ममता दीदी की दुखती नस कोरोना पर राजनीति भारी

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कोरोना वायरस के कारण देश में राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन जारी है। वहीं, जैसे-जैसे 3 मई नज़दीक आ रही वैसे-वैसे सुगबुगाहट तेज़ हो गई है कि क्या 3 मई के बाद लॉकडाउन खत्म हो जाएगा या इसे कुछ और हफ्तों तक बढ़ाया जाएगा। वैसे जिस हिसाब से रोज़ कोविड-19 देश के अलग- अलग कोनों में अपने पांव पसार रहा ऐसे में फिलहाल लॉकडाउन खोल देने की उम्मीद बेमानी ही कही जाएगी। लगभग 192 देशों तक अपनी पहुंच बना चुका कोरोना वायरस आज पूरी मानवता के लिए खतरा बन चुका है।

ऐसी विषम स्थिति से बाहर तभी निकला जा सकता है जब देश का प्रत्येक नागरिक अपने हर मतभेद भुलाकर एकजुटता का परिचय दिखाता है। दूसरी ओर एक भारत है जहाँ कोरोना कहर के बीच में भी राजनीतिक मतभेद सामने आ रहे। बात चाहे केरल सरकार की हो या पश्चिम बंगाल की ममता सरकार की हर कोई इस महामारी में भी अपनी राजनीति करने में लगा हुआ है। कोविड-19 के प्रकोप से देश की जनता को बचाने के लिए इस वक्त केंद्र सरकार राज्य सरकारों के साथ बेहतर तालमेल बैठाने का प्रयास कर रही जिससे लॉकडाउन के बीच भी देशवासियों की चिंताओं का निवारण किया जा सके। ऐसे में कुछ प्रदेशों की राज्य सरकारों द्वारा केंद्र सरकार को बार-बार चुनौती देना ऐसी सरकारों की मंशा पे ही सवाल खड़े करता है।

केरल ने भूल सुधारी

कोविड-19 का यूं तो देश में पहला मामला केरल में आया था पर अपने सुनियोजित प्रयासों के द्वारा आज वहाँ इस वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या न के बराबर हो गई है। अपने इन्हीं प्रयासों से खुश होकर स्वतः ही केरल की राज्य सरकार ने 20 अप्रैल से कुछ आर्थिक गतिविधियों को शुरू करने की इजाज़त दे दी और वो भी केंद्र सरकार से बिना परामर्श लिए। ऐसे में इसका खामियाज़ा केरल की कम्युनिस्ट सरकार को भुगतना पड़ा जब केंद्र द्वारा उन्हें जमकर फटकार लगाई गईI बहरहाल जब केंद्र सरकार ने देशव्यापी लॉकडाउन के पुनः आदेशित दिशा-निर्देश उन्हें दिए तो केरल सरकार ने देर न करते हुए अपनी भूल मान ली और दी गई आर्थिक गतिविधियों की ढील वापस ले ली।

ममता सरकार की जारी मनमानी

बात करें पश्चिम बंगाल सरकार की तो यहाँ केंद्र से नाटकीय आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला लगभग पूरे साल तक चलता रहता है। एक दौर था जब पश्चिम बंगाल की गरिमा देश में ही नहीं बल्कि विदेशों तक फैली हुई थी पर लम्बे समय तक दमनकारी कम्युनिस्ट शासन में रहते-रहते आज वो पहले सा गौरव जैसे छिन-सा गया है उससे। पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्ट शासन को परास्त करके जब ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस सत्ता में आई तो लोगों में एक नई उमंग जागी। उन लोगों में ममता सरकार से आस जगी कि वो इस प्रदेश को और इस प्रदेश के हर नागरिक को प्रगति की राह तक लेकर चलेंगी। लेकिन जैसे-जैसे पश्चिम बंगाल की सरकार अपना कार्यकाल पूरा करने लगी वैसे-वैसे प्रदेश की जनता खुदको ठगा हुआ महसूस करने लगी। आज पश्चिम बंगाल के हालात इस कदर खराब हो चले हैं कि ममता सरकार पर ये आरोप लग रहे कि वे कोरोना संक्रमित मरीज़ों की संख्या व इससे मरने वालों की संख्या में हेर-फेर कर रहीं व इसकी सही रिपोर्ट केंद्र से छुपा रहीं हैं।

