7 महीने से चले आ रहे किसान आंदोलन का हल ना तो अब तक कुछ निकला है और ना ही निकल पाएगा। सामान्य किसान अब इस आंदोलन से लौटकर अपने घर जा चुका है और अपनी खेती पर ध्यान दे रहा है। वहीं दूसरी तरफ किसानों के नाम पर शुरू हुआ ही आंदोलन केवल राजनीतिक चर्चाओं का विषय बन कर रह गया है। किसानों के नेता राकेश टिकैत पहले ममता बनर्जी को जिताने के लिए पूरी ताकत लगा देते हैं तो वहीं दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार के खिलाफ प्रचार करने की बात भी कह देते हैं।
एक ओर देश में गेहूं की रिकार्ड सरकारी खरीद हो रही है। अब तक 44.4 लाख किसानों से 76,000 करोड़ रुपये का गेहूं खरीदा जा चुका है। वहीं दूसरी तरफ किसानों के नाम पर आंदोलन करने वाले लोग कृषि संशोधन कानूनों की कॉपियां जला कर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। गेहूं की खरीद के द्वारा प्राप्त होने वाली रकम बिना किसी बिचौलिए के हाथ में गए हुए थे किसानों के खाते में पहुंची है लेकिन किसान नेताओं को यह सब दिखाई नहीं देता।
किसानों को अव्यवस्था से मुक्ति दिलाएंगे नए कानून
कहा जा रहा है कि बदहाली के दुष्चक्र के फंसी खेती-किसानी को उबारने के लिए कृषि विशेषज्ञ लंबे समय से सुझाव दे रहे हैं कि विविधीकृत फसल प्रणाली अपनाई जाए, लेकिन गेहूं-धान केंद्रित फसल चक्र को तोड़ना आसान नहीं था। किसानों को आत्मनिर्भर और भारत की खेती को उन्नत बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 3 नए कृषि कानूनों को लाया गया। लेकिन किसानों की मेहनत में दलाली करने वाले लोगों को यह बात रास नहीं आई। इन कानूनों के जरिये सरकार सूचना प्रौद्योगिकी आधारित ऐसी व्यवस्था बना रही है, जहां किसान अपनी मर्जी से अपनी फसल कहीं भी बेच सकेंगे। जब किसानों को अपनी फसल का अच्छा दाम मिलेगा तो लोग खेती करेंगे। जिनके बच्चे बेरोजगार होने के कारण घरों में बैठे हैं वे लोग भी जब कृषि में लाभ देखेंगे, तो दूसरे काम छोड़कर बेसब भी कृषि में आना चाहेंगे