क्या कांग्रेस पार्टी को इस बार कोई बाहरी अध्यक्ष मिलेगा? क्या सोनिया गांधी परिवारवाद से ऊपर उठ कर पार्टी को नया भविष्य देने के लिए अध्यक्ष पद की कुर्सी छोड़ देंगी? ये वह तमाम सवाल थे जो सोमवार को कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक से पहले हर किसी के मन में थे लेकिन अंत में हुआ वही जो सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने तय किया। भारी गहमागहमी के बीच बैठक में सोनिया गांधी को पार्टी का अंतरिम अध्यक्ष बने रहने दिया गया।
सोनिया गांधी के पार्टी नेतृत्व को लेकर कांग्रेस पार्टी में विरोध और बगावत के सुर पहले भी उठते रहे हैं लेकिन इस बार माहौल कुछ और ही दिखा। पहले केवल 1-2 नेता ही गांधी परिवार के खिलाफ विरोध करते आ रहे थे लेकिन इस बार सामूहिक बगावती तेवर पहली बार दिखाई दिए। 23 वरिष्ठ नेताओं ने 300 हस्ताक्षर के साथ सोनिया गांधी को पत्र सौंपा और पार्टी के अंतरिम अध्यक्ष पद से हटने की मांग की। लेकिन परिवारवाद की राजनीति में चूर गांधी परिवार ने अपने ही पार्टी के नेताओं को दरकिनार करते हुए साबित कर दिया की राजनीति उनके लिए म्यूजिकल चेयर का खेल है, जो गांधी परिवार चाहेगा पार्टी का नेतृत्व वही करेगा।
पार्टी के नेतृत्व में बदलाव को लेकर बुलाई गई इस बैठक में नया अध्यक्ष चुनने पर कोई चर्चा नहीं हुई। पूरी पार्टी ही एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का खेल खेलती रही। पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी इस मुद्दे को सुलझाना जरुरी नहीं समझा बल्कि चिट्ठी लिखने वाले वरिष्ठ नेताओं को आड़े हाथ लिया और सख्त तेवर दिखाते हुए अपने ही वरिष्ठ नेताओं को जमकर लताड़ा। नतीजा ये निकला की कांग्रेस के बगावती नेताओं के हाथ CWC की बैठक के बाद कुछ नहीं लगा। उल्टा गांधी परिवार ने अपने ही नेताओं पर भाजपा से सांठगांठ का आरोप मल दिया। राहुल गांधी के समर्थकों ने इससे हामी भरी और बता दिया कि इस समय कांग्रेस पार्टी 2 अलग गुटों में बंटी हुई है। पिछली कई बैठकों में जो नजारा था वही इस बार भी दिखाई दिया। इस बार भी CWC की बैठक में पिछले 30 सालो से पार्टी की सेवा कर रहें नेताओं को नीचा दिखाने की कोशिश की गयी।
अब ऐसा माना जा रहा है कि आने वाले कुछ महीनों में कांग्रेस पार्टी का नया राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव किया जाएगा लेकिन सवाल ये है कि ऐसा कब तक जारी रहेगा जब शह और मात का खेल गांधी परिवार की तय करेगा? क्या गांधी परिवार के आशीर्वाद के बिना और परिवारवाद की राजनीति के बगैर पार्टी में कोई सफल हो पाएगा? यूँ तो गांधी परिवार सत्ता के लालच से खुद को दूर रखने की बात करता है लेकिन इस सिक्के का दूसरा पहलु ये भी है कि जो लाइन गांधी परिवार खींच दे, पार्टी के आलाकमान को उसी रास्ते पर चलना पड़ता है।
यही कारण है कि अब पार्टी के वरिष्ठ नेता अपनी ही पार्टी के खिलाफ बिगुल बजाने लगे है। पार्टी के अंदर ही अभी तक तय नहीं हो पा रहा कि परिवार को बचाया जाए या पार्टी की साख को? परिवार की राजनीति और परिवार के संरक्षण से पार्टी चलाना अब भले ही सोनिया गांधी की मज़बूरी बन गयी हो लेकिन गांधी परिवार को ये जल्द समझना होगा कि आज पार्टी के नेतृत्व को लेकर जो सवाल उठ रहे है वह जल्द बड़े विद्रोह में तब्दील न हो जाए। अगर ऐसा हुआ तो ये गांधी परिवार के साथ कांग्रेस पार्टी के पतन की शुरुआत भी हो सकती है।