किसी भी चुनाव से पहले राजनीतिक पार्टियों का दलबदल होना मौजूदा समय में आम बात हो गयी है लेकिन इस प्रक्रिया को इतिहास में प्रदेश की राजनीति के लिहाज से एक समय काफी बुरा माना जाता था। राजनीतिक पार्टियों के नेताओं का लगातार पार्टी बदलना लोगों के हित में नहीं माना जाता वहीं अगर पश्चिम बंगाल की बात करें तो दल बदल की प्रक्रिया चुनावी माहौल के साथ लगातार बढ़ती जा रही है।
जैसे-जैसे बंगाल के चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं वैसे ही नेताओं का दल बदलना अपने चरम पर पहुंच रहा है। एक दौर ऐसा था जब पश्चिम बंगाल में दल बदलना हर किसी के लिए काफी बड़ा उपवास माना जाता था लेकिन अब वह समय आ गया है की है ये राजनीति का काफी बड़ा हिस्सा बन चुका है। 2011 में तृणमूल कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद से ही कांग्रेस और वामदलों के कई नेताओं ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का दामन थाम लिया था। तब शायद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को इस बात का आभास भी नहीं था कि 1 दिन भविष्य में उन्हें अपनी ही कड़वी दवाई का स्वाद चखना पड़ेगा।
पिछले साल के लोकसभा चुनाव से लेकर अब तक कद्दावर नेता शुभेंदु अधिकारी समेत तृणमूल के 15 अन्य विधायक और सांसद भाजपा में शामिल हो चुके हैं। 19 दिसंबर को बंगाल में भाजपा के कद्दावर नेता अमित शाह की रैली के बाद से लगातार दल बदल ना और तृणमूल कांग्रेस के कई नेताओं का भाजपा में शामिल होने का सिलसिला लगातार जारी है। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव का बिगुल कुछ ही समय में बजने वाला है।
ऐसे में दोनों पार्टियों से अभी और नेता पाला बदलते नजर आयेंगे। भले ही TMC इसे भाजपा की बड़ी साजिश बता रही हो लेकिन कहीं ना कहीं तृणमूल कांग्रेस और ममता बनर्जी इस बात को अच्छी तरह से जानती हैं कि शुवेंदु अधिकारी के बाद उनके कई नेताओं का दल बदलना उनके लिए आने वाले समय में काफी परेशानी खड़ी कर सकता है। दूसरी तरफ सवाल ये भी उठना लाजमी है कि क्या नेताओं का लगातार अपनी पार्टी को छोड़ कर अन्य पार्टी में शामिल होना पार्टी के हित के अलावा जनता के साथ धोखा नहीं है? दलबदल अपने आप में ही एक कुप्रथा माना जाता है जिसे रोकने के लिए दल बदल विरोधी कानून भी बनाया जा चुका है।
भाजपा ने शुरू किया खेल
बंगाल में अपनी पार्टी छोड़ने पार्टी में शामिल होने का खेल की शुरुआत भाजपा और अमित शाह की रैली के बाद हुई थी। ममता बनर्जी के गढ़ में सेंध लगाने के लिए अमित शाह ने उनकी धरती पर कदम रखते ही तृणमूल कांग्रेस के नेताओं को तोड़कर बीजेपी में शामिल करने की कवायद शुरू कर दी थी। अपने पहले ही दौरे के 2 दिन बाद से ही TMC समेत कई अन्य पार्टियों के नेताओं ने भाजपा का दामन थामना शुरू कर दिया था। लोकसभा चुनावों से पहले मुकुल राय और अर्जुन सिंह जैसे दिग्गजों से शुरू हुए इस सिलसिले में सुवेंदु अधिकारी सबसे ताजी कड़ी हैं। कैलाश विजयवर्गीय तो अपनी सभाओं में स्पष्ट कर चुके हैं कि जनवरी के आखिरी तक टीएमसी के 60 से 65 विधायक अभी और दल बदल सकते हैं।
अभी दल बदल का खेल बाकी
बंगाल में अभी दल बदल का खेल जारी रहने वाला है। पिछले 2 महीनों से लगातार जारी ये खेल अभी कितना आगे और जाएगा ये कोई नहीं जानता। कुछ रिपोर्ट्स की माने तो शुभेंदु अधिकारी के भाजपा में आने के बाद करीब 5000 और नेता भाजपा का दामन थाम सकते हैं। इसके अलावा ओवैसी भी TMC का साथ देने की तैयारी कर रहे हैं। अगर ऐसा हुआ था मुस्लिम वोट बैंक का झुकाव एक पार्टी की ओर झुक सकता है। हालांकि अभी AIMIM के अध्यक्ष ओवैसी ने TMC का साथ देने की कोई आधिकारिक घोषणा नहीं कि है।
क्या दल बदलना जनता के साथ धोखा है?
पश्चिम बंगाल में 2021 विधानसभा चुनाव से पहले दल-बदल की राजनीति जोरो पर है। पांच साल तक जनता के बीच जनप्रतिनिधि बनकर रहने वाले जनप्रतिनिधि दल बदलने में लग गए हैं। जिस तरह से अपने स्वार्थ के लिए कई सालों से अपनी पार्टियों के साथ जुड़े नेता अन्य पार्टी में शामिल हो रहे हैं उस पर जनता अपनी नजर पूरी तरह से टिकाए हुए है। हालांकि यह पहला ऐसा मौका नहीं है जब अपने निजी स्वार्थ के लिए लोकतंत्र पर रोते हुए राजनीतिक पार्टियां जनता को धोखा देने का काम कर रही हों। जमीनी स्तर पर जनता के बीच जाना तो दूर नेता चुनाव से 5 दिनों पहले तक भी दलबदल का खेल खत्म करने का नाम नहीं लेते। यानी कि चुनाव से 3 महीने पहले तक जो नेता अन्य पार्टी का प्रतिनिधित्व करते हैं वह चुनाव के नजदीक आते ही दूसरी पार्टियों का परचम लहरा रहे होते हैं यह जनता के साथ धोखा नहीं तो और क्या है?
जनता ही करने लगी कार्यवाही की मांग
नेताओं का चुनाव से पूर्व अपनी विचारधारा को त्याग दूसरे दल में शामिल होना व्यक्तिगत लाभ है। इस बात को अब जनता ने भी समझना शुरू कर दिया है यही कारण है कि अब दल बदलने की प्रक्रिया पर खुद प्रदेश की जनता ही कार्रवाई करने की मांग करने लगी है। राजनीतिक दलों और नेताओं को लगता है कि इससे कोई फर्क ही नहीं पड़ता। इसमें वे कुछ गलत और अनैतिक देखते ही नहीं। आखिर इसे क्यों उचित माना जाता है? दल-बदल कानून कई वर्ष पहले बन गया था लेकिन, उससे बचने का रास्ता भी ऐसे लोगों ने निकाल लिया है। लेकिन अब समय आ गया है कि इस दल बदल की प्रक्रिया पर पूरी तरह से लगाम लगाई जाए। ताकि भविष्य में लोकतंत्र की एक नई और सच्ची नींव रखी जा सके।