किसान आंदोलन के नाम पर भारतीय संविधान और भारत के स्वाभिमान का उड़ाया गया मजाक, हिंसा के आरोपियों को छुड़ाने की की जा रही है कोशिश

किसानों का आंदोलन अभी भी जारी है सरकार और किसान नेताओं के बीच कोई भी बात नहीं बन पाई है लेकिन सत्ताधारी दल के अनुसार किसान के नाम पर शुरू हुआ यह आंदोलन अब किस तरह से राजनीतिक और राष्ट्र विरोधी हो चुका है उसके बारे में भी जानना अहम हो जाता है।

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देश में किसानों के आंदोलन को अब 80 दिन से ज्यादा हो चुके हैं लेकिन सरकार और किसानों के प्रतिनिधि अभी तक इस पूरे मामले को हल करने में नाकाम साबित हुए हैं। दोनों तरफ से अपने-अपने पक्ष दिए जा रहे हैं,किसान संगठन के नेताओं का कहना है कि सरकार जब तक कानून वापस नहीं लेगी तब तक किसानों के कदम भी अपने गांव की ओर नहीं जाएंगे वहीं दूसरी ओर सरकार का कहना है कि हम 11 दौर की वार्ताओं में यह साफ कर चुके हैं कि जिस भी बिंदु पर किसानों को आपत्ति होगी हम उस पर कई बार चर्चा करने को तैयार हैं परंतु किसानों के हित में लाए गए इस बिल को वापस करना अब ठीक नहीं होगा

26 जनवरी 2021 की घटना ने किसान आंदोलन को अब एक दूसरा रूप दे दिया है कल तक जिस किसान आंदोलन का भारत का प्रत्येक व्यक्ति समर्थक था, आज उस घटना के पश्चात भारत की बहुत सारे लोगों ने इस आंदोलन को एक राजनीतिक आंदोलन बनते हुए देख लिया है। दो प्रमुख किसान संगठन पहले ही इस आंदोलन से अपना साथ छोड़ चुके हैं वहीं दूसरी तरफ अब भारत की सभी प्रमुख पार्टियां किसानों के इस आंदोलन से जुड़कर इसे राष्ट्रव्यापी आंदोलन बनाकर सत्ता हथियाने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस पार्टी से लेकर आम आदमी पार्टी और बसपा से लेकर समाजवादी पार्टी अब किसानों की इस वोट बैंक को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश कर रही हैं।

खत्म होते किसान आंदोलन को राकेश टिकैत अब एक बड़े नेता के रूप में मिल चुके हैं, लगातार प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए सरकार पर निशाना साधना हो या फिर किसी पार्टी विशेष के समर्थन में बात कहना हो इसमें राकेश टिकैत हमेशा से पारंगत रहे हैं। लेकिन विदेशी शक्तियों के द्वारा किसान आंदोलन का समर्थन करना और उसके बाद भारत को विश्व स्तर पर बदनाम कराना यह निश्चित रूप से शर्मनाक है और राष्ट्र की एकता के खिलाफ भी है, लगातार जो लोग भारत की एकता और अखंडता को चुनौती देने का काम कर रहे थे। जब उन्हें भारत सरकार बेंगलुरु से गिरफ्तार करती है तो हमारे देश के बुद्धिजीवी वर्ग में एक बड़ी हलचल मच जाती है। वे लोग यह मानते हैं कि भारत सरकार अपने खिलाफ बोलने वाले लोगों का मुंह बंद कराना चाहती है परंतु जो लोग भारत की एकता को खंडित करना चाहते हैं अगर उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई नहीं होगी तो फिर इस देश की एकता की रक्षा कैसे होगी?

अभी हाल ही में पॉप सिंगर रिहाना और मियां खलीफा के द्वारा जिस प्रकार भारत के खिलाफ बयानबाजी की गई.. जिससे यह तो सही सिद्ध होता है कि विश्व स्तर पर भारत को बदनाम करने का षड्यंत्र काफी दिन पहले ही रचा जा चुका है। प्रसिद्ध क्रिकेटर और भारत रत्न सचिन तेंदुलकर और स्वर कोकिला लता मंगेशकर ने जिस प्रकार भारत का समर्थन किया उसके बाद उनके खिलाफ जो वक्तव्य भारत के लोगों के द्वारा दिए जा रहे हैं,उससे भी यह सिद्ध होता है कि बहुत सारे लोग केवल सत्ता को हथियाना चाहते हैं उनका भारत भारत के लोगों तथा भारत के स्वाभिमान से कोई भी संबंध नहीं है

किसान आंदोलन के नाम पर नागरिकता संशोधन कानून की आड़ में जो दंगे हुए थे उनके आरोपियों को रिहा करने की मांग की जा रही थी। अन्नदाताओं के नाम पर किए जाने वाले इसी आंदोलन में काफी सारी ऐसी गतिविधियां होगी जो अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर धब्बा है लेकिन उसके बावजूद अभी भी सरकार किसान नेताओं से बात करने के मूड में दिखाई दे रही है। आप सभी को क्या लगता है इस पूरे मामले में क्या किसान नेताओं ने अपना हठ बड़ा कर लिया है? या फिर सरकार ही इस पूरे मामले को सुलझाने में असफल दिखाई दे रही है?

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