क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया के अलावा कांग्रेस में अभी भी हैं हिंदुत्व छवि के नेता?

भाजपा में इसी साल शामिल होने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने राजघराने की तरह हिन्दू रंग में रंगते नज़र आ रहे हैं। ऐसे में अब सवाल ये है कि क्या कांग्रेस में आज भी ऐसे नेता हैं जिनका झुकाव हिंदुत्व की ओर तो है लेकिन पार्टी की विचारधारा उन्हें कुछ कहने से रोक देती है?

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राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस में सियासत की गुटबाजी अब थमने का नाम ही नहीं ले रही है। दर्जनों कार्यकर्ता कांग्रेस के खिलाफ बगावत पर उतर आए हैं। कांग्रेस के खिलाफ उन्हीं के नेताओं का यूँ बगावत पर उतरने का सिलसिला ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी छोड़ने के बाद से शुरू हुआ था। 11 मार्च को भाजपा का दामन थामने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मध्यप्रदेश की राजनीति में नया भूचाल तो ला ही दिया था, साथ ही उन्होंने अब उन तमाम वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं को सोचने पर मजबूर कर दिया है जो सालों से पार्टी के परिवारवाद के बीच फंसे हुए थे।

सिंधिया का ‘हिंदुत्व प्रेम’

ज्योतिरादित्य सिंधिया की बात करें तो भाजपा में शामिल होने के बाद से उनकी राजनीति का रंग ही पूरी तरह से बदल गया है। जिस कांग्रेस ने सिंधिया को मध्यप्रदेश की राजनीति से दरकिनार कर दिया था, उसी ज्योतिरादित्य सिंधिया के कंधों पर भाजपा ने मध्यप्रदेश में होने वाले विधानसभा उपचुनाव की 16 विधानसभा सीटों की जिम्मेदारी डाली है। सिंधिया ने भी हाल ही में संघ प्रमुख मोहन भागवत से मुलाकात कर अपने घराने के क़दमों पर चलने के संकेत दे दिए हैं, या यूं कहें कि अब एक बार फिर सिंधिया परिवार नई पटकथा लिखने की राह पर चल पड़ा है। ज्योतिरादित्य सिंधिया का हिन्दू प्रेम कोई हैरान करने वाला नहीं है। आश्चर्यजनक बात ये है कि सालों तक कांग्रेस पार्टी में रहकर भी सिंधिया का रंग नहीं बदला। ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि कांग्रेस में क्या अभी भी कई ऐसे नेता हैं जो हिंदूवादी छवि के तो हैं लेकिन पार्टी के विचारों के कारण वह कुछ बोल नहीं पाते?

जनसंघ और भाजपा से जुड़ा रहा है सिंधिया राजघराना

सिंधिया का राजघराना हिन्दू महासभा से जुड़ा रहा है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने सिंधिया परिवार के महाराज जीवाजी राव सिंधिया को पार्टी में आने का ऑफर दिया था लेकिन हिन्दू महासभा की तरफ झुकाव होने के चलते वह राजनीति में नहीं आये। जिसके बाद महारानी विजयाराजे सिंधिया कांग्रेस पार्टी से चुनाव लड़ने उतरीं और जीत हासिल की। लेकिन वह ज्यादा दिनों तक कांग्रेस में नहीं रह सकीं। 1967 में मुख्यमंत्री डीपी मिश्रा के साथ विजयाराजे के विवाद ने मध्यप्रदेश की राजनीति में भूचाल ला दिया था। डीपी मिश्रा को सत्ता से बेदखल करने के बाद विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ जनसंघ का दामन थाम लिया और राज्य का मुख्यमंत्री गोविंदनारायण को बनाया। जनसंघ में शामिल होने के बाद विजयाराजे सिंधिया भाजपा की संस्थापक सदस्य भी रहीं और अंतिम समय तक भाजपा का साथ थामे रखा।

कांग्रेस के लिये मुसीबत खड़ी कर सकता है सिंधिया की हिंदुत्ववादी छवि

ज्योतिरादित्य सिंधिया का समीकरण भी इसी तरह का हो चला है। सिंधिया का हिंदुत्व प्रेम कांग्रेस में एक बार फिर भूचाल ला सकता है। कांग्रेस भी अच्छी तरह से जानती है कि सिंधिया के इस कदम के बाद कई नेता उनके साथ शामिल हो सकते हैं। पार्टी में इस समय आंतरिक गुटबाजी भी जोरों पर है। ऐसे में आने वाले समय में कांग्रेस के लिए सिंधिया बड़ी मुसीबत खड़ी कर सकते हैं।

Image Source : Tweeted by @BJP4MP

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