समय है भारतीय उच्च शिक्षा को नया आयाम देने का

अगर केंद्र सरकार एवं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग देश के तमाम विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों को ऑनलाइन, वर्चुअल व ओपन शिक्षा देने की क्षमता से लैस कर देते हैं तो भारतीय उच्च शिक्षा कोरोना संकट का बेहतर ढंग से सामना कर पाएगी।

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कोरोना वायरस ने आज लगभग पूरी दुनिया के मूल चरित्र को प्रभावित किया है। कोरोना संकट ने समाज सम्मलेन एवं संवाद की मूल सामाजिक प्रवृत्ति पर ही रोक लगा दी है। देखा जाए तो 21वीं सदी की सर्वाधिक बड़ी घटनाएं भूमंडलीकरण सम्मलेन, संवाद एवं गति को तीव्र करने की प्रक्रिया रही है, लेकिन कोरोना वायरस ने जैसे इन सभी पर अंकुश लगा दिया है। आज समाज की सहज गति में अचानक ब्रेक लग गया है। कोरोना जनित इस प्रवृत्ति ने हमारी आधुनिकता के अर्थशास्त्र को बहुत ज़्यादा प्रभावित कर दिया है। इसने उद्योग, बाज़ार और शिक्षा जैसे तीन बड़े सेक्टरों को भारी नुकसान पहुंचाया है। शिक्षा, मुख्यतः उच्च शिक्षा जो सम्मलेन एवं संवाद पर आधारित थी, कुछ समय के लिए ही सही उसे ध्वस्त सा कर दिया है। हाल ही में भारत सरकार ने काफी रिसर्च करके नई शिक्षा नीति बनाई है जिसमें भारतीय उच्च शिक्षा में कई सुधार किये गए हैं जिनसे उम्मीद की जा रही है कि ये उच्च शिक्षा में गुणवत्तापूर्ण परिवर्तन कर देंगी।

उच्च शिक्षा और अर्थव्यवस्था

इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि उच्च शिक्षा आज पूरी दुनिया और खासकर पश्चिमी देशों की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण सहयोग करती रही है। बात करें अमेरिका में कोलंबिया यूनिवर्सिटी की तो इसने 2012 से 2017 तक न्यूयॉर्क राज्य की अर्थव्यवस्था में 5780 लाख डॉलर का इजाफा किया और वह लगभग 20,000 लोगों के रोज़गार का साधन रही। इसी तरह प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी अमेरिका के न्यूजर्सी राज्य की अर्थव्यवस्था में प्रतिवर्ष 1.58 अरब डॉलर का योगदान करती है और हज़ारों लोगों को रोज़गार भी देती है। इसी प्रकार इंग्लैंड की अर्थव्यवस्था में उसके विश्वविद्यालय लगभग 95 अरब डॉलर का योगदान करते हैं जो उनके पूरे देश की जीडीपी का 1.2 प्रतिशत के बराबर है। ये आर्थिक बढ़त उन्हें मूलतः फीस एवं दान से प्राप्त होती है। फीस की राशि का एक बड़ा भाग अंतरराष्ट्रीय छात्रों से प्राप्त होता है जिनमें चीन, भारत और दक्षिण एशिया के अन्य देशों के छात्रों की एक बड़ी संख्या होती है। ये छात्र वहां की शिक्षा की व्यवस्था, वहां के प्रवास के दौरान मिलने वाले अनुभव के साथ-साथ उनके ब्रांड से प्रभावित होकर वहां अध्ययन के लिए जाते हैं।

कोरोना संकट के बीच भारतीय उच्च शिक्षा

कोरोना वायरस के चलते आज पूरी दुनिया के बड़े विश्वविद्यालय अब ऑनलाइन शिक्षण को ऑन कैंपस और क्लासरूम टीचिंग के विकल्प के रूप में विकसित करने में लगे हुए हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या क्लासरूम टीचिंग और ऑन कैंपस के अभाव में इन विश्वविद्यालयों का ब्रांड प्रभावित होगा? इसका उत्तर शायद हाँ में हो।ऑनलाइन शिक्षण या ओपन शिक्षा के माध्यम से ये विश्वविद्यालय सस्ती, किंतु ज़्यादा छात्रों को अपने से जोड़ने की रणनीति पर कार्य कर रहे हैं। हालांकि ऑन कैंपस की तुलना में इसकी फीस कम ही रखी जाएगी। ये विश्वविद्यालय हॉस्टल की फीस से भी वंचित रहेंगेI ऐसे में इन्हें आर्थिक झटका लगना लगभग तय है। बदले परिवेश में ये भी माना जा रहा है कि एशियाई देशों के छात्र अब यूरोप और अमेरिका पढ़ने जाने से कतराएंगे। कोरोना संकट के चलते आज ऐसी स्थिति उत्पन्न हो चुकी है कि छात्र ज़्यादा दूर जाकर शिक्षा ग्रहण करने में खुदको असुरक्षित महसूस करेंगे। मौजूदा माहौल में उन्हें ऐसे शिक्षा केंद्र एवं समाज चाहिए जहाँ वे खुदको सुरक्षित महसूस कर सकें और जहाँ उन्हें किसी तरह की उपेक्षा का सामना न करना पड़े। ऐसे में भारत को इसका लाभ उठाना चाहिए। यह सुखद है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय भारत की उच्च शिक्षा को इन नई चुनौतियों एवं संभावनाओं के लिए तैयार कर रहा है। मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ उच्च शिक्षा के ऑनलाइन शिक्षण एवं संवाद विकसित करने पर लगातार ज़ोर दे रहे हैं। इसीके साथ वे देश के महत्वपूर्ण शिक्षण संस्थानों की कैंपस लाइफ, वहाँ के माहौल, आवास व्यवस्था आदि को लेकर भी सक्रिय दिख रहे हैं।

