तीन दिन में गिल्टियां निकलने लगती हैं। 14 दिन में ये गिल्टियां पक जाती हैं। इसके बाद शरीर में जो दर्द होता है वो अंतहीन होता है। ब्यूबोनिक प्लेग सबसे पहले जंगली चूहों को होता है। इन चूहों के मरने के बाद इस प्लेग का बैक्टीरिया पिस्सुओं के जरिए मानव शरीर में प्रवेश कर जाता है। इसके बाद जब पिस्सू के द्वारा इंसानों को काटने के पश्चात वह संक्रामक लिक्विड इंसानों के खून में छोड़ देता है। बस इसी के बाद इंसान संक्रमित होने लगता है।

चूहों का मरना आरंभ होने के दो तीन सप्ताह बाद मनुष्यों में प्लेग फैलता है। 2010 से 2015 के बीच इस बीमारी के करीब 3248 मामले सामने आ चुके हैं। जिनमें से 584 लोगों की मौत हो चुकी है। इन सालों में ज्यादातर मामले डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो, मैडागास्कर, पेरू में आए थे। 1970 से लेकर 1980 तक इस बीमारी को चीन, भारत, रूस, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और दक्षिण अमेरिकी देशों में देखा गया है।



6ठीं और 8वीं सदी में इस बिमारी को प्लेग ऑफ जस्टिनियन (Plague Of Justinian) का नाम दिया गया था। उस दौरान इस बीमारी ने पूरी दुनिया में करीब 2.5 से 5 करोड़ लोगों की जान ली थी। दूसरी बार इस बीमारी को 1347 में देखा गया था। तब इसे ब्लैक डेथ (Black Death) नाम दिया गया था। उस समय इस बीमारी ने पुरे यूरोप की एक तिहाई आबादी को अपना शिकार बनाया था। 1894 में तीसरी बार इस बिमारी का प्रभाव देखने में आया था।

उस दौरान इस बीमारी से करीब 80 हजार लोगों के मरने की पृष्टि हुई थी। उस समय इसका ज्यादा असर हॉन्गकॉन्ग के आसपास देखने को मिला था। भारत में 1994 में पांच राज्यों में ब्यूबोनिक प्लेग के करीब 700 केस सामने आए थे। इनमें से 52 लोगों की मौत हुई थी।

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