भारत जैसे सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में प्रधानमंत्री पद और इस पर विराजमान व्यक्ति का महत्व क्या होता है इस बात का अंदाजा शायद विदेशी मुल्क अच्छे से लगा सकें क्योंकि भारत में संविधान के प्रति निष्ठा का कोई अर्थ नहीं है। ऐसी कई घटनाएं सामने आ ही जाती है जब एक व्यक्ति खुद को संवैधानिक पद से ऊपर समझ लेता हैं। वह शायद ये भूल जाता है राजनीति के अहँकार में खुद को इतना ऊपर समझ लेना कि उसके बाद प्रधानमंत्री तक की इज़्ज़त भी ना की जाए, इससे दुर्भाग्यपूर्ण व्यवहार शायद दूसरा कोई और नहीं हो सकता। हाल ही में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी कुछ इसी तरह के वाक्य को दोहराया जहां उन्होंने अपने अहंकार को संविधान से बड़ा समझ लोकतंत्र की धज्जियां उड़ा दी।
बैठक में प्रधानमंत्री को कराया इंतज़ार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यास चक्रवात से हुए नुकसान का जायजा लेने के लिए शुक्रवार को ओडिशा और बंगाल के दौरे पर गए। बंगाल की मुख्यमंत्री होने के नाते उन्होंने ममता बनर्जी और शीर्ष अधिकारियों को बैठक में शामिल होने के लिए कहा। लेकिन ममता बनर्जी इस बैठक में आधा घंटा देरी से पहुंची। जिसके चलते नरेंद्र मोदी और बैठक में मौजूद अन्य लोगों को चर्चा शुरू करने में विलंब करना पड़ा। मीटिंग में 30 मिनट देर से पहुंचने के बाद ममता बनर्जी ने चक्रवात के असर से जुड़े दस्तावेज केंद्र सरकार के अधिकारियों को सौंपकर वहां से चली गईं. उनका कहना था कि उन्हें दूसरी मीटिंगों में हिस्सा लेना है।
ममता बनर्जी की ओछी राजनीति
इस पूरे घटनाक्रम को एक ओछी राजनीति के तौर पर देखा जा सकता है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का एक ही परिसर में होने के बावजूद पीएम मोदी की बैठक में आधे घंटे देरी से आना और फिर राहत पुनर्वास के लिए 20 हजार करोड़ के पैकेज की मांग के पेपर सौंपकर उनका वहां से चला जाना, और उस वक़्त जब परिसर में देश का सबसे गणमान्य व्यक्ति मौजूद हो, इसे अहंकार से संबोधित ही किया जा सकता है। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री, दोनों ही जन कल्याण के प्रति निष्ठा की शपथ लेकर दायित्व ग्रहण करते हैं। ये घटना पूर्ण रूप से राष्ट्र भावना को आहत करने वाली थी।
क्या कभी अहंकार को त्याग पाएंगी ममता बनर्जी?
इस घटना के बाद अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या अहंकार और ममता बनर्जी दोनों एक दूसरे से अलग हो पाएंगे या नहीं? क्योंकि यह पहली घटना नहीं था जब ममता बनर्जी ने इस तरह की क्षुद्र राजनीति का प्रदर्शन किया हो। इससे पहले भी वह कई बार मर्यादा को परे रख PM मोदी का अपमान कर चुकी है। इसके पीछे की वजह चाहे जो भी हो लेकिन किसी मुख्यमंत्री को यह शोभा नहीं देता कि वह प्रधानमंत्री की बैठक का उस तरह बहिष्कार करे, जैसे ममता ने किया।