अमित शाह ने बढ़ाया पश्चिम बंगाल का सियासी पारी, अस्तित्व की लड़ाई लड़ेंगे कांग्रेस और लेफ्ट

कांग्रेस और लेफ्ट ने अगले साल होने वाले पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में एक साथ लड़ने का फैसला कर लिया है। अभी तक बंगाल का चुनाव टीएमसी और बीजेपी के बीच माना जा रहा था लेकिन कांग्रेस ने इस मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। कांग्रेस और लेफ्ट दोनों ही अपना बजूद बचाने के इरादे से चुनावी मैदान में एक साथ उतरेंगी।

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चित्र साभार: ट्विटर @BJP4India

पश्चिम बंगाल का सियासी पारा हर दिन के साथ लगातार बढ़ता जा रहा है। भले ही बंगाल के विधानसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान अभी ना हुआ हो लेकिन राजनीतिक दलो ने अपनी सक्रियता से सूबे के सियासी बाजार को गर्म करना शुरु कर दिया है। पिछले कुछ दिनो में जिस तरह से गृहमंत्री अमित शाह ने पश्चिम बंगाल की धरती पर कदम रख कर भाजपा की कमान संभाली, उसने टीएमसी समेत हर विपक्षी पार्टी को सोचने पर मजबूर कर दिया। अमित शाह ने ना सिर्फ बंगाल के सियासी पारे को बढ़ाया है बल्कि अगले साल की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और वामपंथी दल मिलकर एक बार फिर से चुनावी मैदान में उतरने पर मजबूर कर दिया है।

कांग्रेस आलाकमान ने इस बात की घोषणा कर दी है कि उनकी पार्टी इस बार बंगाल विधानसभा चुनाव वामपंथी दलों के साथ गठबंधन कर के लड़ेगी। कांग्रेस के पश्चिम बंगाल प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी के मुताबिक कांग्रेस और लेफ्ट के साथ चुनाव लड़ने पर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने मुहर लगा दी है। हालांकि ऐसा पहली बार देखने को नहीं मिलेगा कि कांग्रेस लेफ्ट एक साथ चुनाव लड़ती नजर आएगी। लेकिन इस बार कांग्रेस के लिए लड़ाई अपने अस्वित्व और वजूद को बचाने के लिए होगी। बदले हालातों और मौजूदा समीकरण को देखते हुए इस बार कांग्रेस और लेफ्ट के लिए पश्चिम बंगाल का चुनाव कतई आसान नहीं रहने वाला। दोनों ही पार्टियों के लिए एक साथ आना और चुनावी मैदान में उतरना कई मायनों में पार्टी के हित और अस्तित्व के लिए अहम रहने वाला है।

अमित शाह की सक्रियता ने बढ़ाई चिंता

जाहिर तौर पर जिस तरह से बंगाल में राजनीतिक माहौल पिछले कुछ दिनों में पूरी तरह से बदला है उसके पीछे का कारण बंगाल में अमित शाह का दो दिवसीय दौरा था। जिस तरह से अमित शाह ने ममता सरकार के गढ़ में हुंकार भरी और लोगों ने जिस उत्साह के साथ उनका स्वागत किया, उसने लगभग हर पार्टी को अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर कर दिया है। हालांकि कांग्रेस आलाकमान ने ये साफ नहीं किया है कि वह कितनी सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही है लेकिन कुछ रिपोर्ट्स की मानें तो कांग्रेस सीट साझा समझौते में उचित हिस्सेदारी की मांग कर सकती है।

2016 में साथ लड़े थे चुनाव

साल 2016 का पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव कांग्रेस और लेफ्ट ने एक साथ लड़ा था। हालांकि दोनों पार्टी एक साथ आकर भी ममता सरकार के सामने कोई कठिन चुनौती खड़ी नहीं कर पाए थे। तब कांग्रेस विधानसभा में दूसरी बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी और पार्टी ने 44 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि सीपीएम को 26 और बाकी लेफ्ट के घटक दलों को कुछ सीटें मिली थीं यही कारण है कि कांग्रेस एक बार फिर चुनावी रण में लेफ्ट के साथ उतरकर अपनी किस्मत को आजमाने की कोशिश कर रही है।

बीजेपी का उदय, संकट का विषय

पिछले 5 सालों में जिस तरह से बीजेपी ने बंगाल के लोगों तक खुद की अलग पहचान बनाई है उससे प्रदेश में भाजपा का नया उदय हुआ है। पंचायत चुनाव हो या फिर 2019 का लोकसभा चुनाव बीजेपी राज्य में दूसरे नंबर की पार्टी बनकर उभरी है। बंगाल में बीजेपी के जबरदस्त राजनीतिक उभार के चलते कांग्रेस और लेफ्ट दोनों के सामने अपने-अपने सियासी आधार को बचाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है। दूसरी तरफ कई विधायक टीएमसी और अन्य दल छोड़ भाजपा का दामन थाम चुकें हैं। पार्टी बदलने का सिलसिला अभी भी जारी है। इसी समीकरण को देखते हुए कांग्रेस को लेफ्ट के साथ चुनाव लड़ने की घोषणा करनी पड़ी है।

कांग्रेस का गिरता ग्राफ

भले ही कांग्रेस ने इस बार चुनाव में लेफ्ट का साथ मांगा हो लेकिन पिछले कुछ सालों में पार्टी का गिरता ग्राफ कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय है। 2016 के विधानसभा चुनाव के बाद से बंगाल में कांग्रेस और लेफ्ट दोनों ही पार्टियों का ग्राफ डाउन हुआ है, जबकि इन्हीं सालों में बीजेपी ने बंगाल की जनता के बीच खुद की पकड़ मजबूत भी की है। लोकसभा में बीजेपी 18 सीटें और 40 फीसदी वोट हासिल करने में कामयाब रही थी। वहीं, कांग्रेस महज 2 सीटें और 5.67 फीसदी वोट पा सकी थी जबकि लेफ्ट को 6.34 फीसदी वोट मिले, लेकिन एक भी सीट अपने नाम नहीं ।

क्या कांग्रेस बचा पाएगी अपना अस्तित्व?

कांग्रेस पार्टी के लिए अब यहां से लड़ाई पश्चिम बंगाल में अपना वर्चस्व और अस्तित्व बचाने की होगी। कांग्रेस साल 1977 के चुनाव में सत्ता से बाहर हुई तो आजतक वापसी नहीं कर सकी जबकि लेफ्ट पिछले दस सालों से सत्ता का वनवास झेल रही है। दोनों दल इस बात को बखूबी जानते हैं कि अगर टीएमसी या बीजेपी में से कोई भी सत्ता में आया, तो बंगाल पर उनकी सियासी पकड़ और भी कमजोर हो जाएगी। जिसके बाद दोनों ही पार्टियों के लिए सत्ता में वापसी कर पाना काफी कठिन हो जाएगा। यही कारण है कि कांग्रेस किसी भी कीमत पर पश्चिम बंगाल की सत्ता को हाथ से जाने नहीं देना चाहती। अभी तक बंगाल में सियासी लड़ाई टीएमसी और बीजेपी के बीच थी लेकिन कांग्रेस ने मुकाबले को अब त्रिकोणीय बना दिया है। ऐसे में अब देखना होगा कि आने वाले समय में पश्चिन बंगाल का सियासी समीकरण किस तरह से बनता दिखाई देगा।

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