International Women’s Day के मौके पर अपने हकों के लिए पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद सहित तमाम शहरों में औरतों द्वारा निकाले गए मार्च ने हमारे इस पड़ोसी देश को बुरी तरह से पोल खोल कर रख दी है। लेकिन आतंकवाद के जनक और पनाहगाह के रूप में कुख्यात पाकिस्तान में औरतों को बराबरी का दर्जा देने की बात पर कट्टरपंथी इतने ज्यादा आक्रामक हो गए कि रविवार को महिलाओं के मार्च के दौरान उन पर हमले किए गए। मार्च से पैदा हुए विवाद पर जियो टीवी के कार्यक्रम नया पाकिस्तान में एक बहस में भाग लेते हुए सामाजिक कार्यकर्ता और स्तंभकार मेमल सरफराज ने कहा कि औरतें जब अपने हक मांगने के लिए सड़कों पर उतरती हैं तो पितृसत्तात्मक समाज के पैरोकार भड़क जाते हैं। जबकि हकीकत यह है कि औरतें कुछ भी ऐसा नहीं मांग रही हैं जो आपत्तिजनक या गैर कानूनी है। पाकिस्तान के संविधान में उन हकों की गारंटी दी गई है। यहां तक कि औरतों की मांगे दीन की कसौटी पर भी खरी हैं। यह अच्छी बात है कि पार्लियामेंट, सभा-सेमीनारों, टेलीविजन और अखबारों के अलावा अब औरतों के हक पर घरों में भी चर्चा हो रही है।
मेमल सरफराज के विचारों से असहमति जताते हुए नादिया मेराज ने कहा कि औरतों के हक जब ड्राइंग रूम में डिस्कस होंगे और उन पर यूनिवर्सिटी में चर्चा होगी तो बात आगे बढ़ेगी, लेकिन जब तक पार्लियामेंट में कानून बनाकर उस पर कड़ाई और सचाई से अमल नहीं किया जाता तब तक औरतों को उनका हक नहीं दिया जा सकता है। औरतों के मार्च जैसी कोशिशों से इसे कंट्रोवर्सियल बनाकर कुछ हासिल नहीं होगा। इससे महिलाओं के आंदोलन को कोई मदद नहीं मिलेगी। मेरा जिस्म मेरी मर्जी के नारे को देश में सभी लोग समझ नहीं पा रहे हैं। इससे नफरत फैल रही है। इस नारे को गलत समझा जा रहा है। इसे बेहयाई का पर्याय माना जा रहा है। अगर समाज में यह गलत धारणा बनी है तो इस पर जागरूकता फैलाई जानी चाहिए। पाकिस्तान में महिलाओं को अपनी मर्जी से जीने का अधिकार नहीं है। लड़कियों की कम उम्र में शादी कर दी जाती है और अगर कोई लड़की अपनी मर्जी चलाना चाहती है तो झूठी शान के नाम पर उसकी हत्या कर दी जाती है। महिलाओं के लिए पाकिस्तान दुनिया का छठां सबसे खतरनाक देश है। आंकड़ों की बात की जाए तो हर 37 मिनट पर एक महिला की मौत हो जाती है जिसकी वजह कम उम्र में शादी है।
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