इसी के चलते पिछले दिनों केंद्र सरकार की अंतर- मंत्रालय टीम कोविड-19 से संक्रमित देश के उन राज्यों के कुछ इलाकों का जायज़ा लेनी पहुंची जहाँ संभावना व्यक्त की गई है कि यहाँ अगर हालात न संभाले गए तो स्थिति और खराब हो सकती है। ये मामला तब तूल पकड़ा जब इनमें से एक टीम पिछले दिनों पश्चिम बंगाल पहुंची। आरोप है कि इस टीम को अपना कार्य करने के लिए ममता सरकार द्वारा कुछ वक्त तक के लिए रोके रखा गया। जबकि इस टीम के राज्य में आने की सूचना पहले ही केंद्र सरकार द्वारा खुद ममता बनर्जी को दी जा चुकी थी। फिर जब टीम राज्य में पहुंची तो ममता बनर्जी द्वारा ये पूछा गया कि आखिर किस नियम के तहत ये टीम यहाँ भेजी जा रही, फिर तब उनको 2005 के आपदा प्रबंधन अधिनियम का हवाला दिया गया फिर जब ऐसा करके उनका मन नहीं भरा तो उन्होंने केंद्र सरकार पर ये बेजा आरोप लगा दिया कि ऐसी टीमें केंद्र सरकार केवल विपक्ष शासित राज्यों में ही भेज रही है। सत्य तो ये है कि जिन राज्यों में कोरोना संक्रमण तेज़ी से फैल रहा और जहाँ सामुदायिक संक्रमण की आशंका है वहाँ की स्थिति का अंदाज़ा लेने के लिए केंद्र ने ज़रूरी निर्देशों को वहाँ पालन करवाने हेतु कई अंतर-मंत्रालय केंद्रीय टीमों का गठन किया है।

ये टीमें जैसा कि ममता बनर्जी ने आरोप लगाया है केवल पश्चिम बंगाल में ही नहीं पहुंची बल्कि जयपुर, मुंबई, पुणे, इंदौर आदि शहरों में भी पहुंची हैं। इन टीमों का दायित्व ऐसे शहरों में जाकर वहाँ की स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी ढांचे की तैयारी, लॉकडाउन के कार्यान्वयन, स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा व श्रमिकों एवं गरीबों के लिए बनाये गए राहत शिविरों की स्थितियों का आकलन कर केंद्र सरकार को रिपोर्ट देना है। अपनी भूल पता चलते ही ममता बनर्जी ने उस रुकी हुई टीम को अपना दौरा जारी करने की इजाज़त दे दी। वहीं, अब खबर ये आ रही कि राज्य पुलिस इन टीमों का उचित सहयोग नहीं कर रहीं।

एकजुटता का अभाव

आज जब समूचे विश्व की मानवजाति कोरोना के कहर से त्रस्त है ऐसे समय में भी राजनीतिक पार्टियों के बीच मतभेद और द्वेष की भावना रखना अपने प्रदेश की जनता के साथ-साथ देश के साथ भी खिलवाड़ करने जैसा ही हुआ। जब सवाल लोगों की ज़िंदगी का हो ऐसे में केंद्र-राज्य संबंधों की फर्जी दुहाई देना किसी भी सरकार को शोभा नहीं देता। जब चिकित्सा व्यवस्था में भारत से सक्षम देश जैसे अमेरिका, स्पेन, फ्रांस, ब्रिटेन आदि भी कोरोना वायरस के आगे नतमस्तक हो चुके हैं ऐसे में भी ममता सरकार द्वारा पहले कोरोना संक्रमितों के सही आंकड़े छुपाना फिर जाँच करने आई टीम को रोकना उनकी ही सरकार का बचकाना रवैया दिखाता है। उनका ये रवैया संभवतः इसलिए भी हो सकता है कि इसी साल वहाँ पर विधानसभा चुनाव होने हैं और वो किसी भी हालत में बीजेपी को बढ़त नहीं दिलवाना चाहतीं हैं। ऐसा इसलिए भी कि कई केंद्र द्वारा जारी योजनाओं को वे अपने प्रदेश में लागू नहीं कर रहीं।

ऐसे में ममता बनर्जी की मंशा यहाँ स्पष्ट होती नज़र आ रही कि ऐसे समय में भी उन्हें केवल अपने वोट बैंक की चिंता है। वैसे विधानसभा चुनाव तो इस साल बिहार में भी होने हैं पर नितीश कुमार की सरकार कोविड-19 से प्रभावी तरीके से निपट रही और अपने प्रदेश की जनता को इस महामारी से बचाये रखने का भरसक प्रयास करती दिख रही। अगर भारत को कोरोना वायरस से निजात पानी है तो इन चुनावी राजनीति से परे उठकर एकजुटता का परिचय देना होगा तभी हम दुनिया में एक मिसाल कायम कर पाएंगे अन्यथा आपस में लड़ते-झगड़ते हम महामारी के खिलाफ इस लड़ाई को हार जाएंगे। आज दुनिया को ये बतलाने का वक्त है कि हम न कभी हारे थे और न हारेंगे व इस मुश्किल घड़ी को भी हम संयम व अनुशासन रखकर जीत लेंगे।

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