नई शिक्षा नीति-2020 में क्या कुछ है खास उच्च शिक्षा के लिए?

34 साल बाद शिक्षा नीति में बदलाव कर कैबिनेट ने नई शिक्षा नीति (New Education Policy 2020) को हरी झंडी दिखा दी है। केंद्र सरकार का मानना है कि यह नीति नए भारत के निर्माण में मील का पत्थर साबित होगीI गौरतलब है कि इस नीति पर देश के कोने-कोने से राए ली गई है। इसके लिए 2.5 लाख ग्राम पंचायतों, 6,600 ब्लॉक्स, 676 जिलों से सलाह ली गई है। नई शिक्षा नीति में उच्च शिक्षा का विशेष ध्यान रखा गया है और इसमें कई सुधार किये गए हैं। केंद्र सरकार द्वारा कराए गए सर्वे से ज्ञात होता है कि उच्च शिक्षा में 2035 तक ग्रॉस एनरोलमेंट रशियो 50 फीसदी हो जाएगाI वहीं, नई शिक्षा नीति के तहत कोई छात्र एक कोर्स के बीच में अगर कोई दूसरा कोर्स करना चाहे तो पहले कोर्स से सीमित समय के लिए ब्रेक लेकर वो दूसरा कोर्स कर सकता है। वहीं, कॉलेज की डिग्री अबसे 3 और 4 साल की होगी जिसके अंतर्गत ग्रेजुएशन के पहले साल पर सर्टिफिकेट, दूसरे साल पर डिप्लोमा और तीसरे साल में डिग्री दिए जाने का फैसला लिया गया है। अगर बात करें, 3 साल की डिग्री की तो यह उन छात्रों के लिए है जिन्हें उच्च शिक्षा नहीं लेनी है। वहीं, उच्च शिक्षा करने वाले छात्रों को 4 साल की पूरी पढ़ाई खत्म कर डिग्री लेनी होगीI 4 साल की डिग्री करने वाले छात्र एक साल में ही एम.ए. कर सकेंगे। इसीके साथ अब एम.फिल. कोर्स बंद कर दिया गया है। अब एम.ए. के छात्र सीधे पी.एचडी. में प्रवेश पा सकेंगे। उच्च शिक्षा में और भी सुधार किये गए हैं। सुधारों में ग्रेडेड एकेडमिक, ऐडमिनिस्ट्रेटिव और फाइनेंशियल ऑटोनॉमी आदि शामिल है। इसके साथ ही क्षेत्रीय भाषाओं में ई-कोर्स शुरू किए जाएंगे। वर्चुअल लैब्स विकसित किए जाएंगे। वहीं, एक नेशनल एजुकेशनल साइंटिफिक फोरम (NETF) भी शुरू किये जाने की योजना है। ज्ञात हो कि फिलहाल देश में 45 हज़ार कॉलेज हैं।

समाज के हर तबके को डिजिटली साक्षर बनाने की ज़रूरत

अगर केंद्र सरकार एवं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग देश के तमाम विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों को ऑनलाइन, वर्चुअल व ओपन शिक्षा देने की क्षमता से लैस कर देते हैं तो भारतीय उच्च शिक्षा कोरोना संकट का बेहतर ढंग से सामना कर पाएगी। हम यदि उत्कृष्ट कोटि की ऑनलाइन शिक्षा का प्रसार कर पाते हैं तो इससे हमारे देश के गरीब, उपेक्षित एवं दूरस्थ क्षेत्रों में बसे छात्रों को भी बहुत फाएदा होगा पर ऐसा तब हो पाएगा जब हम उन्हें डिजिटली साक्षर बनाएंगे। स्पष्ट है कि सबसे पहले उनतक बेहतर इंटरनेट मुहैया कराना होगा। कहते हैं कि संकट के दौर में विवेक एवं सामर्थ्य जाग जाता है। वहीं, ये भी सत्य है कि मानव सभ्यता लाखों सालों से हर परिस्थिति से झूझता चला आ रहा है। ऐसे में उसकी जीवटता उसे हार नहीं मानने देती और हारे भी क्यों जब जीवन जीने का नाम है।

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