आप सभी ने कुछ समय पहले पंकज त्रिपाठी की फिल्म कागज तो देखी ही होगी, जिसमें उन्हें कागज पर मार दिया जाता है और पूरे जीवन स्वयं को जीवित साबित करने में वे संघर्ष करते रहा जाते हैं। एक ऐसी ही घटना अब सामने आ रही है। डीएम साहब लोगों से बातचीत कर रहे थे इसी बीच एक आवाज आई… साहब, मैं ही जगदीश कौर हूं। जिंदा हूं। लेकिन, रिकार्ड में नहीं। कई सबूत और शपथ पत्र दिए, पर विश्वास नहीं कर रहे। आपके सामने हूं। इससे बड़ा सबूत क्या दूं? इस सवाल के साथ उसकी आंखें भर आईं। बुधवार को गभाना के गांव भोजपुर की 70 वर्षीय महिला के साथ हुई यह घटना बताती है कि हमारा सिस्टम किस तरह से भ्रष्टाचार की गिरफ्त में आ चुका है।
विभाग के द्वारा की गई इस गड़बड़ी के कारण इस महिला को अपने उस मकान का मुआवजा भी नहीं मिल पा रहा है जो मकान हाइवे के कारण उससे ले लिया गया है। गंभीर हुए डीएम ने एसएलएओ संजीव ओझा को पूरे प्रकरण की जांच कर आठ दिन में रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है। जब यह पूरी घटना घटित हो रही होगी तब कागज वेब सीरीज का यह डायलॉग सभी के दिमाग में आया होगा!
“हुजूर आप कागज की बात कर रहे हैं और हम इंसान की…
आप अदालत हैं, आप कागज की सुनेंगे या इंसान की सुनेंगे?
कागज बड़ा है या इंसान बड़ा है?
दिल इंसान के सीने में धड़कत है कि कागज के सीने में धड़कत है?
खून इंसान के सीने में दौड़त है कि कागज के सीने में?
मेहरारू, बच्चे कागज के होत हैं कि इंसान के?”