गाजीपुर बॉर्डर के बाद अब नोएडा दिल्ली बॉर्डर पर है किसान नेताओं की नजर, राकेश टिकैत का ऐलान, “जल्द ही बताएंगे तारीख”

टिकरी, सिंधु और गाजीपुर बॉर्डर के बाद अब किसान नेताओं की नजर नोएडा दिल्ली बॉर्डर पर है। किसान नेता राकेश टिकैत का कहना है कि हम अब नोएडा दिल्ली बॉर्डर को बाधित करेंगे जिसकी तारीख के बारे में आपको जल्द ही सूचित कर दिया जाएगा।

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चित्र साभार: ट्विटर

टिकरी, सिंधु और गाजीपुर बॉर्डर के बाद किसान नेता अब नोएडा दिल्ली के बॉर्डर पर बैठना चाहते हैं किसान नेताओं का कहना है कि जब तक सरकार थी और काले काले वापस नहीं लेगी तब तक हम भी अपने गांव की ओर वापस नहीं जाएंगे। वहीं दूसरी तरफ 26 जनवरी 2021 की घटना के बाद किसान आंदोलन में जो फूट पड़ी उसका प्रभाव पूरे देश में देखा जा सकता है। दो प्रमुख किसान संगठनों ने हिंसा के बाद अपना समर्थन इस पूरे आंदोलन से वापस ले लिया था और अब लोगों का विश्वास भी इस आंदोलन पर कम होता दिखाई दे रहा है। किसान नेताओं ने अपने लोगों के द्वारा इस समय दिल्ली के आसपास के सभी बॉर्डर को बाधित कर दिया है और अब किसान नेताओं की अगली नजर है नोएडा दिल्ली बॉर्डर पर।

26 जनवरी की हिंसा के बाद करीब दो माह से चिल्ला बॉर्डर पर धरना दे रहे भारतीय किसान यूनियन (भानू) और भारतीय किसान यूनियन (लोकशक्ति) ने 27 जनवरी को अपना धरना वापस लेते हुए चिल्ला बॉर्डर खाली कर दिया था। हिंसा के बाद भारतीय किसान यूनियन (भानू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष ठाकुर भानू प्रताप सिंह ने कहा था कि ट्रैक्टर परेड के दौरान जिस तरह से दिल्ली में पुलिस के जवानों के ऊपर हिंसक हमला हुआ तथा कानून-व्यवस्था की जमकर धज्जियां उड़ाई गईं, इससे वे काफी आहत थे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि सरकार और संसद उन किसानों का बहुत सम्मान करती है जो तीनों कृषि कानूनों पर अपने विचार व्यक्त कर रहे हैं। यही कारण है कि सरकार के शीर्ष मंत्री लगातार उनसे बात कर रहे हैं। हमारे मन में किसानों के लिए बहुत सम्मान है। इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि कृषि से संबंधित कानून संसद द्वारा पास किए जाने के बाद कोई भी मंडी बंद नहीं हुई है। इसी तरह एमएसपी भी बना हुआ है। जो लोग पुरानी कृषि विपणन प्रणाली जारी रखना चाहते हैं, वे ऐसा कर सकते हैं। किसानों और सरकार के बीच ऐसा नहीं है कि बातचीत नहीं हुई है लगभग 11 दौर की वार्ताओं में कोई भी हल निकलता हुआ नजर नहीं आया। प्रत्येक दौर की वार्ता में किसान नेताओं ने अपने एजेंडे के तहत मांग रखी कि इन तीनो कानूनों को समाप्त कर दिया जाए। सरकार इस मांग पर राजी नहीं है।

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