टोक्यो पैरालंपिक: कैंसर से जूझ रहे पिता के लिए तीसरा स्वर्ण जीतना चाहते हैं देवेंद्र, भारत की ओर से हैं सबसे बड़े दावेदार

देवेंद्र इस बात को स्वीकार करते हैं कि उन्हें टोक्यो पैरालंपिक चैंपियन बनाने में उनके माता पिता का सबसे बड़ा योगदान है। उन्होंने अमर उजाला को दिए इंटरव्यू में कई प्रमुख बातों का जिक्र भी किया है।

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चित्र साभार: ट्विटर @anjubobbygeorg1

देवेंद्र झाझरिया को पैरालंपिक चैंपियन बनाने में उनके माता-पिता का बहुत बड़ा योगदान रहा है। देवेंद्र को याद है जब वह 2004 के एथेंस पैरालंपिक में खेलने जा रहे थे तो उन्हें विदाई देने वाले अकेले उनके पिता राम सिंह थे। उस वक्त उनके पिता ने देवेंद्र से कहा था यहां से अकेले जा रहे हो लेकिन वहां पदक जीता तो दुनिया पीछे होगी। दो बार के पैरालंपिक चैंपियन भावुक देवेंद्र ने अमर उजाला को बताया कि वह अपने पिता के लिए टोक्यो में तीसरा पैरालंपिक स्वर्ण जीतने के लिए जी-जान लगा देंगे। देवेंद्र के मुताबिक बीते वर्ष अक्तूबर माह में कैंसर से जूझ रहे उनके पिता ने उन्हें जबरन इस पदक के लिए गांधीनगर भेज दिया था। कुछ दिन बाद वह स्वर्ग सिधार गए और देवेंद्र उनसे अंतिम क्षणों में बात भी नहीं कर सके।

देवेंद्र खुलासा करते हैं कि वह पिता के कारण ही दोबारा गांधीनगर में तैयारियों में जुट गए। इसके बाद उन्होंने सिर्फ एक दिन के लिए घर का मुंह देखा है। उनका छह साल का बेटा उन्हें घर आने के लिए बोलता है। गुस्सा भी होता है, लेकिन वह उसे चाकलेट का बहाना बनाकर शांत कर देते हैं। बेटी और पत्नी तो अब समझने लगे हैं। देवेंद्र के अनुसार उनके पिता ही थे जिन्होंने उन्हें जीवन में कभी निराश नहीं होने दिया। वह उन्हें हमेशा प्रोत्साहित करते थे। आज वह गांधीनगर में तैयारी कर रहे होते हैं, लेकिन पिता के शब्द उनके दिमाग में घूमते रहते हैं। इसी लिए वह पिता के लिए टोक्यो में तीसरा स्वर्ण जीतना चाहते हैं।

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