हैदराबाद में कमल खिलाने को बीजेपी तत्पर, बना रही सियासत की नई रणनीति

बीजेपी के गणित जीत-हार दोनों मे फायदा है। हैदराबाद निगम में एआईएमआईएम के 44 पार्षद है और इनके बिना टीआरएस, बीजेपी का महापौर नहीं बन सकता। बीजेपी ने चुनाव में टीआरएस पर एआईएमआईएम से कुछ गुप्त समझौते का आरोप लगाया था लेकिन टीआरएस ने यह आरोप स्वीकार ना करते हुए खारिज कर दिया था।

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हैदराबाद में नगर निगम का चुनाव समाप्त हो गया है। हालांकि चुनाव समाप्त हो गया है लेकिन चुनावी संघर्ष अभी भी जारी है। कुछ मीडिया रिपोर्ट की माने तो हैदराबाद बड़े नगर निगमों में से एक है, जहां निकाय चुनावों में कई पार्टियां जोरों शोरों से सियासत के कुर्सी के लिए संघर्ष कर रही थी वहीं भारतीय जनता पार्टी भी पूरा जोर झोंकने के बाद अब उतनी ही ताकत महापौर की कुर्सी हासिल करने के लिए लगाना चाहती है।

आपके जानकारी के लिए बता दें कि यहा का बजट 5.5 हजार करोड़ रुपए से अधिक का है। दूसरी बात- हाल ही में निगम चुनाव के दौरान भाजपा ने यहां पिछली बार से 12 गुना ज्यादा सीटें जीत कर अपने नाम की है।इससे पहले यहां भाजपा सिर्फ 4 वार्डों में ही थी। वही इस बार उसे 48 वार्डो में जीत हासिल हुई है। और तीसरी और सबसे आवश्यक बात यह है कि अब बीजेपी अपने लिए सूदूर दक्षिण का रास्ता तेलंगाना से निकलता देख रही है।

इसी वज़ह से ही उसने लोकसभा वाले अंदाज में पूरा ज़ोर लगाकर हैदराबाद निगम का चुनाव लड़ा और अपनी रणनीति काफी हद तक सफल भी बनायी और अब वह इस निकाय में टीआरएस के बाद दूसरी बड़ी पार्टी बन गयी है। इसी कारण से अब भाजपा की नज़र हैदराबाद के महापौर की कुर्सी पर है, जहां चुनाव जल्द ही होने वाला है। लेकिन चुनाव की अधिसूचना अभी जारी नहीं हुई है। मगर राज्य सरकार चला रही सत्ताधारी टीआरएस, भाजपा और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम ने तैयारियां जोरो शोरो शुरू कर दी है।

अभी टीआरएस के बी राममोहन हैदराबाद के महापौर है। लेकिन वह इस पद पर बने रहेंगे या नहीं यह तय नहीं है क्योंकि टीआरएस इस बार 150 सदस्यों वाले निगम में 55 सीटें ही जीत कर अपने नाम कर पाई है और ऐस स्थिति में उसे फिर अपना महापौर चुनवाने के लिए कोई जोड़-तोड़ करनी होगी या किसी की सहायता की आवश्यकता पड़ेगी। यही बात बीजेपी पर लागू भी होती है।

बीजेपी के गणित जीत-हार दोनों मे फायदा है। हैदराबाद निगम में एआईएमआईएम के 44 पार्षद है और इनके बिना टीआरएस, बीजेपी का महापौर नहीं बन सकता। बीजेपी ने चुनाव में टीआरएस पर एआईएमआईएम से कुछ गुप्त समझौते का आरोप लगाया था लेकिन टीआरएस ने यह आरोप स्वीकार ना करते हुए खारिज कर दिया था। ऐसे में टीआरएस महापौर चुनाव में एआईएमआईएम की मदद लेती है, तो भाजपा को अपने आरोप को हवा देकर सही साबित करने का मौका मिल जाएगा और टीआरएस मदद न लेने पर भाजपा अपने महापौर के लिए ज़ोर लगाकर सत्ता हासिल करने में सफल हो सकती है।

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