अपनी ही बेटी से दुष्कर्म करने के मामले में उज्जैन में विशेष न्यायाधीश आरती शुक्ला पांडे ने पिता को उम्र कैद की सजा सुनाते हुए मनुस्मृति का श्लोक पढ़ा। इसका हिंदी में अनुवाद है कि जो भी व्यक्ति अपराध करता है उसे दंड मिलना चाहिए चाहे वह माता-पिता,पत्नी,गुरु,मित्र या फिर पुरोहित क्यों ना हो? दरअसल 6 अप्रैल 2019 को कक्षा 5 में पढ़ने वाली एक बच्ची ने अपने ही पिता के खिलाफ दुष्कर्म का मामला अपनी मां के साथ जाकर दर्ज कराया था। उसने बताया कि मेरे पिता पेशे से ड्राइवर हैं और काम के सिलसिले से बाहर आते जाते रहते हैं। 1 साल पहले जब मैं कमरे में अकेली बैठी थी तब मेरे पिता ने मेरे साथ दुष्कर्म किया। उसके बाद 5-6महीने तक वे मेरे साथ गंदी हरकतें करते रहे। पिता ने बेटी को धमकी दी कि अगर उसने किसी को भी इस बारे में बताया तो वह बेटी को जान से मार डालेगा। बेटी ने अपनी यह बात मां से भी छिपाई लेकिन एक दिन अचानक जब बेटी के पेट में दर्द हुआ तब मां अपनी बेटी के साथ हुए अत्याचार का पता चला।
अपने पति की इस हरकत को जानने के बाद पत्नी ने खुद चिमनगंज मंडी थाने में जाकर पति के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई। थाने में आरोपी पिता पर आईपीसी की धारा 376(2)(F),376(AB) तथा अन्य संगीन धाराएं लगाई गई। किसी भी प्रकार के अपराध के लिए मनुस्मृति में कहा गया है-
- (8.335)- जो भी अपराध करे, वह अवश्य दण्डनीय है चाहे वह पिता, माता, गुरु, मित्र, पत्नी, पुत्र या पुरोहित ही क्यों न हो…
- (8.336)- जिस अपराध में सामान्य जन को एक पैसा दण्ड दिया जाए वहां शासक वर्ग को एक हजार गुना दण्ड देना चाहिए…दूसरे शब्दों में जो कानूनविद् हैं, प्रशासनिक अधिकारी हैं या न्यायपालिका में हैं वे अपराध करने पर सामान्य नागरिक से 1000 गुना अधिकदण्ड के भागी हैं।