वास्तव में भारत के लोकतंत्र पर सर्वाधिक समय तक राज्य करने वाली पार्टी कांग्रेस अपने भीतर के लोकतंत्र को लगभग समाप्त कर चुकी है। जिसका प्रमाण है लगातार गांधी और नेहरू परिवार के लोगों का कांग्रेस अध्यक्ष बने रहना। जो लोग इसका विरोध करते हैं, उनके साथ पार्टी का व्यवहार भी इस बात को साबित करता है कि कांग्रेस का लोकतंत्र सबसे कमजोर लोकतंत्र है। कपिल सिब्बल से लेकर गुलाम नबी आजाद के साथ जो व्यवहार पार्टी नेताओं ने किया, उनके खिलाफ जो बयान बाजी की गई, यह इस बात को साबित करती है कि कांग्रेस में गांधी नेहरू परिवार के विरोध में बोला ही नहीं जा सकता।
इसके अलावा यह भी माना जा रहा है कि जिन 27 नेताओं ने सोनिया गांधी को पत्र लिखकर कांग्रेस के संगठन में बड़ा बदलाव करने तथा अध्यक्ष पद पर चुनाव कराने की मांग की थी। उन्हें भी बख्शा नहीं जाएगा। जिसका सबसे बड़ा उदाहरण है, उत्तर प्रदेश चुनाव के लिए कांग्रेस की घोषित समितियों में पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद और राज बब्बर को जगह नहीं दी गईं। इसके अलावा अगर आप उत्तर प्रदेश की राजनीति पर गौर करें तो इस समय उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का पूरा संचालन प्रियंका गांधी के हाथों में आ चुका है और आने वाले समय में भी यह बात निश्चित है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पूरी तरह से प्रियंका गांधी के इशारों पर चलेगी। हालांकि जितिन प्रसाद उत्तर प्रदेश का एक ब्राह्मण चेहरा हैं और यदि जितिन प्रसाद को पार्टी नाराज करती है तो निश्चित रूप से ब्राह्मणों का वोट बैंक जो थोड़ा-बहुत कांग्रेस के समर्थन में जा सकता था वह भी नहीं जाएगा।
हालांकि इस पूरे मामले पर जितिन प्रसाद ने स्पष्टीकरण देते हुए यह भी कहा था कि पार्टी में सुधार की बातों को कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व और गांधी परिवार के खिलाफ नहीं देखना चाहिए।